मंगलवार, 29 मई 2018

पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह जी के अनमोल विचार एवं जीवन परिचय



“भ्रष्टाचार की कोई सीमा नहीं है जिस देश के लोग भ्रष्ट होंगे वो देश तरक्की नहीं कर सकता चाहे कोई भी लीडर आ जाये,चाहे कितना ही अच्छा प्रोग्राम चलाओ”
                         — चौधरी चरण सिंह
पूर्व प्रधानमंत्री आदरणीय चौधरी चरण सिंह जी की 31वीं पुण्यतिथि पर सादर नमन....

राष्ट्र के सर्वागीण विकास व कृषि और किसानों के उत्थान  के प्रति आपका समर्पण हम सभी के लिए प्रेरणा है।
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चौधरी चरण सिंह के अनमोल विचार
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भ्रष्टाचार के खिलाफ सबसे पहले आवाज बुलंद करने वाले, किसानों के मसीहा चौधरी चरण सिंह जीवन पर्यन्त किसान, दलित, मजदूर, गरीब के लिये संघर्ष करते रहे. इनके वचन अनमोल होने के साथ ही भारत के अंतिम पंक्ति में खड़े आदमी की आवाज को बुलन्द करते हैं.
01.असली भारत गांवों में रहता है।
02.अगर देश को उठाना है तो पुरुषार्थ करना होगा, हम सब को पुरुषार्थ करना होगा। मैं भी अपने आपको उसमें शामिल करता हूँ। मेरे सहयोगी मिनिस्टरों को, सबको शामिल करता हूँ । हमको अनवरत् परिश्रम करना पड़ेगा तब जाके देश की तरक्की होगी।
03.राष्ट्र तभी संपन्न हो सकता है जब उसके ग्रामीण क्षेत्र का उन्नयन किया गया हो तथा ग्रामीण क्षेत्र की क्रय शक्ति अधिक हो।
04.किसानों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होगी तब तक देश की प्रगति संभव नहीं है।
05.किसानों की दशा सुधरेगी तो देश सुधरेगा।
06.किसानों की क्रय शक्ति नहीं बढ़ती तब तक औधोगिक उत्पादों की खपत भी संभव नहीं है.
07.भ्रष्टाचार की कोई सीमा नहीं है जिस देश के लोग भ्रष्ट होंगे वो देश तरक्की नहीं कर सकता, चाहे कोई भी लीडर आ जाये, चाहे कितना ही अच्छा प्रोग्राम चलाओ।
08. .हरिजन लोग, आदिवासी लोग, भूमिहीन लोग, बेरोजगार लोग या जिनके पास कम रोजगार है और अपने देश के 50% फीसदी किसान जिनके पास केवल 1 हैक्टेयर से कम जमीन है , इन सबकी तरफ सरकार का विशेष ध्यान होगा.
09. सभी पिछड़ी जातियों, अनुसूचित जातियों, कमजोर वर्गों, अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जनजातियों को अपने अधिकतम विकास के लिये पूरी सुरक्षा एवं सहायता सुनिश्चित की जाएगी।
10.किसान इस देश का मालिक है, परन्तु वह अपनी ताकत को भूल बैठा है।
11.देश की समृद्धि का रास्ता गांवों के खेतों एवं खलिहानों से होकर गुजरता है।


गाँव की एक फूस-मिट्टी की ढाणी में जन्मा एक बच्चा गाँव, गरीब व किसानों का तारणहार बना. गाँव व गरीब के लिये जीवन समर्पित कर दिया. उनके मसीहा बने. स्वतन्त्रता सेनानी से लेकर प्रधानमंत्री तक बने. चौधरी चरण सिंह ने ही भ्रष्टाचार के खिलाफ सबसे पहले आवाज बुलंद की और आह्वान किया कि- “भ्रष्टाचार का अंत ही, देश को आगे ले जा सकता है।”

बहुमुखी प्रतिभा के धनी  के पास संपति के नाम पर उनके पिता मीर सिंह से विरासत में मिले नैतिक मूल्यों के संस्कार थे.

चौधरी साहब 1967 में पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे. तब उनकी निर्णायक प्रशासनिक क्षमता की धमक और जनता का उन पर भरोसा ही था कि 1967 में पूरे देश दंगे होने के बावजूद उत्तर प्रदेश पत्ता भी नहीं खड़का


चौधरी साहब ने अपने सिद्धांतों व मर्यादित आचरण से कभी समझौता नहीं किया. प्रधानमंत्री के पद पर बने रहने के लिये इंदिरा गांधी की शर्तें न मानकर पद छोड़ना उचित समझा।

चौधरी चरण सिंह का प्रारम्भिक जीवन
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चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसंबर, 1902 को बाबूगढ़ छावनी के निकट नूरपुर गांव, तहसील – हापुड़, जनपद – गाजियाबाद, कमिश्नरेट – मेरठ में मिट्टी – फूस के छप्पर वाली मढ़ैया में रहने वाले एक साधारण जाट परिवार में हुआ था. चौधरी चरण सिंह के जन्म के लगभग छह वर्ष बाद ही उनके पिता  नूरपुर गांव को छोड़कर सपरिवार जानी खुर्द गांव आकर बस गए थे. चौधरी चरण सिंह के जीवन पर उनके पिता चौधरी मीर सिंह के नैतिक मूल्यों का गहरा प्रभाव पड़ा था. यहीं के परिवेश में चौधरी चरण सिंह के नन्हें हृदय में गांव-गरीब-किसान के शोषण के खिलाफ संघर्ष का बीजारोपण हुआ.

चौधरी चरण सिंह ने आगरा विश्वविद्यालय से कानून की शिक्षा ग्रहण करने के बाद गाजियाबाद में वकालत प्रारंभ की. वकालत जैसे पेशे में भी उन्होंने कभी भी गलत व्यक्ति का समर्थन नहीं किया और हमेशा ही उन्हीं मुकदमों को स्वीकार करते थे, जिनमें मुवक्किल का पक्ष न्यायपूर्ण होता था. गाजियाबाद में वकालत पेशे में चौधरी चरण सिंह की ईमानदारी, साफगोई और कर्तव्यनिष्ठा का डंका बजाता था.

चौधरी चरण सिंह पर छात्रजीवन में सबसे अधिक प्रभाव गांधी जी के त्याग, बलिदान व उत्कृष्ट देशभक्ति का तथा महर्षि दयानन्द सरस्वती जी के प्रगतिशील धार्मिक विचारों का पड़ा. स्वामी दयानंद सरस्वती की विचारधारा से प्रभावित होकर उन्होंने आर्य समाज को अपनाया. इन दोनों महान आत्माओं से प्रभावित होकर उन्होंने देश के स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लिया और आन्दोलन को सफल बनाने में अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया.

चौधरी चरण सिंह एक महान स्वतन्त्रता सेनानी
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कांग्रेस के लौहर अधिवेशन 1929 में पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव पारित हुआ था, जिससे प्रभावित होकर युवा चौधरी चरण सिंह राजनीति में सक्रिय हो गए. उन्होंने गाजियाबाद में कांग्रेस कमेटी का गठन किया. 1930 में महात्मा गांधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन का आह्वान किया. गाँधी जी ने “डांडी मार्च” कर जब नमक बनाकर, नमक कानून तोड़ा तब युवा चौधरी ने हिंडन नदी पर नमक बनाकर उनका साथ दिया. इसके कारण उन्हें 6 महीनों के लिए जेल जाना पड़ा. जेल से लौटने के बाद युवा चौधरी ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में चल रही आजादी की लड़ाई में अपने को समर्पित कर दिया. इसके बाद तो चरण सिंह को कई बार जेल भी जाना पड़ा, लेकिन वे महात्मा गांधी के नेतृत्व में चल रहे आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाते रहे. 1940 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में भी चरण सिंह को गिरफ्तार कर जेल ठूस दिया. जो अक्तूबर 1941 में छोड़ा.

9 अगस्त, 1942 को अगस्त क्रांति में महात्मा गाँधी ने करो या मरो का आह्वान किया. पूरे भारत में अंग्रेजों भारत छोड़ों की आवाज गूंजने लगी. सारे देश में असंतोष व्याप्त गया था. अगस्त क्रांति के समय चरण सिंह भूमिगत हो गए और जी जान से “गुप्त” क्रांतिकारी संगठन खड़ा करने में जुट गए. उन्होंने गाजियाबाद, हापुड़, मेरठ, मवाना, सरथाना और बुलंदशहर के गांवों में इस संगठन को खड़ा किया. इस संगठन के बदौलत उन्होंने ब्रितानी हुकूमत को कई बार चुनौती भी दी. मेरठ कमिश्नरी के प्रशासन ने चरण सिंह को देखते ही गोली मारने का आदेश पारित कर दिया था. एक तरफ पुलिस चौधरी चरण सिंह की टोह लेती थी वहीं दूसरी तरफ चरण सिंह जनता के बीच सभायें करके निकल जाते थे. आखिरकार पुलिस ने एक दिन चरण सिंह को गिरफ्तार कर ही लिया. राजबन्दी के रूप में डेढ़ वर्ष की सजा हुई. जेल में ही उन्होंने ”शिष्टाचार” नाम से एक पुस्तक लिखी. जो भारतीय संस्कृति और समाज के शिष्टाचार के नियमों का एक बहुमूल्य दस्तावेज है.


आजादी के पहले किसानों लिये उठाई आवाज
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1928 में किसानों के मुकदमों के फैसले करवाकर उनको आपस में लड़ने के बजाय आपसी बातचीत द्वारा सुलझाने का साकार प्रयास किया.
सन् 1939 में ऋण विमोचक विधेयक पास करवाकर किसानों के खेतों की निलामी बचवायी और सरकारी ऋणों से मुक्ति दिलायी.
आपने 1939 में ही किसान पुत्रों को सरकारी नौकरियों में 50 फिसदी आरक्षण दिलाने का लेख लिखा था, परन्तु तथाकथित राष्ट्रवादी कांग्रेसियों के विरोध के कारण इसमें सफलता नहीं मिल पाई.

सन् 1939 में आपने किसानों को इजाफा-लगान व बेदखली के अभिशाप से मुक्ति दिलाने हेतु “भूमि उपयोग बिल” का मसौदा तैयार किया.

आजादी के बाद किसानों की आवाज को बुलन्द किया
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आजादी के बाद वे किसानों की आवाज को जोर शोर से उठाने लगे. स्वतन्त्रता के पश्चात् आप राम मनोहर लोहिया के ग्रामीण सुधार आन्दोलन में लग गए.
चौधरी चरण सिंह द्वारा तैयार किया गया जमींदारी उन्मूलन विधेयक राज्य के कल्याणकारी सिद्धांत पर आधारित था. एक जुलाई 1952 को यूपी में चौधरी चरण सिंह के बदौलत जमींदारी प्रथा का उन्मूलन हुआ और गरीबों को अधिकार मिला. उन्होंने लेखापाल के पद का सृजन भी किया. किसानों के हित में उन्होंने 1954 में उत्तर प्रदेश भूमि संरक्षण कानून को पारित कराया.

चौधरी चरण सिंह गरीबों की आवाज उठाने के चलते एक साधारण कांग्रेसी कार्यकर्ता से जनाधार वाले नेता बन चुके थे, जिसके कारण आप यूपी के मुख्यमंत्री बने. पहली बार वे 3 अप्रैल 1967 को यूपी के मुख्यमंत्री बने. मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने किसानों और कुटीर उद्योग के विकास के लिए अनेक योजनाएं पारित की, जिससे लोगों को काफी लाभ हुआ. एक साल के बाद 17 अप्रैल 1968 को उन्होंने मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। मध्यावधि चुनाव में उन्होंने अच्छी सफलता मिली और दुबारा 17 फरवरी 1970 को वे मुख्यमंत्री बने. दूसरे कार्यकाल में उन्होंने कृषि उत्पादन बढ़ाने की नीति पर जोर दिया और उर्वरकों  से बिक्री कर उठा लिया. अपने कार्यकाल में उन्होंने सीलिंग से प्राप्त जमीनों को भूमिहीनों, गरीबों और हरिजनों में बांट दिया. गुंडा विरोधी अभियान चलाकर यूपी में उन्होंने कानून का राज चलाया.

जब वे केंद्र सरकार में गृहमंत्री बने तो उन्होंने मंडल और अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की. 1979 में वित्त मंत्री और उपप्रधानमंत्री के रूप में राष्ट्रीय कृषि व ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की स्थापना की. चौधरी चरण सिंह ने अपने कार्यकाल के दौरान उर्वरकों और डीजल के दामों में कमी की और कृषि यंत्रों पर उत्पाद शुल्क घटाया. काम के बदले उन्होंने अनाज योजना को लागू किया. विलासिता की सामग्री पर चौधरी चरण सिंह ने भारी कर लगाए.

चौधरी चरण सिंह ने अपनी योग्यता और प्रशासनिक क्षमता की बदौलत देश के प्रधानमंत्री पद को भी सुशोभित किया हालांकि उनका प्रधानमंत्री के रूप में  कार्यकाल अल्प समय के लिए ही रहा. अगर वे प्रधानमंत्री का एक सत्र भी पूरा करते तो इसमें संदेह नहीं कि आज किसानों की स्थिति कुछ और बयां करती. 29 मई 1987 को जनमानस का यह नेता इस दुनिया को छोड़कर चला गया. चौधरी चरण सिंह तो इस दुनिया को छोड़कर चले गए लेकिन लोगों के जेहन में उनका राजनीतिक प्रभाव आज भी बरकरार है.

चौधरी चरण सिंह द्वारा लिखित रचनाएँ
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चौधरी साहब अर्थशास्त्र के ज्ञाता थे. उन्होंने हर तथ्य की सांख्यकीय डाटा से पुष्टि की है. चौधरी साहब द्वारा लिखी पुस्तकें :-
01. India’s Economic Policy – The Gandhian Blueprint
02.Economic Nightmare of India – Its Cause and Cure
03.Cooperative Farming X-rayed
04.“Shishtachar” – unique book on Indian etiquette in one   of his incarcerations.


Some of his important publications include :
01. Abolition of Zamindari,
02. Co-operative Farming X-rayed,
03. India’s Poverty and its Solutions,
04.Agrarian Revolution in Uttar Pradesh, and
05. Land reforms in UP and the Kulaks.

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