मंगलवार, 19 मार्च 2013

अनपढ़ जाट पढ़ा जैसा, पढ़ा जाट खुदा जैसा

पंचायत के अनूठे, ऐतिहासिक पंच यह घटना सन् 1270-1280 के बीच की है। दिल्ली में बादशाह बलबन का राज्य था। उसके दरबार में एक अमीर दरबारी था जिसके तीन बेटे थे। उसके पास उन्नीस घोड़े भी थे। मरने से पहले वह वसीयत लिख गया कि इन घोड़ों का आधा हिस्सा बड़े बेटे को, चौथाई हिस्सा मंझले को और पांचवां हिस्सा सबसे छोटे बेटे को बांट दिया जाये। बेटे उन 19 घोड़ों का इस तरह बंटवारा कर ही नहीं पाये और बादशाह के दरबार में इस समस्या को सुलझाने के लिए अपील की।

बादशाह ने अपने सब दरबारियों से सलाह ली पर उनमें से कोई भी इसे हल नहीं कर सका। उस समय प्रसिद्ध कवि अमीर खुसरो बादशाह का दरबारी कवि था। उसने जाट लोगों की वीर भाषा को समझाने के लिए एक
पुस्तक भी बादशाह के कहने पर लिखी थी जिसका नाम “खलिक बारी” था। खुसरो ने कहा कि मैंने हरयाणा में खूब घूम कर देखा है और पंचायती फैसले भी सुने हैं और सर्वखाप पंचायत का कोई पंच ही इसको हल कर सकता है।

नवाब के लोगों ने इन्कार किया कि यह फैसला तो हो ही नहीं सकता पर परन्तु कवि अमीर खुसरो के कहने पर बादशाह बलबन ने सर्वखाप पंचायत में अपने एक खास आदमी को चिट्ठी देकर सौरम गांव (जिला मुजफ्फरनगर) भेजा (इसी गांव में शुरू से सर्वखाप पंचायत का मुख्यालय चला आ रहा है और आज भी मौजूद है)। चिट्ठी पाकर पंचायत ने प्रधान पंच चौधरी रामसहाय को दिल्ली भेजने का फैसला किया। चौधरी साहब अपने घोड़े पर सवार होकर बादशाह के दरबार में दिल्ली पहुंच गये और बादशाह ने अपने सारे दरबारी बाहर के मैदान में इकट्ठे कर लिये। वहीं पर 19 घोड़ों को भी लाइन में बंधवा दिया।

 चौधरी रामसहाय ने अपना परिचय देकर कहना शुरू किया - “शायद इतना तो आपको पता ही होगा कि हमारे यहां राजा और प्रजा का सम्बंध बाप-बेटे का होता है और प्रजा की सम्पत्ति पर राजा का भी हक होता है। इस नाते मैं जो अपना घोड़ा साथ लाया हूं, उस पर भी राजा का हक बनता है। इसलिये मैं यह अपना घोड़ा आपको भेंट करता हूं और इन 19 घोड़ों के साथ मिला देना चाहता हूं, इसके बाद मैं बंटवारे के बारे में अपना फैसला सुनाऊंगा।”

बादशाह बलबन ने इसकी इजाजत दे दी और चौधरी साहब ने अपना घोड़ा उन 19 घोड़ों वाली कतार के आखिर में बांध दिया, इस तरह कुल बीस घोड़े हो गये। अब चौधरी ने उन घोड़ों का बंटवारा इस तरह कर दिया -- आधा हिस्सा (20/2 = 10) यानि दस घोड़े उस अमीर के बड़े बेटे को दे दिये। चौथाई हिस्सा (20/4 = 5) यानि पांच घोडे मंझले बेटे को दे दिये। पांचवां हिस्सा (20/5 = 4) यानि चार घोडे छोटे बेटे को दे दिये। इस प्रकार उन्नीस (10 + 5 +4 = 19) घोड़ों का बंटवारा हो गया। बीसवां घोड़ा चौधरी रामसहाय का ही था जो बच गया।

बंटवारा करके चौधरी ने सबसे कहा - “मेरा अपना घोड़ा तो बच ही गया है, इजाजत
हो तो इसको मैं ले जाऊं....?” बादशाह ने हां कह दी और चौधरी का बहुत सम्मान और
तारीफ की।

चौधरी रामसहाय अपना घोड़ा लेकर अपने गांव सौरम की तरफ कूच करने ही वाले थे, तभी वहां पर मौजूद कई
हजार दर्शक इस पंच फैसले से गदगद होकर नाचने लगे और कवि अमीर खुसरो ने जोर से कहा - “अनपढ़ जाट
पढ़ा जैसा, पढ़ा जाट खुदा जैसा”। सारी भीड़ इसी पंक्ति को दोहराने लगी। तभी से यह कहावत सारे हरयाणा और दूसरी जगहों में फैल गई।
यहां यह बताना भी जरूरी है कि 19 घोड़ों के बंटवारे के समय विदेशी यात्री और इतिहासकार इब्न-बतूत
भी वहीं दिल्ली दरबार में मौजूद था।
यह वृत्तांत सर्वखाप पंचायत के अभिलेखागार में मौजूद
है....!!

जाट समाज ने बढ़ाया देश का गौरव

देश की सुरक्षा एवं विकास में जाट समुदाय का उल्लेखनीय योगदान रहा है। जाट समाज के युवा खिलाड़ियों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का गौरव बढ़ाया है। जाट सपूत देश की आन-शान के लिए अपनी कुर्बानी देते रहे हैं। जाट हमेशा से जुझारू रहे हैं। जाटों ने सेना में भर्ती हुये और जाटों ने रणक्षेत्र में अपनी बहादुरी को सिद्ध किया और वास्तविक क्षत्रियकहलाये ।
जाट आज खेल के मैदान में छाए हुए है । क्रिकेटकी पिच से लेकर बॉक्सिंग की रिंग तक । कुश्ती के अखाड़ा से लेकर बैडमिंटन के कोर्ट में । ये जाट खिलाड़ी न सिर्फ भारत का झंड़ा ऊंचा कर रहे है बल्कि जाटों को खुद पर गर्व करने काएक और मौका दे रहे है।
जाट प्रसिद्ध खिलाड़ी, भारत के धाकड़ बल्लेबाज़ वीरेंदर सहवाग, बॉक्सिंग स्टार विजेंद्र, ममता ख़रब महिला हॉकी टीम की कप्तान, बैडमिंटन की चैंपियन खिलाड़ी साइना नेहवाल, दिल्ली के प्रदीप सांगवान, प्रतिभाशाली महिला एथलीट कृष्णा पूनिया, दारा सिंह अपने जमाने के एक कुशल अभिनेता व कुश्ती के प्रसिद्ध खिलाड़ी रहे हैं।
दारा सिंह खुद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई नामी-गिरामी पहलवानों को कुश्ती में हरा चुके हैं। इनमें पहलवानी के इतिहास के कई बड़े नाम शामिल हैं जैसे स्टानिलॉस जिबिस्को, लू थेज और यूएस के कई पेशेवर पहलवान। साल 1996 में दारा सिंह को रेसलिंग ऑब्जर्वर न्यूजलेटर हॉल ऑफ फेम में शामिल किया गया।
भारत के इतिहास में सूरजमल को 'HINDUSTAN का प्लेटो' कहकर भी सम्बोधित किया गया है।
भारतीय राज्य व्यवस्था में सूरजमल का योगदानसैद्धान्तिक या बौद्धिक नहीं, अपितु रचनात्मक तथा व्यवहारिक था। जाट-राष्ट्र का सृजन एवं पोषण एक आश्चर्यजनक सीमा तक इस असाधारण योग्य पुरुष का ही कार्य था।
बहुत समय तक जाटों पर लुटेरा और बर्बर होने का कलंक लगा रहा। पुरानी कहावत अनपढ़ जाट पढ़ा जैसा और पढ़ा जाट खुदा जैसा........
भारत में पहली बार जाट जाति से चौ० चरणसिंह प्रधानमन्त्री बने हैं ।
SIRछोटूराम का जन्म 24 नवम्बर 1881 में झज्जर के छोटे से गांव गढ़ी सांपला में बहुत ही साधारण जाट परिवार में हुआ (झज्जर उस समय रोहतक जिले का ही अंग था)। छोटूराम का असली नाम राय रिछपाल था।
क्षत्रिय शिरोमणि वीर श्री बिग्गाजी महाराज- गौमाता के नाम से पूजी जाने वाली गाय जिसके शरीर में तैंतीस करोड़ देवी देवता निवास करते हैं कि रक्षा दुष्ट चोरों से करने के लिए भगवान ने इस देश की सबसे पवित्र कौम जाट के घर
वीर श्री बिग्गाजी महाराज के रूप में अवतार लिया और गायों की रक्षा की।
लोक देवता तेजा जी का जन्म नागौर जिले में खड़नाल गाँव में ताहर जी (थिरराज) और रामकुंवरी के घर माघ शुक्ला, चौदस संवत 1130 यथा 29 जनवरी 1074 को जाट परिवार में हुआ था।तेजाजी की गौ रक्षक एवं वचनबद्धता की गाथा लोक गीतों एवं लोक नाट्य में राजस्थान के ग्रामीण अंचल में श्रद्धाभाव से गाई व सुनाई जाती है।
महाराजा नाहर सिंह बल्लभगढ़ रियासत के राजा तथा तेवतिया खानदान से थे जो 1857 में देश कीआजादी के लिए शहीद होने वाले पहले राजा थे ।
महाराजा महेन्द्र प्रताप मुरसान-अलीगढ़ (उ.प्र.) रियासत के राजा थे और ठेनूवा वंश से सम्बन्धित थे । जिन्होंने देश की आजादी के लिए रियासत की बलि देकर 33 साल विदेशों में रहकर देश की आजादी के लिए अलख जगाई ।
जाट शासकों में महाराजा सूरजमल (शासनकाल सन 1755 से सन् 1763 तक) और उनके पुत्र जवाहर सिंह (शासन काल सन् 1763 से सन् 1768 तक ) ब्रज के इतिहास में बहुत प्रसिद्ध हैं ।
जाट रेजीमेंट जाट रेजिमेंट भारतीय सेना की एक पैदल सेना रेजिमेंट है| यह सेना की सबसे पुरानी और सबसे ज्यादा वीरता पुरस्कार विजेता रेजिमेंट है| जाट सपूत देश की आन-शान के लिए अपनी कुर्बानी देते रहे हैं।
‘राज करेगा जाट’ । मुझे जाट होने पर गर्व है।

रविवार, 17 मार्च 2013

हिन्दु धर्म के संरक्षक और महान गौ रक्षक वीर बिग्गाजी महाराज

राजस्थान के वर्तमान बीकानेर जिले मेँ स्थित गाँव बिग्गा व रिङी मेँ जाखङ जाटोँ का भोमिचारा था । ओर लम्बे समय तक जाखङोँ का इन पर अधिकार बना रहा ।
बिग्गा जी का जन्म विक्रम संवत 1358 (1301) मेँ रिङी मेँ हुआ,  हिन्दु धर्म के संरक्षक और महान गौ रक्षक बिग्गाजी ने बैसाख सुदी तीज को 1336 ईँ. मेँ गायो कि रक्षा के लिये अपने प्राण दांव पर लगा दिये

वीर  बिग्गाजी 1336 ई. मेँ अपने ससुराल मेँ साले की शादी मेँ गये तब सुबह खाने के समय कुछ औरतेँ आई ओर बिग्गाजी से सहायता की गुहार कि यहाँ के राठ मुसलमानोँ ने हमारी सारी गायोँ को छिन लिया वे उनको लेकर जंगल की ओर जा रहे हैँ । इस बात पर बिग्गाजी का खून खोल उठा ओर घोङी पर सवार होकर युध्द के लिये रवाना हो गये..
 लुटेरे संख्या मेँ अधिक थे पर वे बिग्गाजी के सामने टिक नहीँ सके । युध्द मेँ राठोँ को पराजित कर सारी गायेँ वापस ले ली थी लेकिन एक बछङे के पीछे रह जाने के कारण ज्योँही बिग्गाजी वापस मुङे तब एक राठे ने
धोखे से आकर पीछे से बिग्गाजी का सर धङ से अलग कर दिया । सर धङ से अलग होने के बाद
भी अपना काम कर रहा था ओर सब राठोँ को मार दिया था ।
देह के आदेश पर गायेँ ओर घोङी वापस अपने मूल स्थान की ओर चल पङे ।
घोङी बिग्गाजी का शीश लेकर जाखङ राज्य की ओर चल पङी । जब घोङी अपने मुंह मेँ बिग्गाजी का शीश दबाये
जाखङ राज्य की राजधानी रिङी पहुँची तो उस घोङी को बिग्गाजी की माता ने देख लिया तथा घोङी को अभिशाप दिया की जो घोङी अपने मालिक सवार का शीश कटवा देती है तो उसका मुंह नहीँ देखना चाहिए । कुदरत का खेल कि घोङी ने यह बात सुनी तो वह वापस दौङने लगी पहरेदारोँ ने दरवाजा बंद कर दिया तो घोङी ने छलांग लगाई ओर किले कि दीवार को फांद लिया,  किले के बाहर बनी खाई मेँ उस घोङी के मुंह से बिग्गाजी का शीश छुट गया जहां आज शीश देवल बना है ।
बिग्गाजी के शहीद होने का समाचार उनकी बहिन हरिया को मिला तो वह भी सती हो गयी ।
जब घोङी बिग्गाजी का धङ ला रही तो उस समय जाखङ कि राजधानी रिङी से 5 कोस दुरी पर थी ।
घोङी को देखकर वहां कि गायेँ बिदक गयी ग्वालोँ ने गायोँ को रोकने का प्रयास किया तो उनमेँ से एक गाय
घोङी से टकरा गयी तथा खून का छिँटा उछला । उसी स्थान पर बसाया गया गाँव का नाम  बिग्गा रखा गया ।
यह गाँव आज भी आबाद हे तथा इसमेँ अधिक संख्या जाखङ जाटोँ की है ।

गुरुवार, 14 मार्च 2013

धरमी धोल्या रा सिलोका

सदा मनाऊंये शारदा, माता करज्यौ मेहर
नान्यूं जलम्यौ रै नखतरां रै, गढ़ खरनाल्यौ सेहर
जलम दियो मातेसरी, धरमी धोल्या जाट
शुरो जलम्यौ सेहर में, पिंडता देखो हाथ
मात पिता परसण हुया, भगवंत दिन्हौ भेग
जोच्ची काढ यो टीपणो, नांव दिरायो तेज
रात बंदता दिन बध्या, च्चिव द्रांकर री मेहर
परण्यौ पीला पोतडां, तेजो सेहर पनेर
तड कै ऊठयौ पोर के, हलियो लीन्हो हाथ
आंटां वालौ पोतियो, थुथका रालै बाप
हाल पुराणी तो हल नुंवां, बैल्या नखरादार
हरिया मूंग मण्डोपरा, बीजै कंवर जुंवार
बैल्या बांध्या खेजडी, बैठो ढलती छांव
कांकड दीसै कांमणी, भाभज दीसै नांय
बैल्या भूखा रात रा, बिना हिरावण तेज
भाभज नै बिणती करां, कठै लगाई जेज
मण पीस्यौ मण पोवियो, मण बलदां के मोठ
घर से भूखी नीकली, मं आई अकण चोट
भोजन जीमल्यौ लाल जी, मती भरीजौ रीस
घर में सारो माय को, म्है किस विधि ल्यावां कोस
अन्न जल ल्यूं नही आप रो, सुण बीराली नार
सीधा जावांलां सासरै, भोजन बणसी त्यार
कर खेंकरो ऊठियो ,मेल मूंछ पर हाथ
गौर खोल टे गुजरी गिण गिण लेल्यो गाय
सारी दीसे चूकती, म्हारै निजरयां आयो नांय
कांण्यों म्हारौ केरड़ो, कठै थे दियो गमाय
केतो रथ को बेलिया, के सूरजी को सांड
कांण्यों म्हारौ केरडो, लादयौ पाछा जाय
रिण में तूं मरसी अकलो, सिरी नही संसार
रोय मरै थांणी मावडी, म्हेलां कल्पै नार
जाट कहीजै जातरो, छतरी तेजा नांय
गांयां भिड की गौर में, बाछडि या को बाग
लीले वाला मानवी, काल्यौ खाज्यो नाग
झाट पडै तखार री, तो जाय पिंयाला मांय
मरणे को मनै डर नहीं, नहीं जीणे में सार
जलम दियो म्हंनै जाटणी, म्है भली बजावां भार
कौल बचन तो काले तण्या, गायां ल्याजो तेज
बचनां बंबी जांवणूं, घडी पलक री जेज
दान तो चारण बामण लेवे, तीजो लेवे भाट
मं छत्री को जायो कहीजूं, बाजूं नंगीनो जाट
थूं अपराधी चौधरी, करे अनोखी बात
कठ घालूं थारै बैसणां, हिन्दवाणी रै घात
हाथ हथाली फूटरा, जीभां घालो घात
मकराणे की दवेल्यां, भली पड ावो भांत
घोडी म्हां री लीलडी, तूं सगती रो सीर
पल में हंसलो छुटियो, नंदियां खलक्यौ नीर
पीव ने लीन्हो गोद में, सती सरग में जाय
कीडो कांटो माछरयौ, नही मेले के मायं
धोल्या की धोको देवली, नंम ने जगावो रात
दसमीं चढावो चूंटयो चूरमो, अम्मर खेलो बात
तेजल चाल्यौ सासरे, ढलती मांझल रात
डावी बोली कोचरियां, सुगन सरीसा होय
कांकड़ मिलगी कामण्यां, छांणा चुगती दोय
घुड लो पाछो घेरियो, आडी फिरगी आय
गजब करया थे मावडी, पीवजी भूखो जाय
अनवी बोली आकरी, सुन्दर छोडो बांयं
नुगरी धरती मांयने, बासो ल्येवां नांयं
सलहज थाल परोसियो, भोजन जीमलयौ तेज
साल्यो बेन्याई जीमलयौ, साल्यां बिछायो सेज
पूला नीरां परेम रा, हिण-हिण हींस्यौ घोड
सूरै ने सुणियौ सेहर में, लाछां आयी दौड
बंदूकां तो खटका भरै, तखारां ने काट
डोडो बोले चौधरी, खरनाल्या को जाट
गौरज ऊभी मेडि यां, घुड ला री पकडी बाग
डुंगर ते डांडी नही, पग-पग काल्या नाग
सूरौ चाल्यो भार में, आने अमल नांयं
रिण में जावे अकेलो, पाछो किस विध आय
चांद सूरज म्यारै सांखा भरै, बांचा दयेवै तेज
बचनां बंबी आवस्यूं, म्हारै आठ पोहर की जेज
कौल बचन कर नीकल्यौ, घोड गायां के मांय
चुग चुग मारुं चोरटां, जिन्दा छोडूं नांय
मेर घणी माता तणी, सेहर पनेरां मायं

सिद्धपुरुष खेमा बाबा

Khema Baba (खेमा बाबा) (born:1876 AD), Jakhar Gotra Jat, was a social reformer born in village Baytoo Bhopji in Baytu tahsil of Barmer district of Marwar region in Rajasthan . He was a revered person in Rajasthan as well as in Gujarat,MP,UP, Hariyana And Panjab . There is a temple in village bayatu to commemorate him. Fairs are organized every year on magha sudi 9 and bhadrapada sudi 9, in which thousands of people take part.


खेमा बाबा का परिचय
संत पुरुष खेमा बाबा का आविर्भाव बायतु के धारणा धोरा स्थित जाखड़ गोत्री जाट कानाराम के घर फागुन बदी सोमवार संवत 1932 को हुआ. आपकी माताजी बायतु चिमनजी के फताराम गूजर जाट की पुत्री रूपा बाई थी.
जाखड़ जाट गाँव बायतु, घर काने अवतार ।
धरा पवित्र धारणो , फागन छत सोमवार ।।
बचपन में आप बाल-साथियों के साथ पशु चराने का काम करते थे. आपका विवाह संवत 1958 (सन 1901) की आसोज सुदी 8 शुक्रवार को नौसर गाँव में पीथाराम माचरा की पुत्री वीरां देवी के साथ हुआ. आपके एक मात्र पुत्री नेनीबाई पैदा हुई. खेमा बाबा का झुकाव प्रारंभ से ही भक्ति की तरफ था. आप अकाल की स्थिति में दूर-दूर तक गायें चराने जाया करते थे. इन्हें सिणधरी स्थित गोयणा भाखर में एक साधू तपस्या करता मिला. इनसे आपने बहुत कुछ सीखा तथा इनकी रूचि भक्ति की तरफ बढ़ गयी. गूदड़ गद्दी के रामनाथ खेड़ापा से संवत 1961 में खेमसिद्ध ने उपदेश लेकर दीक्षा ग्रहण की.

खेमा बाबा की चमत्कारिक शक्तियां
गोयणा भाखर सिणधरी में तपस्या करने के बाद बायतु भीमजी स्थित धारणा धोरे पर भक्ति की. काला बाला व सर्पों के देवता के रूप में कई पर्चे दिए तथा जनता के दुःख-दर्द दूर किये. आपने अरणे का पान खिला कर अमरा राम का दमा ठीक किया. आज भी मान्यता है कि बायतु में स्थित खेम सिद्ध के इस चमत्कारिक अरने का पान खाने से दमा दूर हो जाता है. आपने अपने भक्त धोली डांग (मालवा) निवासी श्रीचंद सेठ के पुत्र को जीवित किया. सिणधरी व भाडखा में कोढियों की कोढ़ दूर की. सरणू गाँव में गंगाराम रेबारी को गंगा तालाब बनाने का वचन दिया. आपके परचे से गाँव भूंका में सूखी खेजड़ी हरी हो गयी. भंवराराम सुथार लोहिड़ा, रतनाराम सियाग, चोखाराम डूडी, रूपाराम लोल, जीया राम बेनीवाल, पुरखाराम नेहरा सहित असंख्य भक्तों का दुःख दूर हुआ. जाहरपीर गोगाजी, वीर तेजाजी, वभुतासिद्ध कि पीढ़ी के इस चमत्कारिक संत कि आराधना मात्र से ही सर्प, बांडी, बाला (नारू) रोग ठीक हो जाते हैं.खेमा बाबा ने गायों के चरवाहे के रूप में जीवन प्रारंभ किया. शिव की भक्ति के पुण्य प्रताप एवं गायों की अमर आशीष से देवता के रूप में पूजनीय हो गए, जिनके नाम मात्र से ही सर्प का विष उतर जाता है.
खेमा बाबा का मंदिर
आपने भाद्रपद शुक्ल आठंम को बायतु भीमजी में समाधी ली. इसके पश्चात् आपके परचों की ख्याति न केवल बायतु बल्कि सम्पूर्ण मारवाड़ में फ़ैल गयी. सम्पूर्ण मालानी में गाँव-गाँव आपके आराधना स्थल मंदिर बने हैं. बायतु चिमनजी , पालरिया धाम , चारलाई कलां , रावतसर , छोटू , धारणा धोरा , रतेऊ ,जाणियों की ढाणी  , वीर तेजा मंदिर (भगत की कोठी) में आपके मंदिर बने हैं. चैत्र, भाद्रपद एवं माघ  की शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन खेमा बाबा के मंदिरों में मेला भरता है. इनकी समाधी स्थल बायतु भोपजी में हजारों की संख्या में श्रदालु अपने अराध्य देव के दर्शन करने आते हैं.
बाड़मेर जिले के बायतु कसबे में स्थित सिद्धखेमा बाबा के मंदिर में माघ माह के शुक्ल पक्ष में नवमी को मेला भरता है. इसी तरह भादवा माह की शुक्ल पक्ष की नवमी को भी मेला लगता है. इन मेलों में ग्रामीणों का अपार सैलाब उमड़ पड़ता है. खेमा बाबा के बारे में कहा जाता है कि उनको गोगाजी का वरदान प्राप्त है, जिससे खेमा बाबा की श्रद्धा से सांप तथा बिच्छू का काटा ठीक हो जाता है. निकट ही गोगाजी का मंदिर है जो स्वयं खेमा बाबा के इष्ट देवता माने जाते हैं. इसी दिन इस मंदिर पर भी जातरुओं का जमघट लगा रहता है. खेमा बाबा साँपों के सिद्ध देवता माने जाते हैं.
वर्तमान में उनकी समाधी पर भव्य मंदिर बना है जहाँ प्रतिवर्ष दो बार मेला भरता है. इस परिसर में पश्चिम की और भव्य मंदिर स्थित है.मंदिर के एक कमरे में बाबा की समाधी पर अब उनकी प्रतिमाएँ हैं, जहाँ स्वयं खेमा बाबा उनकी पत्नी वीरा देवी के तथा नाग देवता की प्रतिमाएँ हैं. यहाँ एक विशाल धर्मशाला भी है जहाँ भक्त लोग ठहरते हैं. मंदिर के परिसर में ही नीम के एक पेड़ पर सफ़ेद कपडे की तान्तियाँ लगी हुई हैं. यहाँ आने वाले अधिकांश ग्रामीण इस पेड़ पर तांती अवश्य बांधते हैं. इससे उनकी मन्नत पूरी होती है.
बायतु के मंदिर के अलावा भी बाड़मेर में खेमा बाबा के दर्जनों मंदिर हैं. बायतु के मुख्य मन्दिर पर लगने वाले मेलों में 5-7 लाख तक जातरु पधारते हैं. मेले में बाड़मेर, जैसलमेर, नागौर से अधिकांश लोग आते हैं परन्तु सीकर, चुरू, झुंझुनू, बीकानेर तथा गुजरात से भी लोग आने लगे हैं. इस दिन लोक भजनों में उनके भक्त कहते हैं -
खेमा बाबा थारो मेलो लागे भारी, रे बाबा मेलोलागे भारी
खेमा बाबा हैलो हाम्बलो मारो, रे बाबा हैलो हाम्बलो मारो.....

सिद्धाचार्य श्री देव जसनाथ जी की आरती

जसनाथी सिद्ध समाज को जसनाथ जी महाराज का वरदान है कि वे अग्नि नृत्य कर सकते हैं। जलती आग पर यह लोग ऐसे नाचे जैसे फूलों की पंखुडयों पर नाच रहे हों। जलते अंगारों को इस तरह खाया जैसे कोई मिठाई खा रहे हो। इस अग्नि नृम्य को देखकर लोगों के रोमांच की सीमा नहीं रहती.....


सिद्धाचार्य श्री देव जसनाथ जी की आरती

ॐ जय श्री जसनाथा, स्वामी जय श्री जसनाथा ।
बार-बार आदेश, नमन करत माथा ।। ॐ
तुम जसनाथ सिद्धेश्वर स्वामी मात तात भ्राता ।
अजय अखंड अगोचर , भक्तन के त्राता ।। ॐ
धर्म सुधारण पाप विडारण, भागथलीआता ।
अविचल आसन गोरख , गुरु के गुण गाता ।। ॐ
परमहंस परिपूर्ण ज्ञानी,परमोन्नती करता ।
ब्रह्म तपो बल योगी , करमवीर धरता ।। ॐ
जाल वृक्ष अति उत्तम सुन्दर , शांत सुखद छाता ।
योग युक्त जसनाथ विराजे , मन मोहन दाता ।। ॐ
श्री हांसो जी चंवर दुलावत, नमन करत पाला ।
हरोजी करत आरती गुरु के गुण गाता ।। ॐ
भक्त्त लोग सब गावत , जोड़ जुगल हाथा ।
सुवरण थाल आरती ,करत रुपांदे माता ।। ॐ
सुर नर मुनि जन जसवंत गावत , ध्यावत नव नाथा ।
सिद्ध चौरासी योगी , जसवंत मन राता ।। ॐ
जतमत योगी जगत वियोगी , प्रेम युक्त ध्याता ।
सूर्य ज्योतिमय दिव्य रूप के , शुभ दर्शन पाता ।। ॐ

दहकते अंगारों पर नाचते हैं बाबा

अंधविश्वास जब हद से गुजर जाए तो आस्था का रूप और रंग बदल जाता है.
आस्था कभी अग्पिथ दिखाई देने लगती है तो कभी आस्था में अंगारे दिखाई देने लगते है.भक्ति का ऐसा हैरतअंगेज नज़ारा देखकर आपको भी अपनी आंखों पर विश्वास नहीं होगा.ये भक्त बेधड़क येदहकते अंगारों पर नाचते जाते हैं.वहां बज रहासंगीत का शोर इनका जोश और बढ़ा देता है.
बीकानेर से करीब 45 किलोमीटर दूर गांव कतरियासर में लगता है सिद्ध नाथ सम्प्रदाय के लोगों का मेला ये गांव नहीं तपोभूमि है इनसिद्धों के गुरु के जननाथजी महाराज की.
कहते हैं कि बाबा जसनाथ जी महाराज के विशेष पुजारियों को एक आर्शीवाद हासिल है जिसके चलते इन साधुओं के पांव आग पर नाचने से जलते नहीं है.
भक्त ही नहीं सारा गांव आस्था के इस अनोखे रूप में गहरा विश्वास रखता है लोग तो यहां तककहते है कि बाबा के साधु ना सिर्फ आग पर नाचते है. जलते अंगारों को निगल भी जाते हैं.
हर साल यहां इस विशेष अग्नि नृत्य का आयोजन किया जाता है.लकड़ियों को जलाकर अंगारे बनाए जाते हैं और फिर उन अंगारों पर बाबा के भक्त नृत्य करते हैं.

राजस्थान के प्रमुख लोक देवता

क्षत्रिय शिरोमणि वीर श्री बिग्गाजी महाराज-राजस्थान के वर्तमान BIKANER जिले में स्थित गाँव बिग्गा व रिड़ी में जाखड़ जाटों का भोमिचारा था और लंबे समय तक जाखड़ों का इन परअधिकार बना रहा. बिग्गाजी का जन्म विक्रम संवत 1358 ( १३०१ ) में रिड़ी में हुआ रहा. बिग्गाजी ने सन १३३६ में गायों की डाकुओं से रक्षा करने में अपने प्राण दांव पर लगा दिये थे. ऐसी लोक कथा प्रचलित है कि बिग्गाजी १३३६में अपनी ससुराल में साले की शादी में गए हुए थे. रात्रि विश्राम के बाद सुबह खाने के समय मिश्रा ब्राहमणों की कुछ औरतें आई और बिग्गाजी से सहायता की गुहार की. बिग्गाजी ने कहा "धर्म रक्षक क्षत्रियों को नारी के आंसू देखने की आदत नहीं है. आप अपनी समस्या बताइए." मिश्रा ब्राहमणियों ने अपना दुखड़ा सुनाया कि यहाँ के राठ मुसलामानों ने हमारी सारी गायों को छीन लिया है. वे उनको लेकर जंगल की और गए हैं. कृपा करके हमारी गायों को छुड़ाओ. वहीं से बिग्गाजी अपने लश्कर के साथ गायों को छुडाने के लिए चल पड़े. मालसर से ३५ कोस दूर जेतारण में बिग्गाजी का राठों से मुकाबला हुआ. लुटेरे संख्या में कहीं अधिक थे. दोनों में घोर युद्ध हुआ. काफी संख्या में राठों के सर काट दिए गए. वहां पर इतना रक्त बहा कि धरती खून से लाल हो गई. जब लगभग
सभी गायों को वापिस चलाने का काम पूरा होने ही वाला था कि एक राठ ने धोके से आकर पीछे से बिग्गाजी का सर धड़ से अलग कर दिया. आशोज शुक्ला त्रयोदशी को बिग्गाजी ने देवता होने का सबूत दिया था. वहां पर उनका चबूतरा बना हुआ है. उसी दिन से वहां पर पूजापाठ होने लगी.बिग्गाजी १३३६ में वीरगति को प्राप्त हुए थे. इस स्थान पर एक बड़ा भारी मेला लगता है. लोगों में मान्यता है कि गायों में किसी प्रकार की बीमारी होने पर बिग्गाजी के नाम की मोली गाय के गले में बांधने से सभी रोग ठीक हो जाते हैं. बिग्गाजी के उपासक त्रयोदसी को बिलोवना नहीं करते हैं तथा उस दिन जागरण करते हैं और बिग्गाजी के गीत गाते हैं. इसकी याद में भादवा सुदी १३ को ग्राम बिग्गा व रिड़ी में स्थापित बिग्गाजी के मंदिरों में मेले भरते हैं जहाँ हरियाणा, पंजाब,उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात गंगानगर तथा अन्य विभिन्न स्थानों से आए भक्तों द्वारा सृद्धा के साथ बिग्गाजी की पूजा की जाती है.


वीर श्री तेजाजी-तेजाजी मुख्यत: राजस्थान के लेकिन उतने ही उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात और कुछ हद
तक पंजाब के भी लोक-नायक हैं।राजस्थानी का ‘तेजा’ लोक-गीत तो इनमें शामिल है ही। वे इन प्रदेशों के सभी समुदायों के आराध्य हैं। तेजाजी का जन्म राजस्थान के नागौर जिले में खरनाल गाँव में माघ शुक्ला, चौदस वार गुरुवार संवत ग्यारह सौ तीस, तदनुसार २९ जनवरी, १०७४ , को धोलिया गोत्र के जाट परिवार में हुआ था। उनके पिता चौधरी ताहरजी (थिरराज) राजस्थान के नागौर जिले के खरनाल गाँव के मुखिया थे।
लोग तेजाजी के मन्दिरों में जाकर पूजा-अर्चना करते हैं और दूसरी मन्नतों के साथ-साथ सर्प-दंश से होने वाली मृत्यु के प्रति अभय भी प्राप्त करते हैं। स्वयं तेजाजी की मृत्यु, जैसा कि उनके आख्यान से विदित होता है, सर्प-दंश से ही हुई थी। बचनबद्धता का पालन करने के लिए तेजाजी ने स्वयं को एक सर्प के सम्मुख प्रस्तुत कर दिया था। वे युद्ध भूमि से आए थे और उनके शरीर का कोई भी हिस्सा हथियार की मार से अक्षत्‌ नहीं था। घावों से भरे शरीर पर अपना दंश रखन को सर्प को ठौर नजर नहीं आई, तो उसने काटने से इन्कार कर दिया। वचन-भंग होता देख घायल तेजाजी ने अपना मुँह खोल कर जीभ सर्प के सामने फैला दी थी और सर्प ने उसी पर अपना दंश रख कर उनके प्राण हर लिए थे। तेजाजी का निर्वाण दिवस भादवा सुदी १० संवत ११६०, तदानुसार २८ अगस्त ११०३ , माना जाता है ।