गुरुवार, 14 मार्च 2013

सिद्धपुरुष खेमा बाबा

Khema Baba (खेमा बाबा) (born:1876 AD), Jakhar Gotra Jat, was a social reformer born in village Baytoo Bhopji in Baytu tahsil of Barmer district of Marwar region in Rajasthan . He was a revered person in Rajasthan as well as in Gujarat,MP,UP, Hariyana And Panjab . There is a temple in village bayatu to commemorate him. Fairs are organized every year on magha sudi 9 and bhadrapada sudi 9, in which thousands of people take part.


खेमा बाबा का परिचय
संत पुरुष खेमा बाबा का आविर्भाव बायतु के धारणा धोरा स्थित जाखड़ गोत्री जाट कानाराम के घर फागुन बदी सोमवार संवत 1932 को हुआ. आपकी माताजी बायतु चिमनजी के फताराम गूजर जाट की पुत्री रूपा बाई थी.
जाखड़ जाट गाँव बायतु, घर काने अवतार ।
धरा पवित्र धारणो , फागन छत सोमवार ।।
बचपन में आप बाल-साथियों के साथ पशु चराने का काम करते थे. आपका विवाह संवत 1958 (सन 1901) की आसोज सुदी 8 शुक्रवार को नौसर गाँव में पीथाराम माचरा की पुत्री वीरां देवी के साथ हुआ. आपके एक मात्र पुत्री नेनीबाई पैदा हुई. खेमा बाबा का झुकाव प्रारंभ से ही भक्ति की तरफ था. आप अकाल की स्थिति में दूर-दूर तक गायें चराने जाया करते थे. इन्हें सिणधरी स्थित गोयणा भाखर में एक साधू तपस्या करता मिला. इनसे आपने बहुत कुछ सीखा तथा इनकी रूचि भक्ति की तरफ बढ़ गयी. गूदड़ गद्दी के रामनाथ खेड़ापा से संवत 1961 में खेमसिद्ध ने उपदेश लेकर दीक्षा ग्रहण की.

खेमा बाबा की चमत्कारिक शक्तियां
गोयणा भाखर सिणधरी में तपस्या करने के बाद बायतु भीमजी स्थित धारणा धोरे पर भक्ति की. काला बाला व सर्पों के देवता के रूप में कई पर्चे दिए तथा जनता के दुःख-दर्द दूर किये. आपने अरणे का पान खिला कर अमरा राम का दमा ठीक किया. आज भी मान्यता है कि बायतु में स्थित खेम सिद्ध के इस चमत्कारिक अरने का पान खाने से दमा दूर हो जाता है. आपने अपने भक्त धोली डांग (मालवा) निवासी श्रीचंद सेठ के पुत्र को जीवित किया. सिणधरी व भाडखा में कोढियों की कोढ़ दूर की. सरणू गाँव में गंगाराम रेबारी को गंगा तालाब बनाने का वचन दिया. आपके परचे से गाँव भूंका में सूखी खेजड़ी हरी हो गयी. भंवराराम सुथार लोहिड़ा, रतनाराम सियाग, चोखाराम डूडी, रूपाराम लोल, जीया राम बेनीवाल, पुरखाराम नेहरा सहित असंख्य भक्तों का दुःख दूर हुआ. जाहरपीर गोगाजी, वीर तेजाजी, वभुतासिद्ध कि पीढ़ी के इस चमत्कारिक संत कि आराधना मात्र से ही सर्प, बांडी, बाला (नारू) रोग ठीक हो जाते हैं.खेमा बाबा ने गायों के चरवाहे के रूप में जीवन प्रारंभ किया. शिव की भक्ति के पुण्य प्रताप एवं गायों की अमर आशीष से देवता के रूप में पूजनीय हो गए, जिनके नाम मात्र से ही सर्प का विष उतर जाता है.
खेमा बाबा का मंदिर
आपने भाद्रपद शुक्ल आठंम को बायतु भीमजी में समाधी ली. इसके पश्चात् आपके परचों की ख्याति न केवल बायतु बल्कि सम्पूर्ण मारवाड़ में फ़ैल गयी. सम्पूर्ण मालानी में गाँव-गाँव आपके आराधना स्थल मंदिर बने हैं. बायतु चिमनजी , पालरिया धाम , चारलाई कलां , रावतसर , छोटू , धारणा धोरा , रतेऊ ,जाणियों की ढाणी  , वीर तेजा मंदिर (भगत की कोठी) में आपके मंदिर बने हैं. चैत्र, भाद्रपद एवं माघ  की शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन खेमा बाबा के मंदिरों में मेला भरता है. इनकी समाधी स्थल बायतु भोपजी में हजारों की संख्या में श्रदालु अपने अराध्य देव के दर्शन करने आते हैं.
बाड़मेर जिले के बायतु कसबे में स्थित सिद्धखेमा बाबा के मंदिर में माघ माह के शुक्ल पक्ष में नवमी को मेला भरता है. इसी तरह भादवा माह की शुक्ल पक्ष की नवमी को भी मेला लगता है. इन मेलों में ग्रामीणों का अपार सैलाब उमड़ पड़ता है. खेमा बाबा के बारे में कहा जाता है कि उनको गोगाजी का वरदान प्राप्त है, जिससे खेमा बाबा की श्रद्धा से सांप तथा बिच्छू का काटा ठीक हो जाता है. निकट ही गोगाजी का मंदिर है जो स्वयं खेमा बाबा के इष्ट देवता माने जाते हैं. इसी दिन इस मंदिर पर भी जातरुओं का जमघट लगा रहता है. खेमा बाबा साँपों के सिद्ध देवता माने जाते हैं.
वर्तमान में उनकी समाधी पर भव्य मंदिर बना है जहाँ प्रतिवर्ष दो बार मेला भरता है. इस परिसर में पश्चिम की और भव्य मंदिर स्थित है.मंदिर के एक कमरे में बाबा की समाधी पर अब उनकी प्रतिमाएँ हैं, जहाँ स्वयं खेमा बाबा उनकी पत्नी वीरा देवी के तथा नाग देवता की प्रतिमाएँ हैं. यहाँ एक विशाल धर्मशाला भी है जहाँ भक्त लोग ठहरते हैं. मंदिर के परिसर में ही नीम के एक पेड़ पर सफ़ेद कपडे की तान्तियाँ लगी हुई हैं. यहाँ आने वाले अधिकांश ग्रामीण इस पेड़ पर तांती अवश्य बांधते हैं. इससे उनकी मन्नत पूरी होती है.
बायतु के मंदिर के अलावा भी बाड़मेर में खेमा बाबा के दर्जनों मंदिर हैं. बायतु के मुख्य मन्दिर पर लगने वाले मेलों में 5-7 लाख तक जातरु पधारते हैं. मेले में बाड़मेर, जैसलमेर, नागौर से अधिकांश लोग आते हैं परन्तु सीकर, चुरू, झुंझुनू, बीकानेर तथा गुजरात से भी लोग आने लगे हैं. इस दिन लोक भजनों में उनके भक्त कहते हैं -
खेमा बाबा थारो मेलो लागे भारी, रे बाबा मेलोलागे भारी
खेमा बाबा हैलो हाम्बलो मारो, रे बाबा हैलो हाम्बलो मारो.....

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