गुरुवार, 14 मार्च 2013

सिद्धाचार्य श्री देव जसनाथ जी की आरती

जसनाथी सिद्ध समाज को जसनाथ जी महाराज का वरदान है कि वे अग्नि नृत्य कर सकते हैं। जलती आग पर यह लोग ऐसे नाचे जैसे फूलों की पंखुडयों पर नाच रहे हों। जलते अंगारों को इस तरह खाया जैसे कोई मिठाई खा रहे हो। इस अग्नि नृम्य को देखकर लोगों के रोमांच की सीमा नहीं रहती.....


सिद्धाचार्य श्री देव जसनाथ जी की आरती

ॐ जय श्री जसनाथा, स्वामी जय श्री जसनाथा ।
बार-बार आदेश, नमन करत माथा ।। ॐ
तुम जसनाथ सिद्धेश्वर स्वामी मात तात भ्राता ।
अजय अखंड अगोचर , भक्तन के त्राता ।। ॐ
धर्म सुधारण पाप विडारण, भागथलीआता ।
अविचल आसन गोरख , गुरु के गुण गाता ।। ॐ
परमहंस परिपूर्ण ज्ञानी,परमोन्नती करता ।
ब्रह्म तपो बल योगी , करमवीर धरता ।। ॐ
जाल वृक्ष अति उत्तम सुन्दर , शांत सुखद छाता ।
योग युक्त जसनाथ विराजे , मन मोहन दाता ।। ॐ
श्री हांसो जी चंवर दुलावत, नमन करत पाला ।
हरोजी करत आरती गुरु के गुण गाता ।। ॐ
भक्त्त लोग सब गावत , जोड़ जुगल हाथा ।
सुवरण थाल आरती ,करत रुपांदे माता ।। ॐ
सुर नर मुनि जन जसवंत गावत , ध्यावत नव नाथा ।
सिद्ध चौरासी योगी , जसवंत मन राता ।। ॐ
जतमत योगी जगत वियोगी , प्रेम युक्त ध्याता ।
सूर्य ज्योतिमय दिव्य रूप के , शुभ दर्शन पाता ।। ॐ

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