सोमवार, 30 सितंबर 2013

राजनितिक शख्शियत -बाड़मेर की राजनीती के भीष्म पितामह गंगा राम चौधरी

बाड़मेर जिले की राजनितिक की दशा और दिशा दोनों तय करते थे गंगाराम चौधरी


गंगाराम चौधरी का जन्म राजस्थान के बाड़मेर जिले की रामसर तहसील के खडीन) गाँव में 1 मार्च 1922 को मालानी के किसान क्रांति के जनक रामदान चौधरी (डऊकिया) और किस्तुरी देवी भाकर के घर हुआ. रामदान चौधरी (डऊकिया) के पांच पुत्र थे :केसरी मल, लालसिंह हाकम, गंगाराम, फ़तेह सिंह और खंगारमल.


वकालत से जनसेवा
गंगाराम चौधरी ने बी.ए. एल.एल.बी. की डिग्रियां हासिल कर वकालत को अपना पैसा बनाया. इससे पूर्व आपने रेलवे में एल.डी.सी. का कार्य किया. जागीरदारी के समय किसानों पर होने वाले अत्याचारों, चौरी-डकैती, जमीन सम्बन्धी विवादों की न्यायलय में पुरजोर पैरवी की, गरीब किसानों की निशुल्क पैरवी की. सीमान्त क्षेत्र में आत्मरक्षार्थ बन्दूक लाईसेंस दिलवाया. पिताजी रामदान चौधरी के नेतृत्व में किसान सभा एवं किसान जाग्रति हेतु आपने इतने काम करवाए कि आज आप राजस्व के टोडर मल कहे जाते हैं.

राजनीती में आदर्श पिता रामदान चौधरी के पुत्र गंगाराम चौधरी एक मात्र विधायक हें जिन्होंने तीन विधानसभा क्षेत्रो का प्रतिनिधित्व किया।
राजनीती में प्रधान से लेकर मंत्री तक का सफ़र तय कर गंगा राम चौधरी ने अपने आपको कद्दावर  नेता के
रूप में स्थापित किया। उन्हें नाथूराम मिर्धा के समकक्ष नेता मानते थे ,बाड़मेर जिले की राजनीती गंगाराम से शुरू हो कर गंगाराम पर ख़त्म हो जाती। उनका राजनितिक कद राजनैतिक पार्टियों पर हमेशा भरी रहा कांग्रेस ,भाजपा ,जनता दल ,, और निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे ,चुनाव जीतते गए ,उनकी राजनितिक क्षमता अकूत
थी जिसका यहाँ कोई सानी नहीं। गंगा राम ,अब्दुल हादी ,श्रीमती मदन कौर लाज़वाब तिकड़ी थी। गंगाराम राज्य सरकारों में मंत्री भी रहे ,राजस्व मंत्री के रूप में वे थे ,उन्होंने किसानो को बड़ी राहत दी। बाड़मेर ,गुडा चौहटन से विधायक रहे ,जिला प्रमुख भी रहे।

 गंगाराम चौधरी ने राजनीती में आकर राजस्थान के विभिन्न विभागों में मंत्री रहकर जनता की सेवा की. जनप्रतिनिधि के रूप में आपका पदार्पण धोरीमन्ना पंचायत समिति के प्रधान के रूप में 1959 में हुआ.

1962 में गुढ़ा मालानी से विधायक, 1980 तक लगातार गुढा मालानी व बाड़मेर से विधायक बन
विधान सभा में प्रतिनिधित्व किया.
1967 में राजस्व उप-मंत्री बने.
1977 में कांग्रेस छोड़कर चरण सिंह के साथ कांग्रेस (अर्स) में आये.
1985 में बाड़मेर से विधायक चुने गए.
1985 -1990 बाड़मेर से लोकदल के सदस्य रहे
1990 - 1992 बाड़मेर से जनता दल के सदस्य रहे.
शेखावत सरकार में 24 नवम्बर 1990 से 15 दिसंबर 1992 तक राजस्व, भूमि सुधार एवं उपनिवेश विभागों में मंत्री रहे.
*1993 में निर्दलीय विधायक चुने गए और शेखावत सरकार में समर्थन देकर राजस्व एवं उपनिवेश विभागों में मंत्री रहे.
31 अगस्त 1998 को 20 वर्ष बाद कांग्रेस में आये तथा बाड़मेर जिला परिषद् के प्रमुख बने.
दिसंबर 2003 में भाजपा में आकर चोहटन विधायक बने.
आपने 30 वर्ष तक राजस्थान विधान सभा में बाड़मेर का प्रनिनिधित्व किया तथा 13 वर्ष मंत्रिमंडल के
सदस्य रहे.

रविवार, 22 सितंबर 2013


JAAT

स्वयं को महान् कहने से कोई महान् नहीं बनता । महान्
किसी भी व्यक्ति व कौम को उसके महान् कारनामे बनाते
हैं और उन कारनामों को दूसरे लोगों को देर-सवेर स्वीकार
करना ही पड़ता है। देव-संहिता को लिखने वाला कोई
जाट नहीं था, बल्कि एक ब्राह्मणवादी था जिसके हृदय में
इन्सानियत थी उसने इस सच्चाई को अपने हृदय
की गहराई से शंकर और पार्वती के संवाद के रूप में बयान
किया कि जब पार्वती ने शंकर जी से पूछा कि ये जाट कौन
हैं, तो शंकर जी ने इसका उत्तर इस प्रकार दिया -
महाबला महावीर्या महासत्यपराक्रमा ः |
सर्वांगे क्षत्रिया जट्टा देवकल्पा दृढ़व्रताः ||15||
(देव संहिता)
अर्थात् - जाट महाबली, अत्यन्त वीर्यवान् और प्रचण्ड
पराक्रमी हैं । सभी क्षत्रियों में यही जाति सबसे पहले
पृथ्वी पर शासक हुई । ये देवताओं की भांति दृढ़
निश्चयवाले हैं । इसके अतिरिक्त विदेशी व
स्वदेशी विद्वानों व महान् कहलाए जाने वाले
महापुरुषों की जाट कौम के प्रति समय-समय पर दी गई
अपनी राय और टिप्पणियां हैं जिन्हें कई पुस्तकों से संग्रह
किया गया है लेकिन अधिकतर
टिप्पणियां अंग्रेजी की पुस्तक हिस्ट्री एण्ड स्टडी ऑफ
दी जाट्स से ली गई है जो कनाडावासी प्रो० बी.एस.
ढ़िल्लों ने विदेशी पुस्तकालयों की सहायता लेकर लिखी है
-
1. इतिहासकार मिस्टर स्मिथ - राजा जयपाल एक महान्
जाट राजा थे । इन्हीं का बेटा आनन्दपाल हुआ जिनके बेटे
सुखपाल राजा हुए जिन्होंने मुस्लिम धर्म अपनाया और
‘नवासशाह’ कहलाये । (यही शाह मुस्लिम जाटों में एक
पदवी प्रचलित हुई । भटिण्डा व अफगानिस्तान का शाह
राज घराना इन्हीं के वंशज हैं - लेखक) ।
2. बंगला विश्वकोष - पूर्व सिंध देश में जाट गणेर प्रभुत्व
थी । अर्थात् सिंध देश में जाटों का राज था ।
3. अरबी ग्रंथ सलासीलातुत तवारिख - भारत के नरेशों में
जाट बल्हारा नरेश सर्वोच्च था । इसी सम्राट् से
जाटों में बल्हारा गोत्र प्रचलित हुआ - लेखक ।
4. स्कैंडनेविया की धार्मिक पुस्तक एड्डा - यहां के
आदि निवासी जाट (जिट्स) पहले आर्य कहे जाते थे
जो असीगढ़ के निवासी थे ।
5. यात्री अल बेरूनी - इतिहासकार - मथुरा में वासुदेव से
कंस की बहन से कृष्ण का जन्म हुआ । यह परिवार जाट
था और गाय पालने का कार्य करता था ।
6. लेखक राजा लक्ष्मणसिंह - यह प्रमाणित सत्य है
कि भरतपुर के जाट कृष्ण के वंशज हैं ।
इतिहास के संक्षिप्त अध्ययन से मेरा मानना है
कि कालान्तर में यादव अपने को जाट कहलाये जिनमें
एकजुट होकर लड़ने और काम करने की प्रवृत्ति थी और
अहीर जाति का एक बड़ा भाग अपने को यादव कहने लगा ।
आज भी भारत में बहुत अहीर हैं जो अपने को यादव
नहीं मानते और गवालावंशी मानते हैं ।
7. मिस्टर नैसफिल्ड - The Word Jat is nothing
more than modern Hindi Pronunciation of
Yadu or Jadu the tribe in which Krishna was
born. अर्थात् जाट कुछ और नहीं है बल्कि आधुनिक
हिन्दी यादू-जादु शब्द का उच्चारण है, जिस कबीले में
श्रीकृष्ण पैदा हुए।
दूसरा बड़ा प्रमाण है कि कृष्ण जी के गांव नन्दगांव व
वृन्दावन आज भी जाटों के गांव हैं । ये सबसे बड़ा भौगोलिक
और सामाजिक प्रमाण है । (इस सच्चाई को लेखक ने स्वयं
वहां जाकर ज्ञात किया ।)
8. इतिहासकार डॉ० रणजीतसिंह - जाट तो उन
योद्धाओं के वंशज हैं जो एक हाथ में रोटी और दूसरे हाथ में
शत्रु का खून से सना हुआ मुण्ड थामते रहे ।
9. इतिहासकार डॉ० धर्मचन्द्र विद्यालंकार - आज
जाटों का दुर्भाग्य है कि सारे संसार
की संस्कृति को झकझोर कर देने वाले जाट आज
अपनी ही संस्कृति को भूल रहे हैं ।
10. इतिहासकार डॉ० गिरीशचन्द्र द्विवेदी -
मेरा निष्कर्ष है कि जाट संभवतः प्राचीन सिंध
तथा पंजाब के वैदिक वंशज प्रसिद्ध लोकतान्त्रिक
लोगों की संतान हैं । ये लोग महाभारत के युद्ध में
भी विख्यात थे और आज भी हैं ।
11. स्वामी दयानन्द महाराज आर्यसमाज के संस्थापक ने
जाट को जाट देवता कहकर अपने प्रसिद्ध ग्रंथ
सत्यार्थप्रकाश में सम्बोधन किया है । देवता का अर्थ है
देनेवाला । उन्होंने कहा कि संसार में जाट जैसे पुरुष
हों तो ठग रोने लग जाएं ।
12. प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ तथा हिन्दू विश्वविद्यालय
बनारस के संस्थापक महामहिम मदन मोहन मालवीय ने
कहा - जाट जाति हमारे राष्ट्र की रीढ़ है । भारत
माता को इस वीरजाति से बड़ी आशाएँ हैं । भारत
का भविष्य जाट जाति पर निर्भर है ।
13. दीनबन्धु सर छोटूराम ने कहा - हे ईश्वर, जब
भी कभी मुझे दोबारा से इंसान जाति में जन्म दे तो मुझे
इसी महान् जाट जाति के जाट के घर जन्म देना ।
14. मुस्लिमों के पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहब ने कहा - ये
बहादुर जाट हवा का रुख देख लड़ाई का रुख पलट देते हैं ।
(सलमान सेनापतियों ने भी इनकी खूब
प्रतिष्ठा की इसका वर्णन मुसलमानों की धर्मपुस्तक
हदीस में भी है - लेखक) ।
15. हिटलर (जो स्वयं एक जाट थे), ने कहा - मेरे शरीर में
शुद्ध आर्य नस्ल का खून बहता है । (ये वही जाट थे
जो वैदिक संस्कृति के स्वस्तिक चिन्ह (卐) को जर्मनी ले गये
थे - लेखक)।
16. कर्नल जेम्स टॉड राजस्थान इतिहास के रचयिता ।
(i): उत्तरी भारत में आज जो जाट किसान खेती करते पाये
जाते हैं ये उन्हीं जाटों के वंशज हैं जिन्होंने एक समय मध्य
एशिया और यूरोप को हिलाकर रख दिया था ।
(ii): राजस्थान में राजपूतों का राज आने से पहले
जाटों का राज था ।
(iii): युद्ध के मैदान में जाटों को अंग्रेज पराजित नहीं कर
सके ।
(iv): ईसा से 500 वर्ष पूर्व जाटों के नेता ओडिन ने
स्कैण्डेनेविया में प्रवेश किया।
(v): एक समय राजपूत जाटों को खिराज (टैक्स) देते थे ।
17. यूनानी इतिहासकार हैरोडोटस ने लिखा है
(i) There was no nation in the world equal to
the jats in bravery provided they had unity
अर्थात्- संसार में जाटों जैसा बहादुर कोई नहीं बशर्ते
इनमें एकता हो । (यह इस प्रसिद्ध यूनानी इतिहासकार
ने लगभग 2500 वर्ष पूर्व में कहा था । इन दो लाइनों में
बहुत कुछ है । पाठक कृपया इसे फिर एक बार पढें । यह
जाटों के लिए मूलमंत्र भी है – लेखक )
(ii) जाट बहादुर रानी तोमरिश ने प्रशिया के महान
राजा सायरस को धूल चटाई थी ।
(iii) जाटों ने कभी निहत्थों पर वार नहीं किया ।
18. महान् सम्राट् सिकन्दर जब जाटों के बार-बार
आक्रमणों से तंग आकर वापिस लौटने लगे तो कहा- इन
खतरनाक जाटों से बचो ।
19. एक पम्पोनियस नाम के प्राचीन इतिहासकार ने
कहा - जाट युद्ध तथा शत्रु की हत्या से प्यार करते हैं ।
20. हमलावर तैमूरलंग ने कहा - जाट एक बहुत ही ताकतवर
जाति है, शत्रु पर टिड्डियों की तरह टूट पड़ती है,
इन्होंने मुसलमानों के हृदय में भय उत्पन्न कर दिया।
21. हमलावर अहमदशाह अब्दाली ने कहा - जितनी बार
मैंने भारत पर आक्रमण किया, पंजाब में खतरनाक जाटों ने
मेरा मुकाबला किया । आगरा, मथुरा व भरतपुर के जाट
तो नुकीले काटों की तरह हैं ।
22. एक प्रसिद्ध अंग्रेज मि. नेशफील्ड ने कहा - जाट एक
बुद्धिमान् और ईमानदार जाति है ।
23. इतिहासकार सी.वी. वैद ने लिखा है - जाट जाति ने
अपनी लड़ाकू प्रवृत्ति को अभी तक कायम रखा है ।
(जाटों को इस प्रवृत्ति को छोड़ना भी नहीं चाहिए,
यही भविष्य में बुरे वक्त में काम भी आयेगी - लेखक)
24. भारतीय इतिहासकार शिवदास गुप्ता - जाटों ने
तिब्बत,यूनान, अरब, ईरान, तुर्कीस्तान, जर्मनी,
साईबेरिया, स्कैण्डिनोविया, इंग्लैंड, ग्रीक, रोम व
मिश्र आदि में कुशलता, दृढ़ता और साहस के साथ राज
किया । और वहाँ की भूमि को विकासवादी उत्पादन के
योग्य बनाया था । (प्राचीन भारत के उपनिवेश
पत्रिका अंक 4.5 1976)
25. महर्षि पाणिनि के धातुपाठ (अष्टाध्यायी) में - जट
झट संघाते - अर्थात् जाट जल्दी से संघ बनाते हैं ।
(प्राचीनकाल में खेती व लड़ाई का कार्य अकेले
व्यक्ति का कार्य नहीं था इसलिए यह जाटों का एक
स्वाभाविक गुण बन गया - लेखक)
26. चान्द्र व्याकरण में - अजयज्जट्टो हूणान् अर्थात्
जाटों ने हूणों पर विजय पाई ।
27. महर्षि यास्क - निरुक्त में - जागर्ति इति जाट्यम् -
जो जागरूक होते हैं वे जाट कहलाते हैं ।
जटायते इति जाट्यम् - जो जटांए रखते हैं वे जाट कहलाते हैं

28. अंग्रेजी पुस्तक Rise of Islam - गणित में शून्य
का प्रयोग जाट ही अरब से यूरोप लाये थे । यूरोप के स्पेन
तथा इटली की संस्कृति मोर जाटों की देन थी ।
29. अंग्रेजी पुस्तक Rise of Christianity - यूरोप के
चर्च नियमों में जितने भी सुधार हुए वे सभी मोर जाटों के
कथोलिक धर्म अपनाये जाने के बाद हुए, जैसे कि पहले
विधवा को पुनः विवाह करने की अनुमति नहीं थी आदि-
आदि । मोर जाटों को आज यूरोप में ‘मूर बोला जाता है –
लेखक ।
30. दूसरे विश्वयुद्ध में जर्मनी की हार पर जर्मन जनरल
रोमेल ने कहा- काश, जाट सेना मेरे साथ होती । (वैसे जाट
उनके साथ भी थे, लेकिन
सहयोगी देशों की सेना की तुलना में बहुत कम थे
- लेखक)
31. सुप्रसिद्ध अंग्रेज योद्धा जनरल एफ.एस. यांग - जाट
सच्चे क्षत्रिय हैं । ये बहादुरी के साथ-साथ सच्चे,
ईमानदार और बात के धनी हैं ।
32. महाराजा कृष्णसिंह भरतपुर नरेश ने सन् 1925 में
पुष्कर में कहा - मुझे इस बात पर अभिमान है कि मेरा जन्म
संसार की एक महान् और बहादुर जाति में हुआ ।
33. महाराजा उदयभानुसिंह धोलपुर नरेश ने सन् 1930 में
कहा- मुझे पूरा अभिमान है कि मेरा जन्म उस महान् जाट
जाति में हुआ जो सदा बहादुर, उन्नत एवं उदार
विचारों वाली है । मैं
अपनी प्यारी जाति की जितनी भी सेवा करूँगा उतना ही
सच्चा आनन्द आयेगा ।
34. डॉ. विटरेशन ने कहा - जाटों में चालाकी और
धूर्तता,योग्यता की अपेक्षा बहुत कम होती है ।

Jivan Parichay - Svatantrata Sainani Shri Banna Ram Jakhar

बनाराम जाखड़ (1918 - 2004) (Bana Ram Jakhar) का जन्म राजस्थान के बाड़मेर जिले की बायतू तहसील के काऊ का खेड़ा (छीतर का पार) गाँव में मार्च 1918 को नाथाराम जाखड़ और वीरों देवी धतरवाल के घर हुआ.

14 वर्ष की अवस्था में ही कठिन पारिवारिक परिस्थितियों को देखते हुए पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में मजदूरी करने गए. वहां आपने मीरपुरख़ास तथा अन्य स्थानों पर मजदूरी की. उसी समय जोधपुर से सिंध तक रेल लाइन बिछाने का काम प्रारंभ हुआ तो सिंध प्रान्त रेलवे में 5 वर्ष तक नौकरी की.
11 अक्टूबर 1941 को आपका चयन जोधपुर सरदार रेजिमेंट में हो गया. द्वितीय विश्व युद्ध में आपने इटली, जर्मनी तथा अफ्रीका के देशों में भाग लिया. इटली, जर्मनी में आपने देखा कि वहां के लोगों का जीवन स्तर मारवाड़ के लोगों से कई गुना अच्छा है, जिसका कारण शिक्षा है. 17 मई 1947 को सरदार रिसाला से स्वैच्छिक सेवानिवृति लेकर बाड़मेर आ गए. किसान केशरी बलदेवराम मिर्धा एवं मालानी में किसानों के रहनुमा रामदान चौधरी के निर्देश में समाज सुधार कार्य में जुट गए. उस समय जागीरदारी जुल्म अपनी चरम सीमा पर थे. बाड़मेर शहर में जाटों के सर छिपाने के लिए जगह नहीं थी. किसान छात्रावास बाड़मेर के लिए
घर-घर एवं गाँव-गाँव से एक-एक दो- दो आना तथा बाजरी एकत्रित की. किसान मसीहा रामदान चौधरी की प्रेरणा एवं उनके नेतृत्व में अमराराम सारण, बनाराम जाखड़, आईदानजी भादू, कानाराम डऊकिया, गंगाराम चौधरी, दाऊराम, किसना राम, ठेला राम, मगाराम खारा आदि ने किसान छात्रावास के लिए चंदा एकत्रित किया.

15 मार्च 1948 को जोधपुर में बलदेवराम मिर्धा ने एक विशाल किसान रैली आयोजन की घोषणा की. रैली का गाँव-गाँव प्रचार हुआ, पर्चे बांटे गए. मालानी में रामदान चौधरी के नेतृत्व में बनाराम जाखड़ एवं साथियों ने किसानों को रैली में आने के लिए समझाया. उस समय जागीरदारों का इतना आतंक था की वे किसान सभा के कार्यकर्त्ता से बात करने में ही कतराते थे.
 प्रथम पंचायती राज चुनाव में ग्राम छीतर का पार, चोखला, कोसरिया, हूडों की ढाणी के सरपंच पद पर रहे.बाद में बाड़मेर ग्रामीण लोक अदालत के चैअरमैन के पद पर चार साल रहे.
किसान सभा के कांग्रेस में विलय के बाद आप भी कांग्रेस में शामिल हो गए. पक्के सिद्धांत वादी बनाराम जाखड़ ने जाट समाज के उत्थान के लिए अपनी सारी ताकत झोंक दी. जागीर उन्मूलन आन्दोलन में किसान सभा के शीर्ष नेताओं का जो सहयोग बनाराम ने किया, वह मालाणी के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा.
बनाराम जाखड़ का निधन 18 सितम्बर 2004 को हुआ.

सोमवार, 16 सितंबर 2013

भारतीय राजनीति के अपराजित नायक- चौधरी देवी लाल "राष्ट्रीय ताऊ"

चौधरी देवी लाल (जन्म- 25 सितंबर, 1914 - मृत्यु- 6 अप्रॅल, 2001) भारत के पूर्व उप प्रधानमंत्री एवं भारतीय राजनीति के पुरोधा, किसानों के मसीहा, महान स्वतंत्रता सेनानी, हरियाणा के जन्मदाता, राष्ट्रीय राजनीति के भीष्म-पितामह, करोड़ों भारतीयों के जननायक थे। आज भी चौधरी देवी लाल का महज नाम- मात्र लेने से ही, हज़ारों की संख्या में बुजुर्ग एवं नौजवान उद्वेलित हो उठते हैं। उन्होंने आजीवन किसान, मुजारों, मजदूरों, ग़रीब एवं सर्वहारा वर्ग के लोगों के लिए लड़ाई लड़ी और कभी भी पराजित नहीं हुए। आज उनका क़द भारतीय राजनीति में बहुत ऊंचा है। उन्हें लोग भारतीय राजनीति के अपराजित नायक के रूप में जानते हैं। उन्होंने भारतीय राजनीतिज्ञों के सामने अपना जो चरित्र रखा वह वर्तमान दौर में बहुत प्रासंगिक है।

जन्म
चौधरी देवी लाल का जन्म 25 सितंबर, 1914 को हरियाणा के सिरसा ज़िले में हुआ। इनके पिता का नाम चौधरी लेखराम, माँ का नाम श्रीमती शुंगा देवी और पत्नी का नाम श्रीमती हरखी देवी है।

आरंभिक जीवन
चौधरी देवी लाल ने अपने स्कूल की दसवीं की पढ़ाई छोड़कर सन् 1929 से ही राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेना शुरू कर दिया था। चौ. देवीलाल ने सन् 1929 में लाहौर में हुए कांग्रेस के ऐतिहासिक अधिवेशन में एक सच्चे स्वयं सेवक के रूप में भाग लिया और फिर सन् 1930 में आर्य समाज ने नेता स्वामी केशवानन्द द्वारा बनाई गई नमक की पुड़िया ख़रीदी, जिसके फलस्वरूप देशी नमक की पुड़िया ख़रीदने पर चौ. देवीलाल को हाईस्कूल से निकाल दिया गया। इसी घटना से प्रभाविक होकर देवी लाल जी स्वाधीनता संघर्ष में शामिल हो गए। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। देवी लाल जी ने देश और प्रदेश में चलाए गए सभी जन आन्दोलनों एवं स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर भाग लिया। इसके लिए इनको कई बार जेल यात्राएं भी करनी पड़ीं।

राजनीतिक जीवन
चौ. देवीलाल में बचपन से ही संघर्ष का मादा कूट-कूट भरा हुआ था। परिणामत: बचपन में उन्होंने जहाँ अपने
स्कूली जीवन में मुजारों के बच्चों के साथ रहकर नायक की भूमिका निभाई। इसके साथ ही महात्मा गांधी, लाला लाजपत राय, भगत सिंह के जीवन से प्रेरित होकर भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर राष्ट्रीय सोच
का परिचय दिया। 1962 से 1966 तक हरियाणा को पंजाब से अलग राज्य बनवाने में निर्णायक भूमिका निभाई। उन्होंने सन् 1977 से 1979 तथा 1987 से 1989 तक हरियाणा प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में जनकल्याणकारी नीतियों के माध्यम से पूरे देश को एक नई राह दिखाई। इन्हीं नीतियों को बाद में अन्य राज्यों व केन्द्र ने भी अपनाया। इसी प्रकार केन्द्र में प्रधानमंत्री के पद को ठुकरा कर भारतीय राजनीतिक
इतिहास में त्याग का नया आयाम स्थापित किया। वे ताउम्र देश एवं जनता की सेवा करते रहे और किसानों के
मसीहा के रूप में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा।

हरियाणा निर्माता
संयुक्त पंजाब के समय वर्तमान हरियाणा जो उस समय पंजाब का ही हिस्सा था, विकास के मामले में भारी भेदभाव हो रहा था। उन्होंने इस भेदभाव को न सिर्फ पार्टी मंच पर निरंतर उठाया बल्कि विधानसभा में भी आंकड़ों सहित यह बात रखीं और हरियाणा को अलग राज्य बनाने के लिए संघर्ष किया। जिसके परिणामस्वरूप 1 नवम्बर, 1966 को अलग हरियाणा राज्य अस्तित्व में आया और प्रदेश के निर्माण के लिए संघर्ष करने वाले चौधरी देवीलाल को हरियाणा निर्माता के तौर पर जाना जाने लगा।

जीवन शैली
चौधरी देवी लाल अक्सर कहा करते थे कि भारत के विकास का रास्ता खेतों से होकर गुज़रता है, जब तक ग़रीब किसान, मज़दूर इस देश में सम्पन्न नहीं होगा, तब तक इस देश की उन्नति के कोई मायने नहीं हैं। इसलिए वो अक्सर यह दोहराया करते थे-
हर खेत को पानी, हर हाथ को काम, हर तन पे कपड़ा, हर
सिर पे मकान, हर पेट में रोटी, बाकी बात खोटी।

अपने इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए चौ. देवीलाल जीवन पर्यंत संघर्ष करते रहे। उनकी सोच थी कि सत्ता सुख भोगने के लिए नहीं, अपितु जन सेवा के लिए होती है। चौ. देवीलाल के संघर्षमय जीवन की तस्वीर आज भारतीय जन-मानस के पटल पर साफ़ दिखाई देती है। भारतीय राजनीति के इतिहास में चौ. देवीलाल जैसे संघर्षशील नेता का मादा किसी अन्य राजनीतिक नेता में दिखलाई नहीं पड़ता। वर्तमान समय में जन मानस के पटल पर चौ. देवीलाल के संघर्षमय जीवन की जो तस्वीर अंकित है, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत का काम करती रहेगी। चौ. देवीलाल आज हमारे मध्य नहीं हैं, लेकिन उनका बुजुर्गाना अंदाज, मीठी झिड़कियां सही रास्ते की विचारधारा की सीख के रूप में जो कुछ वो देकर गए हैं, वह सदैव हमारे बीच रहेगा।

 चौ. देवीलाल अपने स्वभावनुसार पूरे ठाठ के साथ, झुझारूपन एवं अनोखी दबंग अस्मिता के साथ जीये। आज
अपनी मिट्टी से जुड़े तन-मन के दिलो-दिमाग पर राज करने वाले देवीलाल जैसे जननायक ढूंढने से भी नहीं मिल सकते। जनहित के कार्यों के रूप में स्व. देवीलाल जन-जन के अंत: पटल पर जो कुछ अंकित कर गए हैं, वो लम्बे समय तक उनकी याद जो ताजा कराता रहेगा। जन-मानस बर्बस स्मरण करता रहेगा कि हरियाणा की पुण्य भूमि ने ऐसे नर- केसरी को जन्म दिया था, जिसने अपने त्याग, संघर्ष और जुझारूपन से परिवार के मुखिया ताऊ के दर्जे को, राष्ट्रीय ताऊ के सम्मानजनक एवं श्रद्धापूर्ण पद के रूप में अलंकृत किया।

रविवार, 15 सितंबर 2013

खेमा बाबा मेले में उमड़ा आस्था का ज्वार,लाखों श्रद्धालुओं ने लगाईधोक..

बाड़मेर मारवाड़ के लोक देवता सिद्ध
श्री खेमा बाबा का मेला

बाड़मेर जिले के बायतु मुख्यालय पर भरा।जिसमे प्रदेश
भर के अलावा पड़ोसी
राज्यों के श्रद्धालुओं ने धोक लगाकर
खुशहाली की कामना की।खेमा बाबा को
सर्पो का देवता कहा जाता हैं।प्राचीन
मान्यता के अनुसार सर्प के काटने
पर खेमाबाबा के नाम की तांती(धागा) बांधने पर
सही हो जाता हैं।मेले में
शुक्रवार को रात्रि जागरण में क्षेत्र के
ख्याति प्राप्त कलाकारों ने
भजनों की PRASTUTIYEN DI, प्रस्तुतियों पर पूरी रात श्रोता झूमे।
मेले का मुख्य आकर्षण
भोपो का सांकल व ताजणो का न्रत्य रहा। शनिवार
दोपहर में विधायक कर्नल
सोनाराम चौधरी ने मेलास्थल पर पहुँच बाबा को धोक
लगाकर अमन चैन की कामना
की तथा पुलिस की व्यवस्थाओ PER विधायक नाराज हुए,
विधायक ने जिला पुलिस
अधीक्षक सवाई सिंह गोदारा से बात कर व्यवस्थाओ में
सुधार के निर्देश
दिये।मेले में पुलिस की व्यवस्थाएं नाममात्र की रही।
JAI BABA KHEM ... JAI VEER BIGGAJI

"जाटो का शेर"

बायतु -
यह प्रसिद लोक
देवता खेमा बाबा का जन्म स्थल है।यहा पर
गुजरात और राजस्थान के दुर दुर से
यात्री आते है। भादवा सुदी नवमी माघ
सुदी नवमी और चैत्र
सुदी नवमी को मेला लगता है।
हरलाल जाट का मेला-
यह मेला भले ही शिक्षित वर्ग तक सीमित
हो लेकिन बलदेव नगर का सबसे पवित्र स्थान है
फौजीऔ का देवता भी कहा जाता है क्योकि HLH से
सबसे ज्यादा फौजी बनते है . "जाटो का शेर" इस
उपनाम से हरलाल को जाना जाता है.

शनिवार, 14 सितंबर 2013

मालानी री धरा में जन्मया- सिद्धपुरुष खेमा बाबा

सिद्धपुरुष खेमा बाबा - राजस्थान के लोक देवता जिन्होंने समाज को एक नयी दिशा दी


बाड़मेर जिलै रै बायतू गाम मांय जनम्या खेमा बाबा जाटा हा। अै सदीव साधु- संन्यासी रै बेस मांय रैया करता हा, जिणरी वजै सूं लोग इणां नै 'खेमा बाबा' रै नाम सूं बतलावता।
अै आपरै जीवण मांय जैरीलै जीव-जंतुवां रै काटियौड़ै लोगां रा झाड़ा-झपटा करिया करता। इण भांत अै
अणगिणत लोगां नै अभयदान दिया। आपरै जीवण रै छहलै बगत ताईं अै बायतूं मायं इज रैया। सुरगवास सूं पांच-सात घड़ी पैला अै आपरै सगै-संबंधियां, मित्रां अर गामवासियां सूं आग्रह करियौ हौ के अबै म्हारौ अंतिम
बगत आयग्यौ है, थे लोग म्हनै अमुक जगै लिजाय'र बिना बालियां गाड दीजौ अर उण जगै अेक
चबूतरौ बणवाय दीजौ। जे किणी नै कोई तकलीफ हुय जावै तौ चबूतरै माथै नालेर इत्याद चढा देवैला तौ उणनै
किणी ई तरै री तकलीफ नीं हुवैला। खास तौर सूं जैरीलै जीव-जंतुवां रै काटियां तौ तत्काल इज आराम हुय
जावैला।

सिद्धपुरुष जाट खेमाराम जाखड़ आपरौ नश्वर शरीर
त्याग दियौ। उणां रै कैयां मुजब उणां नै अमुक स्थान
माथै गाडण सारू लेयग्या, पण वा जमीन बायतू रै अेक
ठाकर री ही, जिकां अपणी जमीन मांय गाडण
नीं दिया। कीं बगत बाद अचाणक ठाकर नै निपटण
री शंका हुई। ठाकर निपटण सारू गाम रै बारै गया।
सिद्धपुरुष खेमा बाबा रै नश्वर शरीर नै आपरी जमीन
मांय नीं गाडण देवण री बजै सूं जैरीला जीवजन्तु ठाकर
नै घेर लियौ। ठाकर जद अणूंती देर तांण बावड़िया नीं तौ परिवार रा सगला ई लोग उणां रै नीं बावड़ियां चिंतातुर हुवण लागग्या। उठीनै
खेमा बाबा रै नश्वर शरीर नै उणी जगै गाडण री मंजूरी सारू हजारूं लोग उडीक रैया हा। जद ठाकर नै सोधण सारू नौकर भेजीजियौ तौ पतौ लागियौ के वै तौ जैरीलै जीव-जंतुवां रै जाल सूं मुगत हुया। ठाकर
खेमा बाबा रै चमत्कार सूं प्रभावित हुय'र आपरी जमीन
मांय उणां रै शरीरर नै गाडण री मंजूरी देय दी अर खुद आपरै खरजै सूं उण माथै चबूतरौ बणवाय'र पैलौ नालेर
चढायौ।
आज वौ इज चबूतरौ अेक सुंदर मिंदर रै रूप मांय नागदेवता री बणियोड़ी प्रतिमावां अेक नीं, अनेकूं
विराजमान है। मिंदर रै च्यारूंमेर पक्की दीवारां रौ परकोटौ अर उणरै बीच मांय
जातरूवां रै ठैरण अर मिंदर रै कर्मचारियां अर पुजारियां रै रैवास सारू पक्का मकान बणियोड़ा है।
मिंदर रे लारली कानी 150 फुट सूं ई ऊंचौ रेतीलौ धोरौ आयौ थकौ है।
मेलै मांय हिस्सौ लेवण सारू दूर-दूर सूं हजारूं जातरूं अेकठ हुवै। जैरीलै जीव-जंतुवां सांप-बिच्छु इत्यार रै
काटियां उणी बगत इणां रै स्थल री जातरा करण, पूजा चढावण री जाचना करण अर मोरपांख नै
काडियौडै़ स्थल माथै बांधियां सूं तत्काल आराम मिल जावै। अैड़ौ करियां अेक नीं, अनेकूं श्रद्धालू भगतां नै
आराम अर राहत मिली है। नतीजन मैलै रै मौकै माथै हजारूं री तादाद में स्त्री, पुरुष, बच्चा, बूढ़ा सगला आवै, जिका आपरै साथै छोटौ-सोक सफेद कपड़ौ त्रिकोण आकार रौ लावै अर आपरी जाचना, चढावै .चढायां रे बाद उणनै नजीक खड़ै पेड़ रै बांध देवै।
मेलै रै अेक दिन विसाल पैमानै माथै  भजन-कीरतन रौ आयोजन हुवै। उण मांय  हर जाति रा लोग हिस्सौ लेवै। औ कार्यक्रम रात भर चालू रैवै। सूबै-सवाणी हजारूं लोग खेमा बाबा रै मिंदर दरसणां सारू जावै अर प्रसाद चढावै। प्रसाद सूं नीं जाणै कित्ती ई बोरियंा भर जावै। औ प्रसाद बाद में भजन करण वालां अर पिछड़ी जातियां रै लोगां मांय बांट दियौ जावै।

शुक्रवार, 13 सितंबर 2013

जसनाथ धाम में उमड़ा श्रद्धा का सैलाब

बाड़मेर- जसनाथ धाम
लीलसर में गुरुवार को भाद्रपद
की सप्तमी पर आयोजित मेले में श्रद्धालुओं
की भीड़ उमड़ी। आसपास के गांवों सहित
जिलेभर से भारी संख्या में भक्तों ने शिरकत
की और भगवान जसनाथ के दर्शन कर मन्नतें
मांगी। महंत मोटनाथ महाराज ने
बताया कि गुरुवार को सुबह सात बजे से
ही मेला शुरू हो गया, आसपास के गांवों से
काफी संख्या में भक्त पैदल ही मेला स्थल पहुंचे
और भगवान जसनाथ के दर्शन कर मन्नतें
मांगी। दोपहर होने तक तो मेला स्थल पर
भक्तों की भारी भीड़ के कारण पैर रखने
को जगह नहीं मिल रही थी। भक्तों ने कतार
में खड़े होकर जसनाथ भगवान के दर्शन किए
और मन्नतें मांगी। महंत से लिया आशीर्वाद :
मेले के दौरान जसनाथ मंदिर के महंत
मोटनाथ से आशीर्वाद लेने को लेकर
भक्तों का तांता लगा रहा। महंत से
आशीर्वाद के साथ ही मंदिर की फेरी लगाई
और दर्शन किए। मेले में सोडियार, बाछड़ाऊ,
सनावड़ा, बूठ जेतमाल, मेहलू, नोखड़ा, कगाऊ,
उड़ासर, धोरीमन्ना, चौहटन, इसरोल,
रामदेरिया, शोभाला जैतमाल,
मांगता सहित आसपास के गांवों व जिलेभर से
भारी संख्या में भक्त विभिन्न वाहनों से
मेला स्थल पहुंचे और दर्शन कर मन्नतें मांगी।
मेले को लेकर मंदिर को आकर्षक रोशनी से
सजाया गया। विवाहित जोड़ों ने लगाई
जात: मान्यता है कि विवाहित जोड़े
शादी के बाद मंदिर में जात लगाने के लिए
आते है। जहां मंदिर में दपंति सुखद जीवन के
लिए भगवान के दर्शन कर मंदिर के चारों ओर
जात लगाते है। नव विवाहित जोड़े शादी के
बाद मंदिर में अवश्य रूप से फेरी लगाने के
लिए आते है। विवाहित जोड़ों ने मंदिर
की प्रक्रिमा कर सुखद जीवन
की कामना की।

गुरुवार, 12 सितंबर 2013

अंजन की सीटी में

अंजन की सीटी में म्हारो मन
डोले
चला चला रे डिलैवर गाड़ी हौले
हौले ।।
बीजळी को पंखो चाले, गूंज
रयो जण भोरो
बैठी रेल में
गाबा लाग्यो वो जाटां को छोरो ।।
चला चला रे ।।
डूंगर भागे, नंदी भागे और भागे
खेत
ढांडा की तो टोली भागे, उड़े
रेत ही रेत ।।
चला चला रे ।।
बड़ी जोर को चाले अंजन, देवे
ज़ोर की सीटी
डब्बा डब्बा घूम रयो टोप
वारो टी टी ।।
चला चला रे ।।
जयपुर से जद
गाड़ी चाली गाड़ी चाली मैं
बैठी थी सूधी
असी जोर को धक्का लाग्यो जद मैं
पड़ गयी उँधी ।।
चला चला रे ।।
शब्दार्थ: डलेवर= ड्राईवर,
गाबा= गाने लगना, डूंगर= पहाड़,
नंदी= नदी , ढांडा= जानवर , जद=
जब (जदी, जर और जण
भी कहा जाता है), असी= ऐसा, इतना

जाट की पहचान लेखक - सव0 स्वामी शिवराम, जावरौ ग्राम

जाट की नसल की असल
पहिचान यही,
सुंदर शरीर,
ह्रष्ट-पुष्ट डील
जाकौ है।
दाता और सूर होय, बल
भरपूर होय,
जाति पर गरुर होय,
धीर वीर बांकौ है ।।
सायर सपूत होय, दिल
मजबूत होय,
ताकत अकूत होय,
युद्ध में
अदाकौ है ।
वीर वर बांका होय,
काल की न शंका होय,
जवान ऐसे ढंग
का होय, जाट नाम
जाकौ है ।।
लोक वेद रीति जाने,
धर्म, कर्म
नीति जाने,
प्रेम भाव
प्रीति जाने,
कीरति बखानिये ।
पर उपकारी होय, धीर
व्रतधारी होय,
वीर कर्मचारी होय,
दया हिय आनिये ।।
धर्म ते टरे न कभी,
युद्ध ते डरे न
कभी ।
कहिके फिरे न कभी,
लाभ चाहे हानिये,
देश को हितेशी होय,
भावना स्वदेशी होय,
जाकी रूचि ऐसी होय,
जाट ताहि जानिये ।।

चेतो करल्यो रै - धमाळ

चेतो करल्यो रै,
साथीड़ा सगळा एको करल्यो रै,
चेतो करल्यो रै ।
जाट कमायो खावै आपको,
दूजां नै नहीं भावै रै,
मूंडा मीठी बात, पीठ पर
छुरी चलावै रै ।
चेतो करल्यो रै ..... ।।1।।
एका बिना अब पार पड़ै ना, आज
टेम आ आई रै, ओरां कानी देखो,
कैंयां शोर मचाई रै ।
चेतो करल्यो रै ..... ।।2।।
धरती मां को लाल जाट,
बो अन्नदाता कहलावै रै, जय
जवान जय किसान को परचम
पहरावै रै ।
चेतो करल्यो रै ..... ।।3।।
जाळ रच रह्या जकानैं, मिलके
सबक सिखायो रै, सांचै-मांचै
राम राचै, "पदम" रो कह्यो रै
। चेतो करल्यो रै ..... ।।4।।

लोकदेवता तेजाजी

लोकदेवता तेजाजी का जन्मनागौर जिले में खड़नाल गाँव में ताहरजी (थिरराज) औररामकुंवरी के घर माघशुक्ला, चौदस संवत 1130यथा 29 जनवरी 1074 को जाट परिवार में हुआ था।उनके पिता गाँव केमुखिया थे।
यह कथा है कि तेजाजी का विवाह बचपन में ही पनेर गाँव में रायमल्जी की पुत्री पेमलके साथ हो गया था किन्तु शादी के कुछ ही समय बाद उनके पिता और पेमल के मामा में कहासुनी हो गयी और तलवार चल गई जिसमें पेमल के मामा की मौत हो गई। इस कारण उनके विवाह की बात को उन्हें बताया नहीं गया था।
एक बार तेजाजी को उनकी भाभी ने तानों के रूप में यह बात उनसे कह दी तब तानो से त्रस्त होकरअपनी पत्नी पेमल को लेने के लिए घोड़ी 'लीलण' पर सवार होकर अपनी ससुराल पनेर गए।रास्ते में तेजाजी को एक साँप आग में जलता हुआ मिला तो उन्होंने उस साँप को बचा लिया किन्तु वह साँप जोड़े के बिछुड़ जाने के कारण अत्यधिक क्रोधित हुआ और उन्हें डसने लगा तब उन्होंने साँप को लौटते समय डस लेने का वचन दिया और ससुराल की ओरआगे बढ़े।
वहाँ किसी अज्ञानता के कारण ससुराल पक्ष से उनकी अवज्ञा हो गई।नाराज तेजाजी वहाँ से वापस लौटने लगे तब पेमल से उनकी प्रथम भेंट उसकी सहेली लाछा गूजरी के यहाँ हुई। उसी रात लाछा गूजरी की गाएं मेर के मीणा चुरा ले गए।
लाछा की प्रार्थना परवचनबद्ध हो कर तेजाजी ने मीणा लुटेरों से संघर्ष कर गाएं छुड़ाई। इस गौरक्षा युद्ध
में तेजाजी अत्यधिक घायल हो गए। वापस आने पर वचन की पालना में साँप के बिल पर आए तथा पूरे शरीर पर घाव होने के कारण जीभ पर साँप से कटवाया। किशनगढ़ के पास सुरसरा में सर्पदंश से उनकी मृत्यु भाद्रपद शुक्ल10 संवत 1160, तदनुसार28 अगस्त 1103 हो गई तथा पेमल ने भी उनके साथ जान दे दी। उस साँप
ने उनकी वचनबद्धता से प्रसन्न हो कर उन्हें वरदान दिया। इसी वरदान के कारण तेजाजी  साँपों के देवता के रूप में पूज्य हुए।गाँव गाँव में तेजाजी के देवरे या थान में उनकी तलवारधारीअश्वारोही मूर्ति के  साथ नाग देवता की मूर्ति भी होतीहै। इन देवरो में साँप के काटने पर जहर चूस कर निकाला जाता है तथा तेजाजी की तांतबाँधी जाती है।
तेजाजी केनिर्वाण दिवस भाद्रपद शुक्ल दशमी को प्रतिवर्ष तेजादशमी के रूप में मनाया जाता है।