गुरुवार, 12 सितंबर 2013

लोकदेवता तेजाजी

लोकदेवता तेजाजी का जन्मनागौर जिले में खड़नाल गाँव में ताहरजी (थिरराज) औररामकुंवरी के घर माघशुक्ला, चौदस संवत 1130यथा 29 जनवरी 1074 को जाट परिवार में हुआ था।उनके पिता गाँव केमुखिया थे।
यह कथा है कि तेजाजी का विवाह बचपन में ही पनेर गाँव में रायमल्जी की पुत्री पेमलके साथ हो गया था किन्तु शादी के कुछ ही समय बाद उनके पिता और पेमल के मामा में कहासुनी हो गयी और तलवार चल गई जिसमें पेमल के मामा की मौत हो गई। इस कारण उनके विवाह की बात को उन्हें बताया नहीं गया था।
एक बार तेजाजी को उनकी भाभी ने तानों के रूप में यह बात उनसे कह दी तब तानो से त्रस्त होकरअपनी पत्नी पेमल को लेने के लिए घोड़ी 'लीलण' पर सवार होकर अपनी ससुराल पनेर गए।रास्ते में तेजाजी को एक साँप आग में जलता हुआ मिला तो उन्होंने उस साँप को बचा लिया किन्तु वह साँप जोड़े के बिछुड़ जाने के कारण अत्यधिक क्रोधित हुआ और उन्हें डसने लगा तब उन्होंने साँप को लौटते समय डस लेने का वचन दिया और ससुराल की ओरआगे बढ़े।
वहाँ किसी अज्ञानता के कारण ससुराल पक्ष से उनकी अवज्ञा हो गई।नाराज तेजाजी वहाँ से वापस लौटने लगे तब पेमल से उनकी प्रथम भेंट उसकी सहेली लाछा गूजरी के यहाँ हुई। उसी रात लाछा गूजरी की गाएं मेर के मीणा चुरा ले गए।
लाछा की प्रार्थना परवचनबद्ध हो कर तेजाजी ने मीणा लुटेरों से संघर्ष कर गाएं छुड़ाई। इस गौरक्षा युद्ध
में तेजाजी अत्यधिक घायल हो गए। वापस आने पर वचन की पालना में साँप के बिल पर आए तथा पूरे शरीर पर घाव होने के कारण जीभ पर साँप से कटवाया। किशनगढ़ के पास सुरसरा में सर्पदंश से उनकी मृत्यु भाद्रपद शुक्ल10 संवत 1160, तदनुसार28 अगस्त 1103 हो गई तथा पेमल ने भी उनके साथ जान दे दी। उस साँप
ने उनकी वचनबद्धता से प्रसन्न हो कर उन्हें वरदान दिया। इसी वरदान के कारण तेजाजी  साँपों के देवता के रूप में पूज्य हुए।गाँव गाँव में तेजाजी के देवरे या थान में उनकी तलवारधारीअश्वारोही मूर्ति के  साथ नाग देवता की मूर्ति भी होतीहै। इन देवरो में साँप के काटने पर जहर चूस कर निकाला जाता है तथा तेजाजी की तांतबाँधी जाती है।
तेजाजी केनिर्वाण दिवस भाद्रपद शुक्ल दशमी को प्रतिवर्ष तेजादशमी के रूप में मनाया जाता है।

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