बुधवार, 10 अगस्त 2016

श्री बिग्गाजी महाराज की आरती



जय बिगमल देवा-देवा-जाखड़ कुल के सूरज करूं मैं नित सेवा ।
जाखड़ वंश उजागर, संतन हित कारी (प्रभु संतन)
दुष्ट विदारण दु:ख जन तारण, विप्रन सुखकारी ॥ 1 ॥


सत धर्म उजागर सब गुण सागर, राव मेहन्द पिता दानी ।
सती धर्म निभावण सब गुण पावन, माता सुल्तानी ॥ 2 ॥


सुन्दर पाग शीश सोहे, भाल तिलक रूड़ो देवा-देवा ।
भाल विशाल तेज अति भारी, मुख पाना बिड़ो ॥ 3 ॥


कानन कुन्डल झिल मिल ज्योति, नेण नेह भर्यो ।
गोधन कारन दुष्ट विदारन, जद रण कोप करयो ॥ 4 ॥


अंग अंगरखी उज्जवल धोती, मोतीन माल गले ।
कटि तलवार हाथ ले सेलो, अरि दल दलन चले ॥ 5 ॥


रतन जडित काठी, सजी घोड़ी, आभा बीज जिसी ।
हो असवार जगत के कारनै, निस दिन कमर कसी ॥ 6 ॥


जब-जब भीड़ पड़ी दुनिया में , तब-तब सहाय करी ।
अनन्त बार साचो दे परचो, बहु विध पीड़ हरी ॥ 7 ॥


सम्वत दोय सहस के माही, तीस चार गिणियो ।
मास आसोज तेरस उजली, मन्दिर रीड़ी बणियो ॥ 8 ॥


दूजी धाम बिग्गा में सोहे, धड़ देवल साची ।
मास आसोज सुदी तेरस को, मेला रंग राची ॥ 9 ॥


या आरती बिगमल देवा की, जो जन नित गावे ।
सुख सम्पति मोहन सब पावे, संकट हट जावै ॥ 10 ॥

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