शुक्रवार, 12 अगस्त 2016

संघर्ष से तपकर कुन्दन बने चौ. देवीलाल -दादा की कहानी पौते की जुबानी

संघर्ष से तपकर कुन्दन बने चौ. देवीलाल 

                                    लेखक- डॉ. अजयसिंह चौटाला



जिस प्रकार सोना आग में तपने के पश्चात कुन्दन का रूप धारण करता है, ठीक उसी तरह संघर्ष एवं मुसीबतों में तप कर इंसान Dr Ajay Singh Chautalaनायक से महानायक और महानायक से जननायक का रूप धारण करता है। भारतीय राजनीति में ऐसे विरले राजनेता हैं, जिन्होंने संघर्ष को अपने कंठ का हार बनाकर उसकी आग में तप कर भावी पीढिय़ों के वास्ते नये आयाम स्थापित किए हों। मेरे दादा जी चौ. देवीलाल भारतीय राजनीति में संघर्ष के एक ऐसे जननायक थे, जिन्होंने भारतीय राजनेताओं एवं जनता के सामने असं य अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत कर संघर्ष के रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित किया है। आज उनकी जयंती पर मैं उनके संघर्ष की गाथा के कुछ अंश आप लोगों से सांझा कर रहा हूँ।
चौधरी देवीलाल की संघर्ष की गाथा 12 साल की उम्र से शुरू होकर उनकी अंतिम सांसों तक चलती रही। इस महान धरती पुत्र ने अपने जीन की संघर्षमय शुरूआत अपने ही घर से मुजारों को संगठित करके उनको उनका हकदिलवाने के लिए की। इसके लिए उन्होंने विनोबाभावे द्वारा संचालित भू-दान आंदोलन में केवल बढ़चढ़ कर भाग ही नहीं लिया, बल्कि अपचौधरी देवीलाल | Ch Devi Lalनी जमीन का एक बड़ा भू-भाग भी मुजारों को बांट दिया। सन् 1930 में जब महात्मा गांधी की आंधी आने प्रबल वेग के साथ अंग्रेजी शासन को उखाड़ फैंकने के लिए देश भर में चल रही थी, यह नीडर बालक देवीलाल, गांधी की आंधी से प्रभावित हुआ और देश की आजादी के लिए चल रहे स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़ा। इसके लिए उनको कई बार जेल यात्राएं भी करनी पड़ी, लेकिन उन्होंने तब तक दम नहीं लिया, जब तक भारत गुलामी की बेडिय़ों से मुक्त नहीं हुआ। उसके पश्चात उन्होंने उत्तर भारत के किसानों के लिए अपनी जंग छेड़ दी। इतना ही नहीं वे सदैव किसानों के हितों की लड़ाई लड़ते रहे, क्योंकि  महात्मा गांधी ने भी कहा था कि ‘भारत गांवों में बसता है और हमारे गांव पिछड़े हुए हैं, गांव का विकास ही भारत का विकास है, के मंत्र को आत्मसात करते हुए चौ. देवीलाल ने अनेक ऐसी किसान परक नीतियों एवं योजनाओं को लागू किया, जिनके लिए उनको किसानों के मसीहा के रूप में जाना गया। उनकी पहचान भारतीय जनता में किसान जनसेवक के रूप में है। चौ. देवीलाल एक ऐसे सहस्त्राब्दी पुरुष हैं, जिनको भारतीय जनता स्वत: ही अपने किसान नेता के रूप में स्वीकार करती है। उनकी मान्यता थी कि -‘ खेतों में हल चलाते हुए किसानों का पसीना ही वह प्रतिबिब है, जिसमें प्रभु के सही-सही दर्शन कर सकते हैं। 
मैं पहले किसान हूँ, बाद में मुयमंत्री’ के मूलमंत्र को स्वीकारते हुए ताऊ देवीलाल ने ग्रामीण व किसानों के हित के लिए जनहितकारी योजनाएं लागू की। आठवीं पंचवर्षीय योजना के निर्धारण में ताऊ के आग्रह पर ही सरकारी बजट का आधा हिस्सा कृषि क्षेत्र पर लगाने का निर्णय लिया गया। उनके प्रयास फलस्वरूप ग्रामीण विकास कार्यों पर किए जाने वाले केन्द्रीय बजट को 20 फीसदी से बढ़ाकर 49 फीसदी कर दिया गया। इसके अतिरिक्त फसलों का पर्याप्त मूल्य दिलाने के लिए कृषि उपज की लागत के आधार पर उनके मूल्यों में वृद्धि कर किसानों को लाभ पहुंचाया। देश के इतिहास में पहली बार प्राकृतिक आपदा से हुए नुक्सान का मुआवजा देकर उन्होंने एक अनोखा उदाहरण प्रस्तुत किया। टै्रक्टरों का टोकन माफ किया। हरियाणा कृषि कर्जा राहत अधिनियम 1989 का एक्ट बनवाकर उन्होंने किसानों को कर्जो से मुक्ति दिलाने का प्रयास किया। सडक़ों तथा नहरों के किनारे खड़े पेड़ों में किसानों का आधा हिस्सा निर्धारित कर उनकी किसान परक सोच का साक्षात उदाहरण प्रस्तुत किया ।
चौ. देवीलाल का दृढ़ विश्वास था कि - ‘हम तभी सुखी रह सकते हैं, जब किसान के चेहरे पर मुस्कान हो, यही मुस्कान राज्य व राष्ट्र की मुस्कान बनती है। किसानों के हित के लिए चौ. देवीलाल ने अनेकों बार सत्ता को छोडऩा पड़ा, लेकिन किसानों के हितों के साथ कभी भी अन्याय नहीं होने दिया।’ आज हरियाणा ही नहीं अपितु देश की जनता चौ. देवीलाल के संघर्ष का लोहा मानती है। भारतीय राजनीति में किसानों का मान बढ़ाने वाले, उनका हक दिलाने वाले यदि किसी नेता का नाम आज शीर्ष पर है तो वो हैं चौ. देवीलाल। कहना न होगा चौ. देवीलाल के जीवन का अंतिम क्षण भी किसानों के हित से जुड़ा रहा। जब उन्होंने अंतिम सांस पूरी करने सेपूर्व मेरे से यह पूछा कि ओलावृष्टि से त्रस्त किसानों के लिए सरकार क्या कर रही है? तो इस पर मैंने  आबियाना, ऋण वसूली, बिजली बिल आदि राहतों का विवरण दिया, मगर मेरे दादा जी चौ. देवीलाल इससे संतुष्ट नहीं हुए और कहा कि यह तो ठीक है मगर तुम लोग (उस समय हरियाणा सरकार) इस प्राकृतिक आपदा से प्रभावित किसानों को क्या दे रहे हो ? यानि रोम -रोम से किसानों के प्रति जुड़े ताऊ का अंतिम सरोकार भी किसान लोक कल्याणपरक था। इससे सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि किसानों के उत्थान की भावना उनके मन में कितनी कूट-कूट कर भरी हुई थी। उनकी इस सोच के पीछे शायद यही कारण था कि भारत जैसे कृषि प्रधान देश का विकास तब तक स भव नहीं है, जब तक यहां किसान को उसकी मेहनत का पूरा मेहनताना उसे नहीं मिलता।
चौ. देवीलाल, भगतसिंह, सुभाषचन्द्र बोस का सपना था कि भारत एक ऐसा देश बने, जिसमें गरीब, मजदूर, किसान सभी को सत्ता में भागीदारी का मौका मिले, लेकिन वर्तमान कांग्रेस सरकार ने गरीब मजदूर एवं किसान के मुंह का निवाला छींन लिया है। आज देश एवं प्रदेश आर्थिक दृष्टि से खोखला हो चुका है। सभी कांग्रेसी सत्ताधारी नेता भ्रष्टाचार के दानव को पाल-पोषकर अपनी जेबें भर रहे हैं। गरीब, मजदूर व किसान के खून पसीने की गाड्ढ़ी कमाई को बर्बाद किया जा रहा है। आज नौकरियों के नाम पर भेदभाव बरता जा रहा है। हमारी सरकार ने अपने राज में जब गरीब परिवारों के बच्चों को परिवार का घर-गुजर चलाने के लिए नौकरी दी तो इन दो मुंहे सांपों ने हमें झूठे मुकदमों में फंसाकर, एक षडय़ंत्र के तहत आप लोगों से दूर करने का काम किया। हमने कोई हत्या नहीं की है कि हम जेल की सलाखों के पीछे रहें। हाँ, इनेलो सरकार द्वारा बेरोजगारों को मेरिट के आधार पर रोजगार देने के आरोप में यदि मुझे जेल काटनी पड़ेगी तो मैं पूरी जिन्दगी भी जेल में रहने के लिए तैयार हूँ, क्योंकि मेरे लिए प्रदेश की जनता का हित सबसे पहले है। मेरा पूरा जीवन प्रदेश की जनता के लिए समर्पित है। हमारी सरकार ने उस बेरोजगार बेटे को सहारा दिया जो दो वक्त की रोटी के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहा था। उस भूखी माँ की बेटी को नौकरी दी, जो दो वक्त की रोटी के लिए मौहताज थी। उस छोटे बच्चों के बाप को नौकरी दी, जो गरीबी की दलदल में फंसकर अपने बच्चों के भविष्य के बारे में नहीं सोच पा रहा था। गरीब परिवारों के उन भाई-बहनों को नौकरी दी, जो रोजगार के लिए दर-दर की ठोकरें खाते फिर रहे थे, ऐसे गरीब, किसान एवं मजदूर के बच्चों को मेरिट पर नौकरी देना कोई अपराध नहीं है। मेरी रगों में भी चौ. देवीलाल एवं चौ. ओमप्रकाश चौटाला का खून दौड़ता है, मैं तब तक चैन से नहीं बैठूंगा, जब तक कांग्रेसियों द्वारा लगाए गए बेबुनियादी आरोपों को न्यायलय के माध्यम से झूठा न साबित कर दूँ। हम न्यायपालिका का पूरा स मान करते हैं और हमें पूरा भरोसा है कि निश्चित तौर पर अंतिम जीत सच्चाई की होगी।

जब काल-कोठरी में भी नहीं घबराएं चौ. देवीलाल

पात काल के समय चौ. देवीलाल को जब गिर तार कर महेन्द्रगढ़ के किले में बंद कर दिया गया था। एक छोटी सी कालकोठरी में जहां दो व्यक्ति भी नहीं सो सकते, मेरे दादा जी चौधरी देवीलाल, मनीराम बागड़ी, सहित तीन व्यक्तियों को कोठरी में बंदी बनाया गया। ऐसे में संतरी शाम को 6 बजे कोठरी में ताला लगाता था और प्रात: 9 बजे ताला खोलता था। एक साथ कोठरी में दो व्यक्ति को लेटना पड़ता था तथा तीसरा व्यक्ति कपड़े से हवा झोलता था, क्योंकि कोठरी में जहां एक ओर दो ही व्यक्तियों के लेटने की व्यवस्था थी, वहीं दूसरी ओर मोटे-मोटे मच्छरों की भरमार थी। बिजली-पानी की कोई व्यवस्था नहीं थी। कोठरी में केवल एक ही छेद था, जिसमें से रोशनी आती थी। इतना ही नहीं वहां पर शौचालय की भी सुविधा नहीं थी। मेरे दादा जी चौ. देवीलाल ऐसे हालात में कभी भी कठिन से कठिन परिस्थितियों में मुर्झाए नहीं और उन्होंने विपरित से विपरित परिस्थितियों में संघर्ष करने की प्रेरणा दी। आज उसी प्रेरणा को आत्मसात कर हम संघर्ष की राह पर हैं। हमें विश्वास है कि एक दिन हमारा संघर्ष रंग लाएगा और हरियाणा की जनता को न्याय मिलेगा।

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