सोमवार, 11 नवंबर 2013

कवि लच्छी राम रचित - बिग्गैजी रौ छंद

बिग्गैजी रौ छंद
सिंवरूं देवी सारदा, लुळहर लागूं पाय।
बिगम हुवौ बीकांण गढ, सोभा देवूं बताय।
कियौ रड़ाकौ राठ सूं, सांभळजो लिग-लाय।।

सिंवरूं गणपत देव नै, लेसूं निजपत नांव।
सारद सीस निंवाय कै, करसूं कथणी काम।।

बीदो बीको राजवी, गढ बीकांणौ गांव।
जूना खेड़ा प्रगट किया, इडक बिगौ है धाम।।

रूघपत कुळ में ऊपन्यौ, भागीरथ वंस मांय।
मामा गोदारा भीम-सा नानौज चूहड़ नांव।।

माता देवी सुलतानवी, मेंहद पिता कौ नांव।
रिड़ीज गढ रौ पाटवी, परण्यौ मालां रै गांव।।

धिन कर चाल्यौ सासरै नाई-ज लिया बुलाय।
कंगर कढाई कोरणी, कपड़ा लिया सीवाय।।

कंचण कंठी सोवणी, गळ झगबग मोती झाग।
महिमा जरी जड़ाव की, माथै कसूंमल पाग।।

धिन कर चाल्यौ सासरै मात पिता अरू मेहंद।
कमेत घोड़ी बोघणी, बण्यौ पूनम कौ चंद।।

उठै राठ की हुई चढ़ाई, क्या दिल्ली क्या तखत हजारौ।
क्या मक्का क्या बलख बुखारौ, चढ्यौ राठ कर कर हौकारोै।।

सिंवर मीर पीर पट्ठाण, ध्यांन मैमंद का धर रे।
किसौ मुलक लूं मार किसौ-यक छोडूं थिर रे।।

कहै राठ इक बात, कह्यौ थे हमरौ करौ।
मार जाट का लोग, डेरा जसरासर धरौ।।
डावी छोड दौ जखड़ायण, जीवणी नागोरी गउवां घेरौ।।

चढ्यौ राठ कौ लोग सुगन ले बोल झड़ाऊ।
फिर्या सिंघ सादूळ, सुगन वै हुवा पलाऊ।।


दोहा :-
गउवां अनमी ले चढ्या, साळा-ज कहग्या बात।
रजपूती धन बांकड़ौ, जाखड़ ओंटीली जात।।

हुई रसोई चढ गयौ, गउवों घेर्यां-ईज धीर।
कमर कस कसणा कस्या, हाथां लीवी समसीर।।

कहै सासू सळायली, पाछा बुलावौ घेर।
हुई रसोई जीमल्यौ, वारां चढ़जौ फेर।।

जिण घर बांधी कांबड़ी, मांय सतवंती घर नार।
बंधी कमरां नीं खुलै, म्हांरौ धरती न झेलै भार।।

पिता हमारौ मेहंद है, वा सुलतानी घर माय।
गउवां घेरियां बिन कुरळौ करूं, म्हा रो सत्त धरम घट जाय।।

जरणी जायो अेकलौ, चढ्यौ गउवां घेरण लार।
कांकड़ कोस पैंतीस पर, जा पूग्यौ भड़ वार।।

राठ पूठौ मुड़ देखियौ, मन में कियौ विचार।
कमेत घोड़ी बौघणी, हाथ लियां तरवार।।

कहै राठ इक बात, कह्यौ थूं हमरौ कर रे।
आयौ छै थूं वार, घोड़ी ले जै नीं घर रे।।

कहै बिगम दे बात, घोड़ी ले घर नीं जाऊं।
मार तुम्हारौ लोक, गउवां पाछी ले जाऊं।।

घोड़ां दीन्हा भेळ, किया कर कर ललकारा।
हाथ लीवी कर ढाल, काढ ली खड्ग तरवारा।।

भाज गयौ सब राठ, भाजग्या न्यारा न्यारा।
मिळी न पाछी गैल, मनोरथ बिखरîा सारा।।

रिळ मिळ कियौ विचार, सुगन सादूळ का।
बेटा पोता आंण पूग्या, कोई लहर लाछूर का।।

लावा की डांड सूं, गउवां तौ घिरगी, बाछड़ा  मिळगी, जाट कौ पुत्र क्यूं लारै आवै।
म्हे नहीं दूहता, बाळका पीवता, उठै बिगम दे आसीस पावै।।

राठ के संग में सैंस नर सूरा, सैंस ही बांण कबांण बावै।
पाप का बांण तौ फूस की फांस ज्यूं, चालती पून में बूवा ही जावै।।
सत को पोरस्यौ धरम की वार में, अेकलौ एक ही बाण बावै।
बिगै का बाण तौ ब्रह्मा की सगत ज्यूं, छूटतां पांण अेक मौत ही चावै।।
छेहला भड़ पांच भिड़्या रणखेत, छठा बिगमदे बैकुंठ जावै।।

छंद भुजंगी :-
लियां भड़ देह पिंडां इक ढांण।
घोड़ी चल आई सागण ठांण।।

धीणै धणियाप बैठी कर थाट।
अटेरण ऊन अटेरण हाथ।।
रळै दोय नार करै आ ही वात।
 बिगैजी गयां नै हुवा दिन च्यार।।

घोड़ी आंण फिरी माता के बार, नैणां भर नीर, पूठै जूंझार।।
जळंतां पेट दियौ फिटकार, कठै गंवायौ थैं बिगौ असवार।।

घोड़ी रीस करी, उतराद चली।
पलकां में कोस पंजार पड़ी।।
पड़ती लोथ हुवौ जूंझार।
माता सोच कियौ है विचार।।
मगर पचीसां हुवौ मोटियार।
 सासरै जाय, गउवां कै लार।।
छोटकी दाईं बजाई थैं वार।
हुवौ कुळ देव बडौ जूंझार।।
हुवौ न को होसी इसौ कोई जाट।
 बुवौ न को बैसी लखावट वाट।।
खेवौ नीं धूप करौ नीं गैगट्ट।
 कीवी जखड़ांयण देसां प्रगट्ट।।

आवै जग-लोक झड़त कळंक।
हुवौ कुळदेव बडौ निकळंक।।

भणै लछीराम, आ म्हारी अरज।
दुख दाळद दूर करौ नीं दरद।।

दोहा :-
कंचन सेती देवळी, सब जुग लेसी नांव।
रिड़वी गढ रौ पाटवी, कियौ बिगै नै धांम।।
नव लख जोगण सुरग में, हरि आगै जोड़ै हाथ।
ठाली ठीकर ठण-हणै, म्हांने छूटी दौ रुघनाथ।।
ले छूटी रुधनाथ सूं, गई अठारह खूर, अठारै सै उगणीसै, साकौ बूवौ भरपूर।
जखड़ांयत रा जाखड़ां, थां सूं दादै टाळ्यौ दूर।।
विप्र तुम्हारौ तावणियौ, थे जाखड़ भरपूर।
सौअे कोसे रिच्छा करौ, हिन्दवाणी रा सूर।।
उगणीसौ संवतां तणौ, बरस इकीसौ साल।
काती मास तिथ तेरसां, वार सनीचर वार।।
राजा तौ रतनसिंघ, सिरदारसिंघ राजकंवार।
धरमी बैठा पाटवी, भली बजाई वार।।
बड़ौ भाई सदासुख, पिता नांव श्रीराम।
सिंवर देवी सुलतानवी, औ छंद कह्यौ लछीराम।।
।। इति संपूर्णम् ।।
(नंद भारद्वाज की पुस्तक ‘पं लच्छीद राम कृत ‘करण कथा’ – एक विवेचन’ से साभार)

शुक्रवार, 25 अक्टूबर 2013

बिग्गाजी का मेला भरा

श्रीडूंगरगढ़- लोक देवता वीर बिग्गाजी के जन्म स्थान एवं शीश देवली धाम रीड़ी व धड़ देवली धाम बिग्गा में
दो दिवसीय मेला गुरुवार को पूर्ण हुआ। दोनों ही जगहों पर बुधवार रात को जागरण हुआ। गुरुवार को हवन के बाद धोक लगाई गई। बिग्गाजी के धोक लगाने श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़ सहित पंजाब-हरियाणा से श्रद्धालु पैदल व वाहनों से पहुंचे।
रीड़ी में वीर बिग्गाजी नवयुवक मंडल व बिग्गा में वीर बिग्गाजी मानव सेवा संस्थान के कार्यकर्ताओं ने
व्यवस्थाएं संभाली। रीड़ी में गो रक्षा दल द्वारा गो सेवा संबंधी वीडियो प्रोजेक्टर के माध्यम से दिखाया गया। बिग्गा में आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि बीकानेर के सोमगिरी महाराज थे।

गुरुवार, 10 अक्टूबर 2013

एक शाम वीर बिग्गाजी के नाम भव्य जागरण का आयोजन 16 अक्टुम्बर 2013 को...

एक शाम वीर बिग्गाजी के नाम भव्य जागरण का आयोजन 16 अक्टुम्बर 2013 को....
अत्यन्त हर्ष और उल्लास के साथ सुचित किया जाता है कि लोकदेवता श्री वीर बिग्गाजी का विशाल रात्री जागरण दिनांक 16 अक्टुम्बर शाम को तथा भव्य मेला 17 अक्टुम्बर को हैँ, जिसमे आप सभी सादर आमन्त्रित है......
_________________________

निवेदक :- श्री वीर बिग्गाजी मानव सेवा संस्थान (रजि.)
वीर बिग्गाजी का मन्दिर ग्राम-श्री बिग्गा ,तह.-श्री डूँगरगढ (बीकानेर)

मंगलवार, 8 अक्टूबर 2013

श्री वीर बिग्गाजी महाराज का मेला 16 को..

श्री वीर बिग्गाजी महाराज का मेला 16 को..
आप सभी मेले में सादर आमंत्रित है ..
बाड़मेर- श्री वीर बिग्गा जी महाराज का मेला 16 अक्टूबर को शीश मंदिर रीड़ी एव धड़ मंदिर रोही बिग्गा श्री डूंगरगढ़ में आयोजित होगा. पश्चिमी भारत के लोक देवता श्री वीर बिग्गाजी महाराज के मेले की तैयारियां जोरों पर चल रही है. श्री वीर बिग्गाजी महाराज के मेले में 16 अक्टूबर की रात्रि में भव्य भजन संध्या आयोजित होगी, जिसमें भारी संख्या में भक्त मेले में शिरकत करेंगे ..

शनिवार, 5 अक्टूबर 2013

राजनितिक शख्शियत - बाड़मेर जैसलमेर के संसद रहे रामनिवास मिर्धा

जीवन परिचय : कांग्रेस के कद्दावर नेता रामनिवास मिर्धा इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की सरकारों में वर्षो तक विभिन्न मंत्रालयों में मंत्री रहे। उनका जन्म 24 अगस्त 1924 को नागौर जिले के कुचेरा ग्राम में तत्कालीन जोधपुर रियासत के पुलिस महानिरीक्षक बलदेवराम मिर्धा के यहां हुआ। उन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से
राजनीति विज्ञान में एमए तथा लखनऊ विश्वविद्यालय से विधि स्त्रातक किया। मिर्धा ने कुछ दिनों तक जिनेवा में भी अध्ययन किया। मिर्धा राजस्थान प्रशासनिक सेवा के भी अधिकारी रहे।


राजनीतिक परिचय : मिर्धा ने 1953 में राज्य सेवा से इस्तीफा दिया और जायल क्षेत्र से उपचुनाव में कांग्रेस टिकट पर विधायक चुने गए। वो 13 नवम्बर 1954 से मार्च 1957 तक सुखाडिया मंत्रिमंडल में कृषि, सिंचाई और परिवहन आदि विभागों में मंत्री रहे। 1957 के चुनाव में वो लाडनूं और 1962 में नागौर से फिर विधायक चुने
गए।
मिर्धा लगातार 25 मार्च 1957 से 2 मई 1967 तक राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष रहे। 1970 में पहली बार इंदिरा गांधी की सरकार में गृहराज्य मंत्री नियुक्त हुए और 1977 तक आपूर्ति एवं पुनर्वास राज्यमंत्री रहे। 1977 से 80 तक राज्यसभा के उपाध्यक्ष रहे। मिर्धा ने 1983 में सिंचाई राज्य मंत्री और 1984 में विदेश राज्यमंत्री का पद ग्रहण किया।
राजीव गांधी सरकार में उन्होंने केबिनेट मंत्री के रूप में पदोन्नत होकर वस्त्र मंत्रालय का भी कार्यभार
संभाला। दिसंबर 1984 में मिर्धा ने पहली बार नागौर से लोकसभा चुनाव लडा और नाथूराम
मिर्धा को पराजित किया। उसके बाद वो 1991 के मध्यावधि चुनाव में बाडमेर लोकसभा क्षेत्र से भी चुने
गए। मिर्धा कई सालों तक राजस्थान ललित कला अकादमी के अध्यक्ष भी रहे। 

सोमवार, 30 सितंबर 2013

राजनितिक शख्शियत -बाड़मेर की राजनीती के भीष्म पितामह गंगा राम चौधरी

बाड़मेर जिले की राजनितिक की दशा और दिशा दोनों तय करते थे गंगाराम चौधरी


गंगाराम चौधरी का जन्म राजस्थान के बाड़मेर जिले की रामसर तहसील के खडीन) गाँव में 1 मार्च 1922 को मालानी के किसान क्रांति के जनक रामदान चौधरी (डऊकिया) और किस्तुरी देवी भाकर के घर हुआ. रामदान चौधरी (डऊकिया) के पांच पुत्र थे :केसरी मल, लालसिंह हाकम, गंगाराम, फ़तेह सिंह और खंगारमल.


वकालत से जनसेवा
गंगाराम चौधरी ने बी.ए. एल.एल.बी. की डिग्रियां हासिल कर वकालत को अपना पैसा बनाया. इससे पूर्व आपने रेलवे में एल.डी.सी. का कार्य किया. जागीरदारी के समय किसानों पर होने वाले अत्याचारों, चौरी-डकैती, जमीन सम्बन्धी विवादों की न्यायलय में पुरजोर पैरवी की, गरीब किसानों की निशुल्क पैरवी की. सीमान्त क्षेत्र में आत्मरक्षार्थ बन्दूक लाईसेंस दिलवाया. पिताजी रामदान चौधरी के नेतृत्व में किसान सभा एवं किसान जाग्रति हेतु आपने इतने काम करवाए कि आज आप राजस्व के टोडर मल कहे जाते हैं.

राजनीती में आदर्श पिता रामदान चौधरी के पुत्र गंगाराम चौधरी एक मात्र विधायक हें जिन्होंने तीन विधानसभा क्षेत्रो का प्रतिनिधित्व किया।
राजनीती में प्रधान से लेकर मंत्री तक का सफ़र तय कर गंगा राम चौधरी ने अपने आपको कद्दावर  नेता के
रूप में स्थापित किया। उन्हें नाथूराम मिर्धा के समकक्ष नेता मानते थे ,बाड़मेर जिले की राजनीती गंगाराम से शुरू हो कर गंगाराम पर ख़त्म हो जाती। उनका राजनितिक कद राजनैतिक पार्टियों पर हमेशा भरी रहा कांग्रेस ,भाजपा ,जनता दल ,, और निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे ,चुनाव जीतते गए ,उनकी राजनितिक क्षमता अकूत
थी जिसका यहाँ कोई सानी नहीं। गंगा राम ,अब्दुल हादी ,श्रीमती मदन कौर लाज़वाब तिकड़ी थी। गंगाराम राज्य सरकारों में मंत्री भी रहे ,राजस्व मंत्री के रूप में वे थे ,उन्होंने किसानो को बड़ी राहत दी। बाड़मेर ,गुडा चौहटन से विधायक रहे ,जिला प्रमुख भी रहे।

 गंगाराम चौधरी ने राजनीती में आकर राजस्थान के विभिन्न विभागों में मंत्री रहकर जनता की सेवा की. जनप्रतिनिधि के रूप में आपका पदार्पण धोरीमन्ना पंचायत समिति के प्रधान के रूप में 1959 में हुआ.

1962 में गुढ़ा मालानी से विधायक, 1980 तक लगातार गुढा मालानी व बाड़मेर से विधायक बन
विधान सभा में प्रतिनिधित्व किया.
1967 में राजस्व उप-मंत्री बने.
1977 में कांग्रेस छोड़कर चरण सिंह के साथ कांग्रेस (अर्स) में आये.
1985 में बाड़मेर से विधायक चुने गए.
1985 -1990 बाड़मेर से लोकदल के सदस्य रहे
1990 - 1992 बाड़मेर से जनता दल के सदस्य रहे.
शेखावत सरकार में 24 नवम्बर 1990 से 15 दिसंबर 1992 तक राजस्व, भूमि सुधार एवं उपनिवेश विभागों में मंत्री रहे.
*1993 में निर्दलीय विधायक चुने गए और शेखावत सरकार में समर्थन देकर राजस्व एवं उपनिवेश विभागों में मंत्री रहे.
31 अगस्त 1998 को 20 वर्ष बाद कांग्रेस में आये तथा बाड़मेर जिला परिषद् के प्रमुख बने.
दिसंबर 2003 में भाजपा में आकर चोहटन विधायक बने.
आपने 30 वर्ष तक राजस्थान विधान सभा में बाड़मेर का प्रनिनिधित्व किया तथा 13 वर्ष मंत्रिमंडल के
सदस्य रहे.

रविवार, 22 सितंबर 2013


JAAT

स्वयं को महान् कहने से कोई महान् नहीं बनता । महान्
किसी भी व्यक्ति व कौम को उसके महान् कारनामे बनाते
हैं और उन कारनामों को दूसरे लोगों को देर-सवेर स्वीकार
करना ही पड़ता है। देव-संहिता को लिखने वाला कोई
जाट नहीं था, बल्कि एक ब्राह्मणवादी था जिसके हृदय में
इन्सानियत थी उसने इस सच्चाई को अपने हृदय
की गहराई से शंकर और पार्वती के संवाद के रूप में बयान
किया कि जब पार्वती ने शंकर जी से पूछा कि ये जाट कौन
हैं, तो शंकर जी ने इसका उत्तर इस प्रकार दिया -
महाबला महावीर्या महासत्यपराक्रमा ः |
सर्वांगे क्षत्रिया जट्टा देवकल्पा दृढ़व्रताः ||15||
(देव संहिता)
अर्थात् - जाट महाबली, अत्यन्त वीर्यवान् और प्रचण्ड
पराक्रमी हैं । सभी क्षत्रियों में यही जाति सबसे पहले
पृथ्वी पर शासक हुई । ये देवताओं की भांति दृढ़
निश्चयवाले हैं । इसके अतिरिक्त विदेशी व
स्वदेशी विद्वानों व महान् कहलाए जाने वाले
महापुरुषों की जाट कौम के प्रति समय-समय पर दी गई
अपनी राय और टिप्पणियां हैं जिन्हें कई पुस्तकों से संग्रह
किया गया है लेकिन अधिकतर
टिप्पणियां अंग्रेजी की पुस्तक हिस्ट्री एण्ड स्टडी ऑफ
दी जाट्स से ली गई है जो कनाडावासी प्रो० बी.एस.
ढ़िल्लों ने विदेशी पुस्तकालयों की सहायता लेकर लिखी है
-
1. इतिहासकार मिस्टर स्मिथ - राजा जयपाल एक महान्
जाट राजा थे । इन्हीं का बेटा आनन्दपाल हुआ जिनके बेटे
सुखपाल राजा हुए जिन्होंने मुस्लिम धर्म अपनाया और
‘नवासशाह’ कहलाये । (यही शाह मुस्लिम जाटों में एक
पदवी प्रचलित हुई । भटिण्डा व अफगानिस्तान का शाह
राज घराना इन्हीं के वंशज हैं - लेखक) ।
2. बंगला विश्वकोष - पूर्व सिंध देश में जाट गणेर प्रभुत्व
थी । अर्थात् सिंध देश में जाटों का राज था ।
3. अरबी ग्रंथ सलासीलातुत तवारिख - भारत के नरेशों में
जाट बल्हारा नरेश सर्वोच्च था । इसी सम्राट् से
जाटों में बल्हारा गोत्र प्रचलित हुआ - लेखक ।
4. स्कैंडनेविया की धार्मिक पुस्तक एड्डा - यहां के
आदि निवासी जाट (जिट्स) पहले आर्य कहे जाते थे
जो असीगढ़ के निवासी थे ।
5. यात्री अल बेरूनी - इतिहासकार - मथुरा में वासुदेव से
कंस की बहन से कृष्ण का जन्म हुआ । यह परिवार जाट
था और गाय पालने का कार्य करता था ।
6. लेखक राजा लक्ष्मणसिंह - यह प्रमाणित सत्य है
कि भरतपुर के जाट कृष्ण के वंशज हैं ।
इतिहास के संक्षिप्त अध्ययन से मेरा मानना है
कि कालान्तर में यादव अपने को जाट कहलाये जिनमें
एकजुट होकर लड़ने और काम करने की प्रवृत्ति थी और
अहीर जाति का एक बड़ा भाग अपने को यादव कहने लगा ।
आज भी भारत में बहुत अहीर हैं जो अपने को यादव
नहीं मानते और गवालावंशी मानते हैं ।
7. मिस्टर नैसफिल्ड - The Word Jat is nothing
more than modern Hindi Pronunciation of
Yadu or Jadu the tribe in which Krishna was
born. अर्थात् जाट कुछ और नहीं है बल्कि आधुनिक
हिन्दी यादू-जादु शब्द का उच्चारण है, जिस कबीले में
श्रीकृष्ण पैदा हुए।
दूसरा बड़ा प्रमाण है कि कृष्ण जी के गांव नन्दगांव व
वृन्दावन आज भी जाटों के गांव हैं । ये सबसे बड़ा भौगोलिक
और सामाजिक प्रमाण है । (इस सच्चाई को लेखक ने स्वयं
वहां जाकर ज्ञात किया ।)
8. इतिहासकार डॉ० रणजीतसिंह - जाट तो उन
योद्धाओं के वंशज हैं जो एक हाथ में रोटी और दूसरे हाथ में
शत्रु का खून से सना हुआ मुण्ड थामते रहे ।
9. इतिहासकार डॉ० धर्मचन्द्र विद्यालंकार - आज
जाटों का दुर्भाग्य है कि सारे संसार
की संस्कृति को झकझोर कर देने वाले जाट आज
अपनी ही संस्कृति को भूल रहे हैं ।
10. इतिहासकार डॉ० गिरीशचन्द्र द्विवेदी -
मेरा निष्कर्ष है कि जाट संभवतः प्राचीन सिंध
तथा पंजाब के वैदिक वंशज प्रसिद्ध लोकतान्त्रिक
लोगों की संतान हैं । ये लोग महाभारत के युद्ध में
भी विख्यात थे और आज भी हैं ।
11. स्वामी दयानन्द महाराज आर्यसमाज के संस्थापक ने
जाट को जाट देवता कहकर अपने प्रसिद्ध ग्रंथ
सत्यार्थप्रकाश में सम्बोधन किया है । देवता का अर्थ है
देनेवाला । उन्होंने कहा कि संसार में जाट जैसे पुरुष
हों तो ठग रोने लग जाएं ।
12. प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ तथा हिन्दू विश्वविद्यालय
बनारस के संस्थापक महामहिम मदन मोहन मालवीय ने
कहा - जाट जाति हमारे राष्ट्र की रीढ़ है । भारत
माता को इस वीरजाति से बड़ी आशाएँ हैं । भारत
का भविष्य जाट जाति पर निर्भर है ।
13. दीनबन्धु सर छोटूराम ने कहा - हे ईश्वर, जब
भी कभी मुझे दोबारा से इंसान जाति में जन्म दे तो मुझे
इसी महान् जाट जाति के जाट के घर जन्म देना ।
14. मुस्लिमों के पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहब ने कहा - ये
बहादुर जाट हवा का रुख देख लड़ाई का रुख पलट देते हैं ।
(सलमान सेनापतियों ने भी इनकी खूब
प्रतिष्ठा की इसका वर्णन मुसलमानों की धर्मपुस्तक
हदीस में भी है - लेखक) ।
15. हिटलर (जो स्वयं एक जाट थे), ने कहा - मेरे शरीर में
शुद्ध आर्य नस्ल का खून बहता है । (ये वही जाट थे
जो वैदिक संस्कृति के स्वस्तिक चिन्ह (卐) को जर्मनी ले गये
थे - लेखक)।
16. कर्नल जेम्स टॉड राजस्थान इतिहास के रचयिता ।
(i): उत्तरी भारत में आज जो जाट किसान खेती करते पाये
जाते हैं ये उन्हीं जाटों के वंशज हैं जिन्होंने एक समय मध्य
एशिया और यूरोप को हिलाकर रख दिया था ।
(ii): राजस्थान में राजपूतों का राज आने से पहले
जाटों का राज था ।
(iii): युद्ध के मैदान में जाटों को अंग्रेज पराजित नहीं कर
सके ।
(iv): ईसा से 500 वर्ष पूर्व जाटों के नेता ओडिन ने
स्कैण्डेनेविया में प्रवेश किया।
(v): एक समय राजपूत जाटों को खिराज (टैक्स) देते थे ।
17. यूनानी इतिहासकार हैरोडोटस ने लिखा है
(i) There was no nation in the world equal to
the jats in bravery provided they had unity
अर्थात्- संसार में जाटों जैसा बहादुर कोई नहीं बशर्ते
इनमें एकता हो । (यह इस प्रसिद्ध यूनानी इतिहासकार
ने लगभग 2500 वर्ष पूर्व में कहा था । इन दो लाइनों में
बहुत कुछ है । पाठक कृपया इसे फिर एक बार पढें । यह
जाटों के लिए मूलमंत्र भी है – लेखक )
(ii) जाट बहादुर रानी तोमरिश ने प्रशिया के महान
राजा सायरस को धूल चटाई थी ।
(iii) जाटों ने कभी निहत्थों पर वार नहीं किया ।
18. महान् सम्राट् सिकन्दर जब जाटों के बार-बार
आक्रमणों से तंग आकर वापिस लौटने लगे तो कहा- इन
खतरनाक जाटों से बचो ।
19. एक पम्पोनियस नाम के प्राचीन इतिहासकार ने
कहा - जाट युद्ध तथा शत्रु की हत्या से प्यार करते हैं ।
20. हमलावर तैमूरलंग ने कहा - जाट एक बहुत ही ताकतवर
जाति है, शत्रु पर टिड्डियों की तरह टूट पड़ती है,
इन्होंने मुसलमानों के हृदय में भय उत्पन्न कर दिया।
21. हमलावर अहमदशाह अब्दाली ने कहा - जितनी बार
मैंने भारत पर आक्रमण किया, पंजाब में खतरनाक जाटों ने
मेरा मुकाबला किया । आगरा, मथुरा व भरतपुर के जाट
तो नुकीले काटों की तरह हैं ।
22. एक प्रसिद्ध अंग्रेज मि. नेशफील्ड ने कहा - जाट एक
बुद्धिमान् और ईमानदार जाति है ।
23. इतिहासकार सी.वी. वैद ने लिखा है - जाट जाति ने
अपनी लड़ाकू प्रवृत्ति को अभी तक कायम रखा है ।
(जाटों को इस प्रवृत्ति को छोड़ना भी नहीं चाहिए,
यही भविष्य में बुरे वक्त में काम भी आयेगी - लेखक)
24. भारतीय इतिहासकार शिवदास गुप्ता - जाटों ने
तिब्बत,यूनान, अरब, ईरान, तुर्कीस्तान, जर्मनी,
साईबेरिया, स्कैण्डिनोविया, इंग्लैंड, ग्रीक, रोम व
मिश्र आदि में कुशलता, दृढ़ता और साहस के साथ राज
किया । और वहाँ की भूमि को विकासवादी उत्पादन के
योग्य बनाया था । (प्राचीन भारत के उपनिवेश
पत्रिका अंक 4.5 1976)
25. महर्षि पाणिनि के धातुपाठ (अष्टाध्यायी) में - जट
झट संघाते - अर्थात् जाट जल्दी से संघ बनाते हैं ।
(प्राचीनकाल में खेती व लड़ाई का कार्य अकेले
व्यक्ति का कार्य नहीं था इसलिए यह जाटों का एक
स्वाभाविक गुण बन गया - लेखक)
26. चान्द्र व्याकरण में - अजयज्जट्टो हूणान् अर्थात्
जाटों ने हूणों पर विजय पाई ।
27. महर्षि यास्क - निरुक्त में - जागर्ति इति जाट्यम् -
जो जागरूक होते हैं वे जाट कहलाते हैं ।
जटायते इति जाट्यम् - जो जटांए रखते हैं वे जाट कहलाते हैं

28. अंग्रेजी पुस्तक Rise of Islam - गणित में शून्य
का प्रयोग जाट ही अरब से यूरोप लाये थे । यूरोप के स्पेन
तथा इटली की संस्कृति मोर जाटों की देन थी ।
29. अंग्रेजी पुस्तक Rise of Christianity - यूरोप के
चर्च नियमों में जितने भी सुधार हुए वे सभी मोर जाटों के
कथोलिक धर्म अपनाये जाने के बाद हुए, जैसे कि पहले
विधवा को पुनः विवाह करने की अनुमति नहीं थी आदि-
आदि । मोर जाटों को आज यूरोप में ‘मूर बोला जाता है –
लेखक ।
30. दूसरे विश्वयुद्ध में जर्मनी की हार पर जर्मन जनरल
रोमेल ने कहा- काश, जाट सेना मेरे साथ होती । (वैसे जाट
उनके साथ भी थे, लेकिन
सहयोगी देशों की सेना की तुलना में बहुत कम थे
- लेखक)
31. सुप्रसिद्ध अंग्रेज योद्धा जनरल एफ.एस. यांग - जाट
सच्चे क्षत्रिय हैं । ये बहादुरी के साथ-साथ सच्चे,
ईमानदार और बात के धनी हैं ।
32. महाराजा कृष्णसिंह भरतपुर नरेश ने सन् 1925 में
पुष्कर में कहा - मुझे इस बात पर अभिमान है कि मेरा जन्म
संसार की एक महान् और बहादुर जाति में हुआ ।
33. महाराजा उदयभानुसिंह धोलपुर नरेश ने सन् 1930 में
कहा- मुझे पूरा अभिमान है कि मेरा जन्म उस महान् जाट
जाति में हुआ जो सदा बहादुर, उन्नत एवं उदार
विचारों वाली है । मैं
अपनी प्यारी जाति की जितनी भी सेवा करूँगा उतना ही
सच्चा आनन्द आयेगा ।
34. डॉ. विटरेशन ने कहा - जाटों में चालाकी और
धूर्तता,योग्यता की अपेक्षा बहुत कम होती है ।

Jivan Parichay - Svatantrata Sainani Shri Banna Ram Jakhar

बनाराम जाखड़ (1918 - 2004) (Bana Ram Jakhar) का जन्म राजस्थान के बाड़मेर जिले की बायतू तहसील के काऊ का खेड़ा (छीतर का पार) गाँव में मार्च 1918 को नाथाराम जाखड़ और वीरों देवी धतरवाल के घर हुआ.

14 वर्ष की अवस्था में ही कठिन पारिवारिक परिस्थितियों को देखते हुए पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में मजदूरी करने गए. वहां आपने मीरपुरख़ास तथा अन्य स्थानों पर मजदूरी की. उसी समय जोधपुर से सिंध तक रेल लाइन बिछाने का काम प्रारंभ हुआ तो सिंध प्रान्त रेलवे में 5 वर्ष तक नौकरी की.
11 अक्टूबर 1941 को आपका चयन जोधपुर सरदार रेजिमेंट में हो गया. द्वितीय विश्व युद्ध में आपने इटली, जर्मनी तथा अफ्रीका के देशों में भाग लिया. इटली, जर्मनी में आपने देखा कि वहां के लोगों का जीवन स्तर मारवाड़ के लोगों से कई गुना अच्छा है, जिसका कारण शिक्षा है. 17 मई 1947 को सरदार रिसाला से स्वैच्छिक सेवानिवृति लेकर बाड़मेर आ गए. किसान केशरी बलदेवराम मिर्धा एवं मालानी में किसानों के रहनुमा रामदान चौधरी के निर्देश में समाज सुधार कार्य में जुट गए. उस समय जागीरदारी जुल्म अपनी चरम सीमा पर थे. बाड़मेर शहर में जाटों के सर छिपाने के लिए जगह नहीं थी. किसान छात्रावास बाड़मेर के लिए
घर-घर एवं गाँव-गाँव से एक-एक दो- दो आना तथा बाजरी एकत्रित की. किसान मसीहा रामदान चौधरी की प्रेरणा एवं उनके नेतृत्व में अमराराम सारण, बनाराम जाखड़, आईदानजी भादू, कानाराम डऊकिया, गंगाराम चौधरी, दाऊराम, किसना राम, ठेला राम, मगाराम खारा आदि ने किसान छात्रावास के लिए चंदा एकत्रित किया.

15 मार्च 1948 को जोधपुर में बलदेवराम मिर्धा ने एक विशाल किसान रैली आयोजन की घोषणा की. रैली का गाँव-गाँव प्रचार हुआ, पर्चे बांटे गए. मालानी में रामदान चौधरी के नेतृत्व में बनाराम जाखड़ एवं साथियों ने किसानों को रैली में आने के लिए समझाया. उस समय जागीरदारों का इतना आतंक था की वे किसान सभा के कार्यकर्त्ता से बात करने में ही कतराते थे.
 प्रथम पंचायती राज चुनाव में ग्राम छीतर का पार, चोखला, कोसरिया, हूडों की ढाणी के सरपंच पद पर रहे.बाद में बाड़मेर ग्रामीण लोक अदालत के चैअरमैन के पद पर चार साल रहे.
किसान सभा के कांग्रेस में विलय के बाद आप भी कांग्रेस में शामिल हो गए. पक्के सिद्धांत वादी बनाराम जाखड़ ने जाट समाज के उत्थान के लिए अपनी सारी ताकत झोंक दी. जागीर उन्मूलन आन्दोलन में किसान सभा के शीर्ष नेताओं का जो सहयोग बनाराम ने किया, वह मालाणी के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा.
बनाराम जाखड़ का निधन 18 सितम्बर 2004 को हुआ.

सोमवार, 16 सितंबर 2013

भारतीय राजनीति के अपराजित नायक- चौधरी देवी लाल "राष्ट्रीय ताऊ"

चौधरी देवी लाल (जन्म- 25 सितंबर, 1914 - मृत्यु- 6 अप्रॅल, 2001) भारत के पूर्व उप प्रधानमंत्री एवं भारतीय राजनीति के पुरोधा, किसानों के मसीहा, महान स्वतंत्रता सेनानी, हरियाणा के जन्मदाता, राष्ट्रीय राजनीति के भीष्म-पितामह, करोड़ों भारतीयों के जननायक थे। आज भी चौधरी देवी लाल का महज नाम- मात्र लेने से ही, हज़ारों की संख्या में बुजुर्ग एवं नौजवान उद्वेलित हो उठते हैं। उन्होंने आजीवन किसान, मुजारों, मजदूरों, ग़रीब एवं सर्वहारा वर्ग के लोगों के लिए लड़ाई लड़ी और कभी भी पराजित नहीं हुए। आज उनका क़द भारतीय राजनीति में बहुत ऊंचा है। उन्हें लोग भारतीय राजनीति के अपराजित नायक के रूप में जानते हैं। उन्होंने भारतीय राजनीतिज्ञों के सामने अपना जो चरित्र रखा वह वर्तमान दौर में बहुत प्रासंगिक है।

जन्म
चौधरी देवी लाल का जन्म 25 सितंबर, 1914 को हरियाणा के सिरसा ज़िले में हुआ। इनके पिता का नाम चौधरी लेखराम, माँ का नाम श्रीमती शुंगा देवी और पत्नी का नाम श्रीमती हरखी देवी है।

आरंभिक जीवन
चौधरी देवी लाल ने अपने स्कूल की दसवीं की पढ़ाई छोड़कर सन् 1929 से ही राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेना शुरू कर दिया था। चौ. देवीलाल ने सन् 1929 में लाहौर में हुए कांग्रेस के ऐतिहासिक अधिवेशन में एक सच्चे स्वयं सेवक के रूप में भाग लिया और फिर सन् 1930 में आर्य समाज ने नेता स्वामी केशवानन्द द्वारा बनाई गई नमक की पुड़िया ख़रीदी, जिसके फलस्वरूप देशी नमक की पुड़िया ख़रीदने पर चौ. देवीलाल को हाईस्कूल से निकाल दिया गया। इसी घटना से प्रभाविक होकर देवी लाल जी स्वाधीनता संघर्ष में शामिल हो गए। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। देवी लाल जी ने देश और प्रदेश में चलाए गए सभी जन आन्दोलनों एवं स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर भाग लिया। इसके लिए इनको कई बार जेल यात्राएं भी करनी पड़ीं।

राजनीतिक जीवन
चौ. देवीलाल में बचपन से ही संघर्ष का मादा कूट-कूट भरा हुआ था। परिणामत: बचपन में उन्होंने जहाँ अपने
स्कूली जीवन में मुजारों के बच्चों के साथ रहकर नायक की भूमिका निभाई। इसके साथ ही महात्मा गांधी, लाला लाजपत राय, भगत सिंह के जीवन से प्रेरित होकर भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर राष्ट्रीय सोच
का परिचय दिया। 1962 से 1966 तक हरियाणा को पंजाब से अलग राज्य बनवाने में निर्णायक भूमिका निभाई। उन्होंने सन् 1977 से 1979 तथा 1987 से 1989 तक हरियाणा प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में जनकल्याणकारी नीतियों के माध्यम से पूरे देश को एक नई राह दिखाई। इन्हीं नीतियों को बाद में अन्य राज्यों व केन्द्र ने भी अपनाया। इसी प्रकार केन्द्र में प्रधानमंत्री के पद को ठुकरा कर भारतीय राजनीतिक
इतिहास में त्याग का नया आयाम स्थापित किया। वे ताउम्र देश एवं जनता की सेवा करते रहे और किसानों के
मसीहा के रूप में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा।

हरियाणा निर्माता
संयुक्त पंजाब के समय वर्तमान हरियाणा जो उस समय पंजाब का ही हिस्सा था, विकास के मामले में भारी भेदभाव हो रहा था। उन्होंने इस भेदभाव को न सिर्फ पार्टी मंच पर निरंतर उठाया बल्कि विधानसभा में भी आंकड़ों सहित यह बात रखीं और हरियाणा को अलग राज्य बनाने के लिए संघर्ष किया। जिसके परिणामस्वरूप 1 नवम्बर, 1966 को अलग हरियाणा राज्य अस्तित्व में आया और प्रदेश के निर्माण के लिए संघर्ष करने वाले चौधरी देवीलाल को हरियाणा निर्माता के तौर पर जाना जाने लगा।

जीवन शैली
चौधरी देवी लाल अक्सर कहा करते थे कि भारत के विकास का रास्ता खेतों से होकर गुज़रता है, जब तक ग़रीब किसान, मज़दूर इस देश में सम्पन्न नहीं होगा, तब तक इस देश की उन्नति के कोई मायने नहीं हैं। इसलिए वो अक्सर यह दोहराया करते थे-
हर खेत को पानी, हर हाथ को काम, हर तन पे कपड़ा, हर
सिर पे मकान, हर पेट में रोटी, बाकी बात खोटी।

अपने इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए चौ. देवीलाल जीवन पर्यंत संघर्ष करते रहे। उनकी सोच थी कि सत्ता सुख भोगने के लिए नहीं, अपितु जन सेवा के लिए होती है। चौ. देवीलाल के संघर्षमय जीवन की तस्वीर आज भारतीय जन-मानस के पटल पर साफ़ दिखाई देती है। भारतीय राजनीति के इतिहास में चौ. देवीलाल जैसे संघर्षशील नेता का मादा किसी अन्य राजनीतिक नेता में दिखलाई नहीं पड़ता। वर्तमान समय में जन मानस के पटल पर चौ. देवीलाल के संघर्षमय जीवन की जो तस्वीर अंकित है, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत का काम करती रहेगी। चौ. देवीलाल आज हमारे मध्य नहीं हैं, लेकिन उनका बुजुर्गाना अंदाज, मीठी झिड़कियां सही रास्ते की विचारधारा की सीख के रूप में जो कुछ वो देकर गए हैं, वह सदैव हमारे बीच रहेगा।

 चौ. देवीलाल अपने स्वभावनुसार पूरे ठाठ के साथ, झुझारूपन एवं अनोखी दबंग अस्मिता के साथ जीये। आज
अपनी मिट्टी से जुड़े तन-मन के दिलो-दिमाग पर राज करने वाले देवीलाल जैसे जननायक ढूंढने से भी नहीं मिल सकते। जनहित के कार्यों के रूप में स्व. देवीलाल जन-जन के अंत: पटल पर जो कुछ अंकित कर गए हैं, वो लम्बे समय तक उनकी याद जो ताजा कराता रहेगा। जन-मानस बर्बस स्मरण करता रहेगा कि हरियाणा की पुण्य भूमि ने ऐसे नर- केसरी को जन्म दिया था, जिसने अपने त्याग, संघर्ष और जुझारूपन से परिवार के मुखिया ताऊ के दर्जे को, राष्ट्रीय ताऊ के सम्मानजनक एवं श्रद्धापूर्ण पद के रूप में अलंकृत किया।

रविवार, 15 सितंबर 2013

खेमा बाबा मेले में उमड़ा आस्था का ज्वार,लाखों श्रद्धालुओं ने लगाईधोक..

बाड़मेर मारवाड़ के लोक देवता सिद्ध
श्री खेमा बाबा का मेला

बाड़मेर जिले के बायतु मुख्यालय पर भरा।जिसमे प्रदेश
भर के अलावा पड़ोसी
राज्यों के श्रद्धालुओं ने धोक लगाकर
खुशहाली की कामना की।खेमा बाबा को
सर्पो का देवता कहा जाता हैं।प्राचीन
मान्यता के अनुसार सर्प के काटने
पर खेमाबाबा के नाम की तांती(धागा) बांधने पर
सही हो जाता हैं।मेले में
शुक्रवार को रात्रि जागरण में क्षेत्र के
ख्याति प्राप्त कलाकारों ने
भजनों की PRASTUTIYEN DI, प्रस्तुतियों पर पूरी रात श्रोता झूमे।
मेले का मुख्य आकर्षण
भोपो का सांकल व ताजणो का न्रत्य रहा। शनिवार
दोपहर में विधायक कर्नल
सोनाराम चौधरी ने मेलास्थल पर पहुँच बाबा को धोक
लगाकर अमन चैन की कामना
की तथा पुलिस की व्यवस्थाओ PER विधायक नाराज हुए,
विधायक ने जिला पुलिस
अधीक्षक सवाई सिंह गोदारा से बात कर व्यवस्थाओ में
सुधार के निर्देश
दिये।मेले में पुलिस की व्यवस्थाएं नाममात्र की रही।
JAI BABA KHEM ... JAI VEER BIGGAJI

"जाटो का शेर"

बायतु -
यह प्रसिद लोक
देवता खेमा बाबा का जन्म स्थल है।यहा पर
गुजरात और राजस्थान के दुर दुर से
यात्री आते है। भादवा सुदी नवमी माघ
सुदी नवमी और चैत्र
सुदी नवमी को मेला लगता है।
हरलाल जाट का मेला-
यह मेला भले ही शिक्षित वर्ग तक सीमित
हो लेकिन बलदेव नगर का सबसे पवित्र स्थान है
फौजीऔ का देवता भी कहा जाता है क्योकि HLH से
सबसे ज्यादा फौजी बनते है . "जाटो का शेर" इस
उपनाम से हरलाल को जाना जाता है.

शनिवार, 14 सितंबर 2013

मालानी री धरा में जन्मया- सिद्धपुरुष खेमा बाबा

सिद्धपुरुष खेमा बाबा - राजस्थान के लोक देवता जिन्होंने समाज को एक नयी दिशा दी


बाड़मेर जिलै रै बायतू गाम मांय जनम्या खेमा बाबा जाटा हा। अै सदीव साधु- संन्यासी रै बेस मांय रैया करता हा, जिणरी वजै सूं लोग इणां नै 'खेमा बाबा' रै नाम सूं बतलावता।
अै आपरै जीवण मांय जैरीलै जीव-जंतुवां रै काटियौड़ै लोगां रा झाड़ा-झपटा करिया करता। इण भांत अै
अणगिणत लोगां नै अभयदान दिया। आपरै जीवण रै छहलै बगत ताईं अै बायतूं मायं इज रैया। सुरगवास सूं पांच-सात घड़ी पैला अै आपरै सगै-संबंधियां, मित्रां अर गामवासियां सूं आग्रह करियौ हौ के अबै म्हारौ अंतिम
बगत आयग्यौ है, थे लोग म्हनै अमुक जगै लिजाय'र बिना बालियां गाड दीजौ अर उण जगै अेक
चबूतरौ बणवाय दीजौ। जे किणी नै कोई तकलीफ हुय जावै तौ चबूतरै माथै नालेर इत्याद चढा देवैला तौ उणनै
किणी ई तरै री तकलीफ नीं हुवैला। खास तौर सूं जैरीलै जीव-जंतुवां रै काटियां तौ तत्काल इज आराम हुय
जावैला।

सिद्धपुरुष जाट खेमाराम जाखड़ आपरौ नश्वर शरीर
त्याग दियौ। उणां रै कैयां मुजब उणां नै अमुक स्थान
माथै गाडण सारू लेयग्या, पण वा जमीन बायतू रै अेक
ठाकर री ही, जिकां अपणी जमीन मांय गाडण
नीं दिया। कीं बगत बाद अचाणक ठाकर नै निपटण
री शंका हुई। ठाकर निपटण सारू गाम रै बारै गया।
सिद्धपुरुष खेमा बाबा रै नश्वर शरीर नै आपरी जमीन
मांय नीं गाडण देवण री बजै सूं जैरीला जीवजन्तु ठाकर
नै घेर लियौ। ठाकर जद अणूंती देर तांण बावड़िया नीं तौ परिवार रा सगला ई लोग उणां रै नीं बावड़ियां चिंतातुर हुवण लागग्या। उठीनै
खेमा बाबा रै नश्वर शरीर नै उणी जगै गाडण री मंजूरी सारू हजारूं लोग उडीक रैया हा। जद ठाकर नै सोधण सारू नौकर भेजीजियौ तौ पतौ लागियौ के वै तौ जैरीलै जीव-जंतुवां रै जाल सूं मुगत हुया। ठाकर
खेमा बाबा रै चमत्कार सूं प्रभावित हुय'र आपरी जमीन
मांय उणां रै शरीरर नै गाडण री मंजूरी देय दी अर खुद आपरै खरजै सूं उण माथै चबूतरौ बणवाय'र पैलौ नालेर
चढायौ।
आज वौ इज चबूतरौ अेक सुंदर मिंदर रै रूप मांय नागदेवता री बणियोड़ी प्रतिमावां अेक नीं, अनेकूं
विराजमान है। मिंदर रै च्यारूंमेर पक्की दीवारां रौ परकोटौ अर उणरै बीच मांय
जातरूवां रै ठैरण अर मिंदर रै कर्मचारियां अर पुजारियां रै रैवास सारू पक्का मकान बणियोड़ा है।
मिंदर रे लारली कानी 150 फुट सूं ई ऊंचौ रेतीलौ धोरौ आयौ थकौ है।
मेलै मांय हिस्सौ लेवण सारू दूर-दूर सूं हजारूं जातरूं अेकठ हुवै। जैरीलै जीव-जंतुवां सांप-बिच्छु इत्यार रै
काटियां उणी बगत इणां रै स्थल री जातरा करण, पूजा चढावण री जाचना करण अर मोरपांख नै
काडियौडै़ स्थल माथै बांधियां सूं तत्काल आराम मिल जावै। अैड़ौ करियां अेक नीं, अनेकूं श्रद्धालू भगतां नै
आराम अर राहत मिली है। नतीजन मैलै रै मौकै माथै हजारूं री तादाद में स्त्री, पुरुष, बच्चा, बूढ़ा सगला आवै, जिका आपरै साथै छोटौ-सोक सफेद कपड़ौ त्रिकोण आकार रौ लावै अर आपरी जाचना, चढावै .चढायां रे बाद उणनै नजीक खड़ै पेड़ रै बांध देवै।
मेलै रै अेक दिन विसाल पैमानै माथै  भजन-कीरतन रौ आयोजन हुवै। उण मांय  हर जाति रा लोग हिस्सौ लेवै। औ कार्यक्रम रात भर चालू रैवै। सूबै-सवाणी हजारूं लोग खेमा बाबा रै मिंदर दरसणां सारू जावै अर प्रसाद चढावै। प्रसाद सूं नीं जाणै कित्ती ई बोरियंा भर जावै। औ प्रसाद बाद में भजन करण वालां अर पिछड़ी जातियां रै लोगां मांय बांट दियौ जावै।

शुक्रवार, 13 सितंबर 2013

जसनाथ धाम में उमड़ा श्रद्धा का सैलाब

बाड़मेर- जसनाथ धाम
लीलसर में गुरुवार को भाद्रपद
की सप्तमी पर आयोजित मेले में श्रद्धालुओं
की भीड़ उमड़ी। आसपास के गांवों सहित
जिलेभर से भारी संख्या में भक्तों ने शिरकत
की और भगवान जसनाथ के दर्शन कर मन्नतें
मांगी। महंत मोटनाथ महाराज ने
बताया कि गुरुवार को सुबह सात बजे से
ही मेला शुरू हो गया, आसपास के गांवों से
काफी संख्या में भक्त पैदल ही मेला स्थल पहुंचे
और भगवान जसनाथ के दर्शन कर मन्नतें
मांगी। दोपहर होने तक तो मेला स्थल पर
भक्तों की भारी भीड़ के कारण पैर रखने
को जगह नहीं मिल रही थी। भक्तों ने कतार
में खड़े होकर जसनाथ भगवान के दर्शन किए
और मन्नतें मांगी। महंत से लिया आशीर्वाद :
मेले के दौरान जसनाथ मंदिर के महंत
मोटनाथ से आशीर्वाद लेने को लेकर
भक्तों का तांता लगा रहा। महंत से
आशीर्वाद के साथ ही मंदिर की फेरी लगाई
और दर्शन किए। मेले में सोडियार, बाछड़ाऊ,
सनावड़ा, बूठ जेतमाल, मेहलू, नोखड़ा, कगाऊ,
उड़ासर, धोरीमन्ना, चौहटन, इसरोल,
रामदेरिया, शोभाला जैतमाल,
मांगता सहित आसपास के गांवों व जिलेभर से
भारी संख्या में भक्त विभिन्न वाहनों से
मेला स्थल पहुंचे और दर्शन कर मन्नतें मांगी।
मेले को लेकर मंदिर को आकर्षक रोशनी से
सजाया गया। विवाहित जोड़ों ने लगाई
जात: मान्यता है कि विवाहित जोड़े
शादी के बाद मंदिर में जात लगाने के लिए
आते है। जहां मंदिर में दपंति सुखद जीवन के
लिए भगवान के दर्शन कर मंदिर के चारों ओर
जात लगाते है। नव विवाहित जोड़े शादी के
बाद मंदिर में अवश्य रूप से फेरी लगाने के
लिए आते है। विवाहित जोड़ों ने मंदिर
की प्रक्रिमा कर सुखद जीवन
की कामना की।

गुरुवार, 12 सितंबर 2013

अंजन की सीटी में

अंजन की सीटी में म्हारो मन
डोले
चला चला रे डिलैवर गाड़ी हौले
हौले ।।
बीजळी को पंखो चाले, गूंज
रयो जण भोरो
बैठी रेल में
गाबा लाग्यो वो जाटां को छोरो ।।
चला चला रे ।।
डूंगर भागे, नंदी भागे और भागे
खेत
ढांडा की तो टोली भागे, उड़े
रेत ही रेत ।।
चला चला रे ।।
बड़ी जोर को चाले अंजन, देवे
ज़ोर की सीटी
डब्बा डब्बा घूम रयो टोप
वारो टी टी ।।
चला चला रे ।।
जयपुर से जद
गाड़ी चाली गाड़ी चाली मैं
बैठी थी सूधी
असी जोर को धक्का लाग्यो जद मैं
पड़ गयी उँधी ।।
चला चला रे ।।
शब्दार्थ: डलेवर= ड्राईवर,
गाबा= गाने लगना, डूंगर= पहाड़,
नंदी= नदी , ढांडा= जानवर , जद=
जब (जदी, जर और जण
भी कहा जाता है), असी= ऐसा, इतना

जाट की पहचान लेखक - सव0 स्वामी शिवराम, जावरौ ग्राम

जाट की नसल की असल
पहिचान यही,
सुंदर शरीर,
ह्रष्ट-पुष्ट डील
जाकौ है।
दाता और सूर होय, बल
भरपूर होय,
जाति पर गरुर होय,
धीर वीर बांकौ है ।।
सायर सपूत होय, दिल
मजबूत होय,
ताकत अकूत होय,
युद्ध में
अदाकौ है ।
वीर वर बांका होय,
काल की न शंका होय,
जवान ऐसे ढंग
का होय, जाट नाम
जाकौ है ।।
लोक वेद रीति जाने,
धर्म, कर्म
नीति जाने,
प्रेम भाव
प्रीति जाने,
कीरति बखानिये ।
पर उपकारी होय, धीर
व्रतधारी होय,
वीर कर्मचारी होय,
दया हिय आनिये ।।
धर्म ते टरे न कभी,
युद्ध ते डरे न
कभी ।
कहिके फिरे न कभी,
लाभ चाहे हानिये,
देश को हितेशी होय,
भावना स्वदेशी होय,
जाकी रूचि ऐसी होय,
जाट ताहि जानिये ।।

चेतो करल्यो रै - धमाळ

चेतो करल्यो रै,
साथीड़ा सगळा एको करल्यो रै,
चेतो करल्यो रै ।
जाट कमायो खावै आपको,
दूजां नै नहीं भावै रै,
मूंडा मीठी बात, पीठ पर
छुरी चलावै रै ।
चेतो करल्यो रै ..... ।।1।।
एका बिना अब पार पड़ै ना, आज
टेम आ आई रै, ओरां कानी देखो,
कैंयां शोर मचाई रै ।
चेतो करल्यो रै ..... ।।2।।
धरती मां को लाल जाट,
बो अन्नदाता कहलावै रै, जय
जवान जय किसान को परचम
पहरावै रै ।
चेतो करल्यो रै ..... ।।3।।
जाळ रच रह्या जकानैं, मिलके
सबक सिखायो रै, सांचै-मांचै
राम राचै, "पदम" रो कह्यो रै
। चेतो करल्यो रै ..... ।।4।।

लोकदेवता तेजाजी

लोकदेवता तेजाजी का जन्मनागौर जिले में खड़नाल गाँव में ताहरजी (थिरराज) औररामकुंवरी के घर माघशुक्ला, चौदस संवत 1130यथा 29 जनवरी 1074 को जाट परिवार में हुआ था।उनके पिता गाँव केमुखिया थे।
यह कथा है कि तेजाजी का विवाह बचपन में ही पनेर गाँव में रायमल्जी की पुत्री पेमलके साथ हो गया था किन्तु शादी के कुछ ही समय बाद उनके पिता और पेमल के मामा में कहासुनी हो गयी और तलवार चल गई जिसमें पेमल के मामा की मौत हो गई। इस कारण उनके विवाह की बात को उन्हें बताया नहीं गया था।
एक बार तेजाजी को उनकी भाभी ने तानों के रूप में यह बात उनसे कह दी तब तानो से त्रस्त होकरअपनी पत्नी पेमल को लेने के लिए घोड़ी 'लीलण' पर सवार होकर अपनी ससुराल पनेर गए।रास्ते में तेजाजी को एक साँप आग में जलता हुआ मिला तो उन्होंने उस साँप को बचा लिया किन्तु वह साँप जोड़े के बिछुड़ जाने के कारण अत्यधिक क्रोधित हुआ और उन्हें डसने लगा तब उन्होंने साँप को लौटते समय डस लेने का वचन दिया और ससुराल की ओरआगे बढ़े।
वहाँ किसी अज्ञानता के कारण ससुराल पक्ष से उनकी अवज्ञा हो गई।नाराज तेजाजी वहाँ से वापस लौटने लगे तब पेमल से उनकी प्रथम भेंट उसकी सहेली लाछा गूजरी के यहाँ हुई। उसी रात लाछा गूजरी की गाएं मेर के मीणा चुरा ले गए।
लाछा की प्रार्थना परवचनबद्ध हो कर तेजाजी ने मीणा लुटेरों से संघर्ष कर गाएं छुड़ाई। इस गौरक्षा युद्ध
में तेजाजी अत्यधिक घायल हो गए। वापस आने पर वचन की पालना में साँप के बिल पर आए तथा पूरे शरीर पर घाव होने के कारण जीभ पर साँप से कटवाया। किशनगढ़ के पास सुरसरा में सर्पदंश से उनकी मृत्यु भाद्रपद शुक्ल10 संवत 1160, तदनुसार28 अगस्त 1103 हो गई तथा पेमल ने भी उनके साथ जान दे दी। उस साँप
ने उनकी वचनबद्धता से प्रसन्न हो कर उन्हें वरदान दिया। इसी वरदान के कारण तेजाजी  साँपों के देवता के रूप में पूज्य हुए।गाँव गाँव में तेजाजी के देवरे या थान में उनकी तलवारधारीअश्वारोही मूर्ति के  साथ नाग देवता की मूर्ति भी होतीहै। इन देवरो में साँप के काटने पर जहर चूस कर निकाला जाता है तथा तेजाजी की तांतबाँधी जाती है।
तेजाजी केनिर्वाण दिवस भाद्रपद शुक्ल दशमी को प्रतिवर्ष तेजादशमी के रूप में मनाया जाता है।

रविवार, 18 अगस्त 2013

धन्ऩाजी भगत

बंधुओँ धन्ऩा भगतजी ईश्वर भक्ति की एक
अनुपम मिशाल थे। कहते है उनका खेत स्वँय
भगवान ने जौता था। उनके बारे मेँ विस्तृत
जानकारी तो उपलब्ध नहीँ हो पायी। मगर
जितना हो सके बता रहा हुँ।
.
जन्म -बैशाख सुदी तीज 1472
जन्मस्थान- धुवनकलां गाँव, टोँक
गौत्र- हरछतवाल जाट
पिताजी- रामेश्वरजी
माता- गंगाबाई
ननिहाल गौत्र- गढवाल जाट
ससुराल गौत्र- कैरु जाट
गुरु- रामानंद जी
.
धना भगत रामानंद जी के शिष्य थे जिन्होने
वैष्णव धर्म का प्रतिपादन किया। धना भगतजी ने
धनावंशी वैष्णव(स्वामी) पंथ चलाया। जिसके
अधिकांश अनुयायी जाट थे।और
धनावंशी स्वामी समाज की गौत्रेँ भी जाट
गौत्रोँ के समान ही है।
.
"धन्ऩा जाट को हरी सुँ हेत,
बिना बीज के निपज्या खेत"
.
धन्य हो धन्ऩाजी भगत

जाट-गौरव, अमर क्षत्रिय, गौरक्षक वीर श्री बिग्गाजी महाराज

परिचय:
.
जन्म- वि.सं 1358(1301ईँ)
जन्मस्थान- रीङीग्राम, श्रीडुँगरगढ,बीकानेर!
गौत्र- जाखङ जाट
दादा-लाखोजी
पिता-मेहन्दजी                                                      
माता-सुलतानी देवी
नाना-चूहङजी गौदारा
ननिहाल- कपूरीसर
बहन-हरियाबाई
पत्नियाँ -राजकुँवर व मीराँ
निर्वाण- बैशाख सुदी तीज 1393 (1336ई)
मँदिर- बिग्गाग्राम व रीङी श्रीडुँगरगढ,बीकानेर!
.
कहा जाता है की वीर बिग्गाजी अपने साले की शादी मेँ गये हुए थे तब वहाँ कुछ ब्राह्मण स्त्रीयोँ ने आकर उनसे अपनी गाये राठ मुसलमानोँ से मुक्त करवाने की प्राथना की।
बिग्ग़ाजी युद्ध मे वीरगति को प्राप्त हुए ,मगर उन्होने गौमाताऔँ को मुक्त करवा लिया।
उनका धङ जहाँ गिरा वहाँ उनकी देवली प्रकट हुई। यह स्थान आज बिग्गा  कहलाता है ,जहाँ प्रत्येक वर्ष आसौज माह मेँ विशाल मेला भरता है।
गौरक्षक कुलगौरव वीर बिग्गाजी महाराज को शत शत नमन.....

मंगलवार, 19 मार्च 2013

अनपढ़ जाट पढ़ा जैसा, पढ़ा जाट खुदा जैसा

पंचायत के अनूठे, ऐतिहासिक पंच यह घटना सन् 1270-1280 के बीच की है। दिल्ली में बादशाह बलबन का राज्य था। उसके दरबार में एक अमीर दरबारी था जिसके तीन बेटे थे। उसके पास उन्नीस घोड़े भी थे। मरने से पहले वह वसीयत लिख गया कि इन घोड़ों का आधा हिस्सा बड़े बेटे को, चौथाई हिस्सा मंझले को और पांचवां हिस्सा सबसे छोटे बेटे को बांट दिया जाये। बेटे उन 19 घोड़ों का इस तरह बंटवारा कर ही नहीं पाये और बादशाह के दरबार में इस समस्या को सुलझाने के लिए अपील की।

बादशाह ने अपने सब दरबारियों से सलाह ली पर उनमें से कोई भी इसे हल नहीं कर सका। उस समय प्रसिद्ध कवि अमीर खुसरो बादशाह का दरबारी कवि था। उसने जाट लोगों की वीर भाषा को समझाने के लिए एक
पुस्तक भी बादशाह के कहने पर लिखी थी जिसका नाम “खलिक बारी” था। खुसरो ने कहा कि मैंने हरयाणा में खूब घूम कर देखा है और पंचायती फैसले भी सुने हैं और सर्वखाप पंचायत का कोई पंच ही इसको हल कर सकता है।

नवाब के लोगों ने इन्कार किया कि यह फैसला तो हो ही नहीं सकता पर परन्तु कवि अमीर खुसरो के कहने पर बादशाह बलबन ने सर्वखाप पंचायत में अपने एक खास आदमी को चिट्ठी देकर सौरम गांव (जिला मुजफ्फरनगर) भेजा (इसी गांव में शुरू से सर्वखाप पंचायत का मुख्यालय चला आ रहा है और आज भी मौजूद है)। चिट्ठी पाकर पंचायत ने प्रधान पंच चौधरी रामसहाय को दिल्ली भेजने का फैसला किया। चौधरी साहब अपने घोड़े पर सवार होकर बादशाह के दरबार में दिल्ली पहुंच गये और बादशाह ने अपने सारे दरबारी बाहर के मैदान में इकट्ठे कर लिये। वहीं पर 19 घोड़ों को भी लाइन में बंधवा दिया।

 चौधरी रामसहाय ने अपना परिचय देकर कहना शुरू किया - “शायद इतना तो आपको पता ही होगा कि हमारे यहां राजा और प्रजा का सम्बंध बाप-बेटे का होता है और प्रजा की सम्पत्ति पर राजा का भी हक होता है। इस नाते मैं जो अपना घोड़ा साथ लाया हूं, उस पर भी राजा का हक बनता है। इसलिये मैं यह अपना घोड़ा आपको भेंट करता हूं और इन 19 घोड़ों के साथ मिला देना चाहता हूं, इसके बाद मैं बंटवारे के बारे में अपना फैसला सुनाऊंगा।”

बादशाह बलबन ने इसकी इजाजत दे दी और चौधरी साहब ने अपना घोड़ा उन 19 घोड़ों वाली कतार के आखिर में बांध दिया, इस तरह कुल बीस घोड़े हो गये। अब चौधरी ने उन घोड़ों का बंटवारा इस तरह कर दिया -- आधा हिस्सा (20/2 = 10) यानि दस घोड़े उस अमीर के बड़े बेटे को दे दिये। चौथाई हिस्सा (20/4 = 5) यानि पांच घोडे मंझले बेटे को दे दिये। पांचवां हिस्सा (20/5 = 4) यानि चार घोडे छोटे बेटे को दे दिये। इस प्रकार उन्नीस (10 + 5 +4 = 19) घोड़ों का बंटवारा हो गया। बीसवां घोड़ा चौधरी रामसहाय का ही था जो बच गया।

बंटवारा करके चौधरी ने सबसे कहा - “मेरा अपना घोड़ा तो बच ही गया है, इजाजत
हो तो इसको मैं ले जाऊं....?” बादशाह ने हां कह दी और चौधरी का बहुत सम्मान और
तारीफ की।

चौधरी रामसहाय अपना घोड़ा लेकर अपने गांव सौरम की तरफ कूच करने ही वाले थे, तभी वहां पर मौजूद कई
हजार दर्शक इस पंच फैसले से गदगद होकर नाचने लगे और कवि अमीर खुसरो ने जोर से कहा - “अनपढ़ जाट
पढ़ा जैसा, पढ़ा जाट खुदा जैसा”। सारी भीड़ इसी पंक्ति को दोहराने लगी। तभी से यह कहावत सारे हरयाणा और दूसरी जगहों में फैल गई।
यहां यह बताना भी जरूरी है कि 19 घोड़ों के बंटवारे के समय विदेशी यात्री और इतिहासकार इब्न-बतूत
भी वहीं दिल्ली दरबार में मौजूद था।
यह वृत्तांत सर्वखाप पंचायत के अभिलेखागार में मौजूद
है....!!

जाट समाज ने बढ़ाया देश का गौरव

देश की सुरक्षा एवं विकास में जाट समुदाय का उल्लेखनीय योगदान रहा है। जाट समाज के युवा खिलाड़ियों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का गौरव बढ़ाया है। जाट सपूत देश की आन-शान के लिए अपनी कुर्बानी देते रहे हैं। जाट हमेशा से जुझारू रहे हैं। जाटों ने सेना में भर्ती हुये और जाटों ने रणक्षेत्र में अपनी बहादुरी को सिद्ध किया और वास्तविक क्षत्रियकहलाये ।
जाट आज खेल के मैदान में छाए हुए है । क्रिकेटकी पिच से लेकर बॉक्सिंग की रिंग तक । कुश्ती के अखाड़ा से लेकर बैडमिंटन के कोर्ट में । ये जाट खिलाड़ी न सिर्फ भारत का झंड़ा ऊंचा कर रहे है बल्कि जाटों को खुद पर गर्व करने काएक और मौका दे रहे है।
जाट प्रसिद्ध खिलाड़ी, भारत के धाकड़ बल्लेबाज़ वीरेंदर सहवाग, बॉक्सिंग स्टार विजेंद्र, ममता ख़रब महिला हॉकी टीम की कप्तान, बैडमिंटन की चैंपियन खिलाड़ी साइना नेहवाल, दिल्ली के प्रदीप सांगवान, प्रतिभाशाली महिला एथलीट कृष्णा पूनिया, दारा सिंह अपने जमाने के एक कुशल अभिनेता व कुश्ती के प्रसिद्ध खिलाड़ी रहे हैं।
दारा सिंह खुद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई नामी-गिरामी पहलवानों को कुश्ती में हरा चुके हैं। इनमें पहलवानी के इतिहास के कई बड़े नाम शामिल हैं जैसे स्टानिलॉस जिबिस्को, लू थेज और यूएस के कई पेशेवर पहलवान। साल 1996 में दारा सिंह को रेसलिंग ऑब्जर्वर न्यूजलेटर हॉल ऑफ फेम में शामिल किया गया।
भारत के इतिहास में सूरजमल को 'HINDUSTAN का प्लेटो' कहकर भी सम्बोधित किया गया है।
भारतीय राज्य व्यवस्था में सूरजमल का योगदानसैद्धान्तिक या बौद्धिक नहीं, अपितु रचनात्मक तथा व्यवहारिक था। जाट-राष्ट्र का सृजन एवं पोषण एक आश्चर्यजनक सीमा तक इस असाधारण योग्य पुरुष का ही कार्य था।
बहुत समय तक जाटों पर लुटेरा और बर्बर होने का कलंक लगा रहा। पुरानी कहावत अनपढ़ जाट पढ़ा जैसा और पढ़ा जाट खुदा जैसा........
भारत में पहली बार जाट जाति से चौ० चरणसिंह प्रधानमन्त्री बने हैं ।
SIRछोटूराम का जन्म 24 नवम्बर 1881 में झज्जर के छोटे से गांव गढ़ी सांपला में बहुत ही साधारण जाट परिवार में हुआ (झज्जर उस समय रोहतक जिले का ही अंग था)। छोटूराम का असली नाम राय रिछपाल था।
क्षत्रिय शिरोमणि वीर श्री बिग्गाजी महाराज- गौमाता के नाम से पूजी जाने वाली गाय जिसके शरीर में तैंतीस करोड़ देवी देवता निवास करते हैं कि रक्षा दुष्ट चोरों से करने के लिए भगवान ने इस देश की सबसे पवित्र कौम जाट के घर
वीर श्री बिग्गाजी महाराज के रूप में अवतार लिया और गायों की रक्षा की।
लोक देवता तेजा जी का जन्म नागौर जिले में खड़नाल गाँव में ताहर जी (थिरराज) और रामकुंवरी के घर माघ शुक्ला, चौदस संवत 1130 यथा 29 जनवरी 1074 को जाट परिवार में हुआ था।तेजाजी की गौ रक्षक एवं वचनबद्धता की गाथा लोक गीतों एवं लोक नाट्य में राजस्थान के ग्रामीण अंचल में श्रद्धाभाव से गाई व सुनाई जाती है।
महाराजा नाहर सिंह बल्लभगढ़ रियासत के राजा तथा तेवतिया खानदान से थे जो 1857 में देश कीआजादी के लिए शहीद होने वाले पहले राजा थे ।
महाराजा महेन्द्र प्रताप मुरसान-अलीगढ़ (उ.प्र.) रियासत के राजा थे और ठेनूवा वंश से सम्बन्धित थे । जिन्होंने देश की आजादी के लिए रियासत की बलि देकर 33 साल विदेशों में रहकर देश की आजादी के लिए अलख जगाई ।
जाट शासकों में महाराजा सूरजमल (शासनकाल सन 1755 से सन् 1763 तक) और उनके पुत्र जवाहर सिंह (शासन काल सन् 1763 से सन् 1768 तक ) ब्रज के इतिहास में बहुत प्रसिद्ध हैं ।
जाट रेजीमेंट जाट रेजिमेंट भारतीय सेना की एक पैदल सेना रेजिमेंट है| यह सेना की सबसे पुरानी और सबसे ज्यादा वीरता पुरस्कार विजेता रेजिमेंट है| जाट सपूत देश की आन-शान के लिए अपनी कुर्बानी देते रहे हैं।
‘राज करेगा जाट’ । मुझे जाट होने पर गर्व है।

रविवार, 17 मार्च 2013

हिन्दु धर्म के संरक्षक और महान गौ रक्षक वीर बिग्गाजी महाराज

राजस्थान के वर्तमान बीकानेर जिले मेँ स्थित गाँव बिग्गा व रिङी मेँ जाखङ जाटोँ का भोमिचारा था । ओर लम्बे समय तक जाखङोँ का इन पर अधिकार बना रहा ।
बिग्गा जी का जन्म विक्रम संवत 1358 (1301) मेँ रिङी मेँ हुआ,  हिन्दु धर्म के संरक्षक और महान गौ रक्षक बिग्गाजी ने बैसाख सुदी तीज को 1336 ईँ. मेँ गायो कि रक्षा के लिये अपने प्राण दांव पर लगा दिये

वीर  बिग्गाजी 1336 ई. मेँ अपने ससुराल मेँ साले की शादी मेँ गये तब सुबह खाने के समय कुछ औरतेँ आई ओर बिग्गाजी से सहायता की गुहार कि यहाँ के राठ मुसलमानोँ ने हमारी सारी गायोँ को छिन लिया वे उनको लेकर जंगल की ओर जा रहे हैँ । इस बात पर बिग्गाजी का खून खोल उठा ओर घोङी पर सवार होकर युध्द के लिये रवाना हो गये..
 लुटेरे संख्या मेँ अधिक थे पर वे बिग्गाजी के सामने टिक नहीँ सके । युध्द मेँ राठोँ को पराजित कर सारी गायेँ वापस ले ली थी लेकिन एक बछङे के पीछे रह जाने के कारण ज्योँही बिग्गाजी वापस मुङे तब एक राठे ने
धोखे से आकर पीछे से बिग्गाजी का सर धङ से अलग कर दिया । सर धङ से अलग होने के बाद
भी अपना काम कर रहा था ओर सब राठोँ को मार दिया था ।
देह के आदेश पर गायेँ ओर घोङी वापस अपने मूल स्थान की ओर चल पङे ।
घोङी बिग्गाजी का शीश लेकर जाखङ राज्य की ओर चल पङी । जब घोङी अपने मुंह मेँ बिग्गाजी का शीश दबाये
जाखङ राज्य की राजधानी रिङी पहुँची तो उस घोङी को बिग्गाजी की माता ने देख लिया तथा घोङी को अभिशाप दिया की जो घोङी अपने मालिक सवार का शीश कटवा देती है तो उसका मुंह नहीँ देखना चाहिए । कुदरत का खेल कि घोङी ने यह बात सुनी तो वह वापस दौङने लगी पहरेदारोँ ने दरवाजा बंद कर दिया तो घोङी ने छलांग लगाई ओर किले कि दीवार को फांद लिया,  किले के बाहर बनी खाई मेँ उस घोङी के मुंह से बिग्गाजी का शीश छुट गया जहां आज शीश देवल बना है ।
बिग्गाजी के शहीद होने का समाचार उनकी बहिन हरिया को मिला तो वह भी सती हो गयी ।
जब घोङी बिग्गाजी का धङ ला रही तो उस समय जाखङ कि राजधानी रिङी से 5 कोस दुरी पर थी ।
घोङी को देखकर वहां कि गायेँ बिदक गयी ग्वालोँ ने गायोँ को रोकने का प्रयास किया तो उनमेँ से एक गाय
घोङी से टकरा गयी तथा खून का छिँटा उछला । उसी स्थान पर बसाया गया गाँव का नाम  बिग्गा रखा गया ।
यह गाँव आज भी आबाद हे तथा इसमेँ अधिक संख्या जाखङ जाटोँ की है ।

गुरुवार, 14 मार्च 2013

धरमी धोल्या रा सिलोका

सदा मनाऊंये शारदा, माता करज्यौ मेहर
नान्यूं जलम्यौ रै नखतरां रै, गढ़ खरनाल्यौ सेहर
जलम दियो मातेसरी, धरमी धोल्या जाट
शुरो जलम्यौ सेहर में, पिंडता देखो हाथ
मात पिता परसण हुया, भगवंत दिन्हौ भेग
जोच्ची काढ यो टीपणो, नांव दिरायो तेज
रात बंदता दिन बध्या, च्चिव द्रांकर री मेहर
परण्यौ पीला पोतडां, तेजो सेहर पनेर
तड कै ऊठयौ पोर के, हलियो लीन्हो हाथ
आंटां वालौ पोतियो, थुथका रालै बाप
हाल पुराणी तो हल नुंवां, बैल्या नखरादार
हरिया मूंग मण्डोपरा, बीजै कंवर जुंवार
बैल्या बांध्या खेजडी, बैठो ढलती छांव
कांकड दीसै कांमणी, भाभज दीसै नांय
बैल्या भूखा रात रा, बिना हिरावण तेज
भाभज नै बिणती करां, कठै लगाई जेज
मण पीस्यौ मण पोवियो, मण बलदां के मोठ
घर से भूखी नीकली, मं आई अकण चोट
भोजन जीमल्यौ लाल जी, मती भरीजौ रीस
घर में सारो माय को, म्है किस विधि ल्यावां कोस
अन्न जल ल्यूं नही आप रो, सुण बीराली नार
सीधा जावांलां सासरै, भोजन बणसी त्यार
कर खेंकरो ऊठियो ,मेल मूंछ पर हाथ
गौर खोल टे गुजरी गिण गिण लेल्यो गाय
सारी दीसे चूकती, म्हारै निजरयां आयो नांय
कांण्यों म्हारौ केरड़ो, कठै थे दियो गमाय
केतो रथ को बेलिया, के सूरजी को सांड
कांण्यों म्हारौ केरडो, लादयौ पाछा जाय
रिण में तूं मरसी अकलो, सिरी नही संसार
रोय मरै थांणी मावडी, म्हेलां कल्पै नार
जाट कहीजै जातरो, छतरी तेजा नांय
गांयां भिड की गौर में, बाछडि या को बाग
लीले वाला मानवी, काल्यौ खाज्यो नाग
झाट पडै तखार री, तो जाय पिंयाला मांय
मरणे को मनै डर नहीं, नहीं जीणे में सार
जलम दियो म्हंनै जाटणी, म्है भली बजावां भार
कौल बचन तो काले तण्या, गायां ल्याजो तेज
बचनां बंबी जांवणूं, घडी पलक री जेज
दान तो चारण बामण लेवे, तीजो लेवे भाट
मं छत्री को जायो कहीजूं, बाजूं नंगीनो जाट
थूं अपराधी चौधरी, करे अनोखी बात
कठ घालूं थारै बैसणां, हिन्दवाणी रै घात
हाथ हथाली फूटरा, जीभां घालो घात
मकराणे की दवेल्यां, भली पड ावो भांत
घोडी म्हां री लीलडी, तूं सगती रो सीर
पल में हंसलो छुटियो, नंदियां खलक्यौ नीर
पीव ने लीन्हो गोद में, सती सरग में जाय
कीडो कांटो माछरयौ, नही मेले के मायं
धोल्या की धोको देवली, नंम ने जगावो रात
दसमीं चढावो चूंटयो चूरमो, अम्मर खेलो बात
तेजल चाल्यौ सासरे, ढलती मांझल रात
डावी बोली कोचरियां, सुगन सरीसा होय
कांकड़ मिलगी कामण्यां, छांणा चुगती दोय
घुड लो पाछो घेरियो, आडी फिरगी आय
गजब करया थे मावडी, पीवजी भूखो जाय
अनवी बोली आकरी, सुन्दर छोडो बांयं
नुगरी धरती मांयने, बासो ल्येवां नांयं
सलहज थाल परोसियो, भोजन जीमलयौ तेज
साल्यो बेन्याई जीमलयौ, साल्यां बिछायो सेज
पूला नीरां परेम रा, हिण-हिण हींस्यौ घोड
सूरै ने सुणियौ सेहर में, लाछां आयी दौड
बंदूकां तो खटका भरै, तखारां ने काट
डोडो बोले चौधरी, खरनाल्या को जाट
गौरज ऊभी मेडि यां, घुड ला री पकडी बाग
डुंगर ते डांडी नही, पग-पग काल्या नाग
सूरौ चाल्यो भार में, आने अमल नांयं
रिण में जावे अकेलो, पाछो किस विध आय
चांद सूरज म्यारै सांखा भरै, बांचा दयेवै तेज
बचनां बंबी आवस्यूं, म्हारै आठ पोहर की जेज
कौल बचन कर नीकल्यौ, घोड गायां के मांय
चुग चुग मारुं चोरटां, जिन्दा छोडूं नांय
मेर घणी माता तणी, सेहर पनेरां मायं

सिद्धपुरुष खेमा बाबा

Khema Baba (खेमा बाबा) (born:1876 AD), Jakhar Gotra Jat, was a social reformer born in village Baytoo Bhopji in Baytu tahsil of Barmer district of Marwar region in Rajasthan . He was a revered person in Rajasthan as well as in Gujarat,MP,UP, Hariyana And Panjab . There is a temple in village bayatu to commemorate him. Fairs are organized every year on magha sudi 9 and bhadrapada sudi 9, in which thousands of people take part.


खेमा बाबा का परिचय
संत पुरुष खेमा बाबा का आविर्भाव बायतु के धारणा धोरा स्थित जाखड़ गोत्री जाट कानाराम के घर फागुन बदी सोमवार संवत 1932 को हुआ. आपकी माताजी बायतु चिमनजी के फताराम गूजर जाट की पुत्री रूपा बाई थी.
जाखड़ जाट गाँव बायतु, घर काने अवतार ।
धरा पवित्र धारणो , फागन छत सोमवार ।।
बचपन में आप बाल-साथियों के साथ पशु चराने का काम करते थे. आपका विवाह संवत 1958 (सन 1901) की आसोज सुदी 8 शुक्रवार को नौसर गाँव में पीथाराम माचरा की पुत्री वीरां देवी के साथ हुआ. आपके एक मात्र पुत्री नेनीबाई पैदा हुई. खेमा बाबा का झुकाव प्रारंभ से ही भक्ति की तरफ था. आप अकाल की स्थिति में दूर-दूर तक गायें चराने जाया करते थे. इन्हें सिणधरी स्थित गोयणा भाखर में एक साधू तपस्या करता मिला. इनसे आपने बहुत कुछ सीखा तथा इनकी रूचि भक्ति की तरफ बढ़ गयी. गूदड़ गद्दी के रामनाथ खेड़ापा से संवत 1961 में खेमसिद्ध ने उपदेश लेकर दीक्षा ग्रहण की.

खेमा बाबा की चमत्कारिक शक्तियां
गोयणा भाखर सिणधरी में तपस्या करने के बाद बायतु भीमजी स्थित धारणा धोरे पर भक्ति की. काला बाला व सर्पों के देवता के रूप में कई पर्चे दिए तथा जनता के दुःख-दर्द दूर किये. आपने अरणे का पान खिला कर अमरा राम का दमा ठीक किया. आज भी मान्यता है कि बायतु में स्थित खेम सिद्ध के इस चमत्कारिक अरने का पान खाने से दमा दूर हो जाता है. आपने अपने भक्त धोली डांग (मालवा) निवासी श्रीचंद सेठ के पुत्र को जीवित किया. सिणधरी व भाडखा में कोढियों की कोढ़ दूर की. सरणू गाँव में गंगाराम रेबारी को गंगा तालाब बनाने का वचन दिया. आपके परचे से गाँव भूंका में सूखी खेजड़ी हरी हो गयी. भंवराराम सुथार लोहिड़ा, रतनाराम सियाग, चोखाराम डूडी, रूपाराम लोल, जीया राम बेनीवाल, पुरखाराम नेहरा सहित असंख्य भक्तों का दुःख दूर हुआ. जाहरपीर गोगाजी, वीर तेजाजी, वभुतासिद्ध कि पीढ़ी के इस चमत्कारिक संत कि आराधना मात्र से ही सर्प, बांडी, बाला (नारू) रोग ठीक हो जाते हैं.खेमा बाबा ने गायों के चरवाहे के रूप में जीवन प्रारंभ किया. शिव की भक्ति के पुण्य प्रताप एवं गायों की अमर आशीष से देवता के रूप में पूजनीय हो गए, जिनके नाम मात्र से ही सर्प का विष उतर जाता है.
खेमा बाबा का मंदिर
आपने भाद्रपद शुक्ल आठंम को बायतु भीमजी में समाधी ली. इसके पश्चात् आपके परचों की ख्याति न केवल बायतु बल्कि सम्पूर्ण मारवाड़ में फ़ैल गयी. सम्पूर्ण मालानी में गाँव-गाँव आपके आराधना स्थल मंदिर बने हैं. बायतु चिमनजी , पालरिया धाम , चारलाई कलां , रावतसर , छोटू , धारणा धोरा , रतेऊ ,जाणियों की ढाणी  , वीर तेजा मंदिर (भगत की कोठी) में आपके मंदिर बने हैं. चैत्र, भाद्रपद एवं माघ  की शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन खेमा बाबा के मंदिरों में मेला भरता है. इनकी समाधी स्थल बायतु भोपजी में हजारों की संख्या में श्रदालु अपने अराध्य देव के दर्शन करने आते हैं.
बाड़मेर जिले के बायतु कसबे में स्थित सिद्धखेमा बाबा के मंदिर में माघ माह के शुक्ल पक्ष में नवमी को मेला भरता है. इसी तरह भादवा माह की शुक्ल पक्ष की नवमी को भी मेला लगता है. इन मेलों में ग्रामीणों का अपार सैलाब उमड़ पड़ता है. खेमा बाबा के बारे में कहा जाता है कि उनको गोगाजी का वरदान प्राप्त है, जिससे खेमा बाबा की श्रद्धा से सांप तथा बिच्छू का काटा ठीक हो जाता है. निकट ही गोगाजी का मंदिर है जो स्वयं खेमा बाबा के इष्ट देवता माने जाते हैं. इसी दिन इस मंदिर पर भी जातरुओं का जमघट लगा रहता है. खेमा बाबा साँपों के सिद्ध देवता माने जाते हैं.
वर्तमान में उनकी समाधी पर भव्य मंदिर बना है जहाँ प्रतिवर्ष दो बार मेला भरता है. इस परिसर में पश्चिम की और भव्य मंदिर स्थित है.मंदिर के एक कमरे में बाबा की समाधी पर अब उनकी प्रतिमाएँ हैं, जहाँ स्वयं खेमा बाबा उनकी पत्नी वीरा देवी के तथा नाग देवता की प्रतिमाएँ हैं. यहाँ एक विशाल धर्मशाला भी है जहाँ भक्त लोग ठहरते हैं. मंदिर के परिसर में ही नीम के एक पेड़ पर सफ़ेद कपडे की तान्तियाँ लगी हुई हैं. यहाँ आने वाले अधिकांश ग्रामीण इस पेड़ पर तांती अवश्य बांधते हैं. इससे उनकी मन्नत पूरी होती है.
बायतु के मंदिर के अलावा भी बाड़मेर में खेमा बाबा के दर्जनों मंदिर हैं. बायतु के मुख्य मन्दिर पर लगने वाले मेलों में 5-7 लाख तक जातरु पधारते हैं. मेले में बाड़मेर, जैसलमेर, नागौर से अधिकांश लोग आते हैं परन्तु सीकर, चुरू, झुंझुनू, बीकानेर तथा गुजरात से भी लोग आने लगे हैं. इस दिन लोक भजनों में उनके भक्त कहते हैं -
खेमा बाबा थारो मेलो लागे भारी, रे बाबा मेलोलागे भारी
खेमा बाबा हैलो हाम्बलो मारो, रे बाबा हैलो हाम्बलो मारो.....

सिद्धाचार्य श्री देव जसनाथ जी की आरती

जसनाथी सिद्ध समाज को जसनाथ जी महाराज का वरदान है कि वे अग्नि नृत्य कर सकते हैं। जलती आग पर यह लोग ऐसे नाचे जैसे फूलों की पंखुडयों पर नाच रहे हों। जलते अंगारों को इस तरह खाया जैसे कोई मिठाई खा रहे हो। इस अग्नि नृम्य को देखकर लोगों के रोमांच की सीमा नहीं रहती.....


सिद्धाचार्य श्री देव जसनाथ जी की आरती

ॐ जय श्री जसनाथा, स्वामी जय श्री जसनाथा ।
बार-बार आदेश, नमन करत माथा ।। ॐ
तुम जसनाथ सिद्धेश्वर स्वामी मात तात भ्राता ।
अजय अखंड अगोचर , भक्तन के त्राता ।। ॐ
धर्म सुधारण पाप विडारण, भागथलीआता ।
अविचल आसन गोरख , गुरु के गुण गाता ।। ॐ
परमहंस परिपूर्ण ज्ञानी,परमोन्नती करता ।
ब्रह्म तपो बल योगी , करमवीर धरता ।। ॐ
जाल वृक्ष अति उत्तम सुन्दर , शांत सुखद छाता ।
योग युक्त जसनाथ विराजे , मन मोहन दाता ।। ॐ
श्री हांसो जी चंवर दुलावत, नमन करत पाला ।
हरोजी करत आरती गुरु के गुण गाता ।। ॐ
भक्त्त लोग सब गावत , जोड़ जुगल हाथा ।
सुवरण थाल आरती ,करत रुपांदे माता ।। ॐ
सुर नर मुनि जन जसवंत गावत , ध्यावत नव नाथा ।
सिद्ध चौरासी योगी , जसवंत मन राता ।। ॐ
जतमत योगी जगत वियोगी , प्रेम युक्त ध्याता ।
सूर्य ज्योतिमय दिव्य रूप के , शुभ दर्शन पाता ।। ॐ

दहकते अंगारों पर नाचते हैं बाबा

अंधविश्वास जब हद से गुजर जाए तो आस्था का रूप और रंग बदल जाता है.
आस्था कभी अग्पिथ दिखाई देने लगती है तो कभी आस्था में अंगारे दिखाई देने लगते है.भक्ति का ऐसा हैरतअंगेज नज़ारा देखकर आपको भी अपनी आंखों पर विश्वास नहीं होगा.ये भक्त बेधड़क येदहकते अंगारों पर नाचते जाते हैं.वहां बज रहासंगीत का शोर इनका जोश और बढ़ा देता है.
बीकानेर से करीब 45 किलोमीटर दूर गांव कतरियासर में लगता है सिद्ध नाथ सम्प्रदाय के लोगों का मेला ये गांव नहीं तपोभूमि है इनसिद्धों के गुरु के जननाथजी महाराज की.
कहते हैं कि बाबा जसनाथ जी महाराज के विशेष पुजारियों को एक आर्शीवाद हासिल है जिसके चलते इन साधुओं के पांव आग पर नाचने से जलते नहीं है.
भक्त ही नहीं सारा गांव आस्था के इस अनोखे रूप में गहरा विश्वास रखता है लोग तो यहां तककहते है कि बाबा के साधु ना सिर्फ आग पर नाचते है. जलते अंगारों को निगल भी जाते हैं.
हर साल यहां इस विशेष अग्नि नृत्य का आयोजन किया जाता है.लकड़ियों को जलाकर अंगारे बनाए जाते हैं और फिर उन अंगारों पर बाबा के भक्त नृत्य करते हैं.

राजस्थान के प्रमुख लोक देवता

क्षत्रिय शिरोमणि वीर श्री बिग्गाजी महाराज-राजस्थान के वर्तमान BIKANER जिले में स्थित गाँव बिग्गा व रिड़ी में जाखड़ जाटों का भोमिचारा था और लंबे समय तक जाखड़ों का इन परअधिकार बना रहा. बिग्गाजी का जन्म विक्रम संवत 1358 ( १३०१ ) में रिड़ी में हुआ रहा. बिग्गाजी ने सन १३३६ में गायों की डाकुओं से रक्षा करने में अपने प्राण दांव पर लगा दिये थे. ऐसी लोक कथा प्रचलित है कि बिग्गाजी १३३६में अपनी ससुराल में साले की शादी में गए हुए थे. रात्रि विश्राम के बाद सुबह खाने के समय मिश्रा ब्राहमणों की कुछ औरतें आई और बिग्गाजी से सहायता की गुहार की. बिग्गाजी ने कहा "धर्म रक्षक क्षत्रियों को नारी के आंसू देखने की आदत नहीं है. आप अपनी समस्या बताइए." मिश्रा ब्राहमणियों ने अपना दुखड़ा सुनाया कि यहाँ के राठ मुसलामानों ने हमारी सारी गायों को छीन लिया है. वे उनको लेकर जंगल की और गए हैं. कृपा करके हमारी गायों को छुड़ाओ. वहीं से बिग्गाजी अपने लश्कर के साथ गायों को छुडाने के लिए चल पड़े. मालसर से ३५ कोस दूर जेतारण में बिग्गाजी का राठों से मुकाबला हुआ. लुटेरे संख्या में कहीं अधिक थे. दोनों में घोर युद्ध हुआ. काफी संख्या में राठों के सर काट दिए गए. वहां पर इतना रक्त बहा कि धरती खून से लाल हो गई. जब लगभग
सभी गायों को वापिस चलाने का काम पूरा होने ही वाला था कि एक राठ ने धोके से आकर पीछे से बिग्गाजी का सर धड़ से अलग कर दिया. आशोज शुक्ला त्रयोदशी को बिग्गाजी ने देवता होने का सबूत दिया था. वहां पर उनका चबूतरा बना हुआ है. उसी दिन से वहां पर पूजापाठ होने लगी.बिग्गाजी १३३६ में वीरगति को प्राप्त हुए थे. इस स्थान पर एक बड़ा भारी मेला लगता है. लोगों में मान्यता है कि गायों में किसी प्रकार की बीमारी होने पर बिग्गाजी के नाम की मोली गाय के गले में बांधने से सभी रोग ठीक हो जाते हैं. बिग्गाजी के उपासक त्रयोदसी को बिलोवना नहीं करते हैं तथा उस दिन जागरण करते हैं और बिग्गाजी के गीत गाते हैं. इसकी याद में भादवा सुदी १३ को ग्राम बिग्गा व रिड़ी में स्थापित बिग्गाजी के मंदिरों में मेले भरते हैं जहाँ हरियाणा, पंजाब,उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात गंगानगर तथा अन्य विभिन्न स्थानों से आए भक्तों द्वारा सृद्धा के साथ बिग्गाजी की पूजा की जाती है.


वीर श्री तेजाजी-तेजाजी मुख्यत: राजस्थान के लेकिन उतने ही उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात और कुछ हद
तक पंजाब के भी लोक-नायक हैं।राजस्थानी का ‘तेजा’ लोक-गीत तो इनमें शामिल है ही। वे इन प्रदेशों के सभी समुदायों के आराध्य हैं। तेजाजी का जन्म राजस्थान के नागौर जिले में खरनाल गाँव में माघ शुक्ला, चौदस वार गुरुवार संवत ग्यारह सौ तीस, तदनुसार २९ जनवरी, १०७४ , को धोलिया गोत्र के जाट परिवार में हुआ था। उनके पिता चौधरी ताहरजी (थिरराज) राजस्थान के नागौर जिले के खरनाल गाँव के मुखिया थे।
लोग तेजाजी के मन्दिरों में जाकर पूजा-अर्चना करते हैं और दूसरी मन्नतों के साथ-साथ सर्प-दंश से होने वाली मृत्यु के प्रति अभय भी प्राप्त करते हैं। स्वयं तेजाजी की मृत्यु, जैसा कि उनके आख्यान से विदित होता है, सर्प-दंश से ही हुई थी। बचनबद्धता का पालन करने के लिए तेजाजी ने स्वयं को एक सर्प के सम्मुख प्रस्तुत कर दिया था। वे युद्ध भूमि से आए थे और उनके शरीर का कोई भी हिस्सा हथियार की मार से अक्षत्‌ नहीं था। घावों से भरे शरीर पर अपना दंश रखन को सर्प को ठौर नजर नहीं आई, तो उसने काटने से इन्कार कर दिया। वचन-भंग होता देख घायल तेजाजी ने अपना मुँह खोल कर जीभ सर्प के सामने फैला दी थी और सर्प ने उसी पर अपना दंश रख कर उनके प्राण हर लिए थे। तेजाजी का निर्वाण दिवस भादवा सुदी १० संवत ११६०, तदानुसार २८ अगस्त ११०३ , माना जाता है ।